वर्ल्ड कप


अपने विश्वास की ही तो ये जंग है 
खिलाडियों में भरा हमनें ही तो  बल है 
हमारा  उत्साह ही उन्हें वहां तक ले गया 
उनकी मेहनत में चार चाँद लगा गया 
उनका जूनून अब वो रंग  दिखायेगा 
हमारी उम्मीद पर वो कितना उतर पायेगा 
इरादे तो उनके भी मजबूत लगतें हैं 
तभी तो हर बोल पर चौके  - छ्क्के पड़ते हैं 
अब देखो ये तो खेल का दस्तूर है 
दो में से सिर्फ एक ही तो जीत पायेगा 
तो क्यु न खेल को खेल भावना से हम देखें 
जिन हाथों में होगा ज्यादा दम ....
वही तो वर्ल्ड कप ले के जायेगा |

कल्पना

चित्रकार की कैसी  है ये कल्पना  |
उसको तो कुछ न कुछ है रंगना |
मंदिर ,  मस्जिद में चला गया |
थी कोशिश इंसा में ही रब को पाना  |
पर कोई भी एसा  नहीं मिला |
अपनी रचना सा नहीं दिखा   |
फिर दूर तलक वो जब पहुंचा  |
बंसी की धुन सुन ठिठक गया |
सृष्टि में एक ख़ामोशी थी |
 बंसी की धुन ही बाकि थी |
चेहरे में उसके  रौनक थी |
उसकी रचना अब  पूरी थी |
उसने उसमें कुछ देखा था |
शायद प्रेम रस ही बरसा  था |
वो उसकी धुन में बह निकला |
सृष्टी के ही रंग में रंग निकला |
फिर एक नई तस्वीर बनी |
इंसा के अन्दर की तस्वीर सजी |
जिसे वो बाहर खोजा करता था |
रंगने को तडपा करता था |
अब उसके रंगों को पंख मिले |
उसके जीवन को ढंग मिले |
अब एसे ना  वो भटकेगा |
खुद अपनी तस्वीर बनाएगा  |
इंसा को इंसा से  मिलाएगा |

हुस्न

                      हुस्न
हुस्न  को संवरनें की जरूरत क्या है |
सादगी भी तो कयामत की नज़र रखती है |
हुस्न जब - जब बेपर्दा होता है |
ज़माने से हर बार रुसवा होता है |
सुना है आजकल हुस्न का अंदाज़
कुछ  बदला - बदला सा लगता है |
पहले हुस्न परदे की ओट में रहा करता था  |
आज  सरे राह नज़रे कर्म  हुआ करता है |
पहले उस तक पहुंचने  को लोग तरसते थे |
अब न चाह कर भी वो हर राह से गुजरता है | 
चिलमन में छुपे  हुस्न का अंदाज़  ही  निराला था |
उसके दीदार में बिछी आँखों का नशा भी सुहाना था |
अब न वो हुस्न है न चाहने वालों का अंदाज़ बाकि है |
अब तो बदला - बदला सा ये सारा जहां नज़र आता है |
चाहने वालों ने भी अपना अंदाज़  कुछ बदला है |
अब वो भी सरे राह का नज़ारा देखते फिरते हैं |
जब हुस्न बेपरवाह है तो...
चाहने वालों की इसमें  क्या  खता हैं ?
फिर उनके सर  दिया गया इल्ज़ाम ...
उनकों बे मतलब में  दी गई एक सज़ा है |
खुद को महफूज एसे रखो की चाहने वाला भी 
तुम्हारे हुस्न पर रशक खाने लगे |
आपके हुस्न पर  वो खुबसूरत गज़ल बनाने लगे |
आप भी उसमें झूम कर खुद को जान सको |
अपनी खूबसूरती के  दो लफ्ज़ तुम भी उसमें बोल सको |

धर्म


बहस से बड़ी कोई बहस नहीं है ,                               
धर्म  से बड़ी कुछ  की जागीर नहीं है  |
ये दुनिया वालो की बनाई हुई  हस्ती है ,
इस पर कोई  बहस मुमकिन ही नहीं है ,
क्युकी , धर्म  से बड़ी कोई ज़ंजीर नहीं है  |
इंसानियत को पूजो इन्सान से प्यार करो |
क्युकी इससे महान कार्य दुनियां में ...
मेरे ख्याल से कोई और  नहीं है |
सब कुछ खत्म हो जायेगा दुनिया में 
पर दुसरे के लिए किया गया उपकार 
उसके दिल में आपका सम्मान कभी नहीं |
उसका नशा अपने अन्दर लाके तो देखो 
खुद के अन्दर इसकी आदत बनाके तो देखो ?
हो न जांए तुम्हें  भी उनसे मोहोब्बत तो कहना 
जरा इस नशे को आजमा के तो देखो |
किस कदर मासूम निगाहों से
हरदम वो तकतें हैं   |
हमारी तरफ हाथ बढ़ाके...
हमसे ही तो वो कुछ कहतें हैं |
क्या हममें उनकी आवाज़ 
सुन पाने का भी दम नहीं |
बढ़के हम उन्हें न थामें 
इतने तो गये गुजरे हम नहीं |
उनके चेहरे पे कुछ पल की 
मुस्कान ही गर हम ला दें  |
उनको उस दुनिया से ...
कुछ पल को बाहर निकाल  दे ,
ये अहसान भी कोई कम नहीं |
क्युकी उनकी ख्वाइशो का पुलिंदा 
हम सा हो ये भी तो मुमकिन नहीं |
हिम्मत तो उनमें है इतनी 
की हमने कभी परखी ही नहीं 
बस थोड़ी सी उनके अन्दर 
विश्वास की ही तो है कमी  |
हमें  तो बस प्यार के 
दो मीठे बोल ही  है कहना |
और उनकी जिंदगी को 
बस एसे ही है रंगीन करना |
क्या इस खुबसूरत धर्म से प्यारा 
कोई और धर्म भी हो है सकता   ...
हम तो कहते हैं इससे प्यारा तो ...
कोई और धर्म हो ही नहीं सकता  |

क्या होता है ये प्यार

प्यार करना आसन है ...
प्यार निभाना आसान नहीं |
प्यार दिल से है होता ...
प्यार कोई दिखावा  तो नहीं |
प्यार समर्पण में है ...
जबरन हासिल किया जाता नहीं |
प्यार दो दिलों की सहमति  में है ...
एक तरफा तो कोई प्यार नहीं |
किसी की अदा ने मोह लिया ...
प्यार इसका भी तो नाम नहीं |
प्यार किसी अहसास  का नाम है ...
बिना अहसास  के तो कोई प्यार नहीं |
प्यार के कई मायने हैं ...
सब प्यार के मायने एक ही तो नहीं |
पति - पत्नी में विश्वास न हो ...
तो वो प्यार भी कोई प्यार नहीं |
दिल में देश के लिए कोई जज्बा न हो ...
ये सम्मान भी  तो कोई सम्मान नहीं |
बच्चों  के दिल में बड़ों का  आदर न हो ...
वो सत्कार भी कोई सत्कार नहीं |
सारी सृष्टि अहसासों  में थमी है ...
बिना अहसास  के तो इन्सान भी  इन्सान नहीं |