उपहार

अपनी किरणों का देकर उपहार
देखो सूरज फिर आज कंगाल हुआ |

चाँद - तारों में भरकर अपना प्यार 
देखो वो आज फिर से मालामाल हुआ |

जिक्र छीडा जब भी जग में उसका 
शाम को आँगन सारा लाल हुआ |

सुबह छज्जे में आकार जो ढहरा था 
शाम को मिलना उसका मुहाल हुआ |

उम्र तो ठहर गई उस चोबारे में 
पर उसका  तो जीवन भर साथ हुआ |

तुम तो आते थे दिन , साल , महीने में 
पर उसका दीदार तो हर बार हुआ |

कल तक जिसको न समझ पाए थे 
आज सारे  सवालों का वही जवाब हुआ |

देखो होंसला न खोना


कितनी अजीब होती है जिंदगी
जहाँ  पल कि खबर नहीं
एक धमाका , दूसरा धमाका
और एक पल में ही इंसा ...
इंसा से दूर |
चारों तरफ दहशत ही दहशत
एक चीरता हुआ सा सन्नाटा
उसके बाद कभी न खत्म होने वाली
आह , दर्द , छटपटाहट
जो पूरी जिंदगी भर साथ रहती है |
कितना होंसला है उनके ज़ज्बों में
जो कभी हिम्मत नहीं हारते
अपने सफर कि गति
वो कभी नहीं खोते |
अपनी जिंदगी को
फिर से नया मोड  देकर
उसी प्रवाह से आगे बढते जाते हैं |
वहीँ दूसरी तरफ
कितने खुदगर्ज़ हैं वो इंसा
जो इंसा होकर भी
इंसा के दर्द को नहीं समझते ,
उनकी भावनाओं से उनका
कोई सरोकार ही नहीं ?
न जाने क्यु मर जाता है
उनका जमीर
जो खुद इंसा होकर
उनका लहू बहा देते हैं
और पछतावा फिर भी नहीं |
क्या उनमें  एहसास कि कमी ?
क्या उनमें मानवता का अंत ?
या कोई बैचेनी ?
सवाल तो बहुत हैं
पर जवाब किसी का भी नहीं
पर इंसा का होंसला
फिर भी बुलंद
जिससे उनका एक दूसरे से
जुड़े रहने का सिलसिला
अब भी बरकरार
ये होंसला बने रहे
और जीवन युहीं
चलता रहे |

सिर्फ तेरी रहमत


हाँ हम जानते हैं सारी सृष्टि में ही तो बसी वफाएं है |
पर जो लिखा खुदा ने वही किस्मत हम साथ लाए हैं |

खुद अपनी चाहत से पैदा की है हमने अपनी वफाएं हैं  |
किसी के कुछ करने से नहीं बदलती तकदीरें जफ़ाएं हैं |

बदलते हुए हर मौसम को हमें खुद ही झेलना होगा |
खुशी - गम के साये में हमें खुद जीना - मरना होगा |

कौन  किसी की खातिर  कब जीया कब मरा  होगा ?
ये तो बस एक एहसास ही है जो उसने कह दिया होगा |

कोई भी धर्म कब किसी से कोई  गुनाह को कहती है |
ये तो इंसा की सोच है जो  ये सब करने को कहती है |

मैं जब तुझसे  हूँ तो क्यु करूँ मैं तुझसे कोई बेवफाई  |
फिर आप हमसे ये कहें कि दोस्त तू तो बड़ा है सौदाई  |

इंसा होके अगर इंसा के दर्द को हम ही न जान पाएंगे |
 होगा खफा खुदा जब इस जहाँ से ऐसे  रुखसत हो जायेंगे |

उसके  गुलिस्तान के ही हम सब फूल - पत्ते हैं |
उसके ही कर्म से सूरज - चाँद बेबाक चमकते  हैं |

वो बदलता है नसीबों को और हम खुद पर रश्क करते हैं |
बड़े जालिम हैं हम जो उसकी रजा से बेखबर से रहते हैं |