" खुदा का कहर "



धू - धू कर बेख़ौफ़ जलने लगी लाशें ,
धर्म के नाम पर जहां होती थी बातें |

अब बताओं न ...
क्या होती है ये श्रद्धा ?
किसे कहते हैं धर्म ?
मंदिर , मस्जिद की चौखट में बैठकर 
एक २ श्लोक पर पैसों की बोली ?
बेसहारों पर अत्याचार ?
सब गुनाहों का हिसाब तो है यही ...
फिर किस बात की है मनाही ?
सृष्टि का लिखा कब है बदलता
न खुदा है रोक सकता ...
न पैसा ही काम आता ...
फिर किस बात पर अकड़ना ?
क्यों बे - वजह का भटकना ?
कब कहता है खुदा
दूर चलकर मेरे पास आओ ?
कब कहता है खुदा
मुझ पर पैसा बरसाओ ?
अपनी - अपनी सहूलियत से
भगवान् को बेच हैं डालते ,
जब संभले न संभलता
तो " खुदा का कहर " नाम दे डालते |