सुबह का सूरज शाम को ...
छत की मुंडेर से , फिसलता हुआ ,
आंगन में जो ठहरा |
पूर्व से दामन छुडाता हुआ ,
पश्चिम में जा उगा |
जीवन के पहलूँओं को समझना ,
इनता भी मुश्किल नहीं |
जीवन का सत्य , जीवन देकर
लम्हा - लम्हा समेटते जाना है |
हमारी उपलब्धियां , हमारे जीने का ठंग
जिंदगी सब कुछ धीरे - धीरे समझा देती है |
जुड़ते जाते हैं जैसे - जैसे संबंधों के डोर से ...
छुटना लाजमी है , ये बात बखूबी जहन में डाल देती है |
अकेले थे अकेले ही हमको जाना है ...
विधि का विधान पल - पल समझाती रहती है |
फिर रह जाता है सिर्फ एक खाली शरीर
अकेला जर्जर हिलता हुआ ...
तब हाथ बढाकर दूर खड़े समय को
हमारा हाथ थमा देती है |