ख्वाबों की ताबीर

सुना है उसके शहर की ...
बात बड़ी निराली है ,
सुना है ढलते सूरज ने ...
कई दास्ताँ कह डाली है ,
सुना है जुगनुओं ने ...
कई बारात निकाली है ,
सुना है हर रात वहां ...
ईद और दिवाली है ,
सुना है अल्फ़ाज़ लबों से ...
फूलों की तरह झरते हैं ,
सुना है उसके शहर में
पत्ते भी गले मिलते हैं ,
अब उसके शहर में जाएँ
तो क्या पूछकर जाएँ ?
कहाँ , कैसे गुजारेंगें रात ...
ये बात किस - किसको बताये ,
चलो सितारों आज ही सफर पे निकलते हैं ,
जहन में कैद ख़्वाब की ताबीर करके देखते हैं ।
सुना है लोग उसे जी भरके देखते है ,
हम भी उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं ।

संघर्ष अब भी जारी


sad girl


 

बिटिया ने कदम रख देहलीज़ में
सपनो को सजाने का मन बनाया 

न जाने कब ये खबर आग की तरह 
हर तरफ फ़ैल गई ?

गलियों में आना - जाना लगा है 
घर में कुशल लेने वालों का ताँता लगा है ,
अभी पंख फडफडाये भी न थे की ...
चील , गिद्दों की नजर में लोभ छाने लगा है ,

आँचल में छुपाती देह अपनी
वो कसमसाई सी खड़ी है
आज तक जो बेबाक खेलती थी
तंग गलियों में ...
आज उन्ही से बचके गुजर रही है

पेट की भूख उसे बाहर धकेलती
घूरती निगाह उसके होंसले छीन लेती
न भूख का निवारण हुआ
और न ही मंजिल मिली
जख्मी हाथ , लहुलुहान जिस्म
होंठों पर निशानों में ही
सिमट गई जिंदगी |

सुनो न प्रिय ..

सुनो न प्रिय ..

चूड़ी की खन - खन 
पायल की छम - छम
हमें भाती नही है ।
ये शब्दों की लुका - छिपी 
हमें आती नही है ।
पल - पल में बदल जाना 
जान लेती है कई मर्तबा ।
ये रिश्तों में रंजिशें 
हमें सताती बहुत है |

सुनो न प्रिय ..


कागज़ ,कलम , 
स्याही का गहना हमें दिला दो ।
इतिहास के पन्नों में ...
कुछ गड़ने की सलाह दो ।
देश के हित में ...
कुछ कर गुजरने का अरमान है |
जन - जन की खातिर 
जागा 
दिल में एक सपना है  |

सुनो न प्रिय 

ये घूँघट में लिपटी देह में
घबराता है मन मेरा ,
पल - पल के तिरस्कार से ...
काँप जाता है देह सारा ।
ज्यादा नही , बस थोड़े से ही
की तो , तमन्ना है  ।
नीले गगन को जी भरके निहारने का 

सपना है ।
न बंधन हो कोई और न हो कोई इल्तजा ।
सफर चलता रहे युही ...
हम दोनों के दरमियाँ ।

जो मिल नही सकता उसका जिक्र ही कैसा ,
जो साथ में है अपने उस से पर्दा फिर कैसा |

छुपाना क्यों , किससे हकीकत - ए - आरजू ,
सुख - दुःख है गर जिंदगी तो भ्रम फिर कैसा |

फुटपाथ में भी लगती है आरजूओं की बोली ,
ख़्वाइश कह गया कोई तो हैरान होना फिर कैसा |

बंजर भूमि को देख उदासी लेती है झपकियाँ ,
गाँव से शहर आया इंसा तो गिला फिर कैसा |

ख्वाबों से मिलती है अगर तासीर - ए - जिंदगी ,
जहन में ख़्वाब सज़ा लिया तो गुनाह फिर कैसा |