उसके लब कुछ कहते - कहते रुक से जाते हैं |
लगता है मेरी मज़बूरी वो अक्सर जान जाते हैं |
उसकी बैचेन निगाहें मुझसे कई सवाल करती है |
पर मेरी ख़ामोशी हर बार उसका जवाब बनती है |
कैसे इतना दर्द लेकर वो हमसे इतनी दूर रहता होगा |
क्या सच में वो हमसे इतनी मोहोब्बत करता होगा |
हमारी याद उसके बदन में सिरहन तो लाती होगी |
है तो गुस्ताखी पर हमसे ही गुजर कर जाती होगी |
ये धुप - छाँव का सिलसिला सारे जहां में पल रहा होगा |
तभी एहसासों का काफिला इतना हसीन चल रहा होगा |
चाँद भी अपने दाग को देखकर एकबार तो तडपा होगा |
शायर तो उस वक़्त भी उस पर गज़ल लिख रहा होगा |