ख्वाबों की ताबीर
सुना है उसके शहर की ...
बात बड़ी निराली है ,
सुना है ढलते सूरज ने ...
कई दास्ताँ कह डाली है ,
सुना है जुगनुओं ने ...
कई बारात निकाली है ,
सुना है हर रात वहां ...
ईद और दिवाली है ,
सुना है अल्फ़ाज़ लबों से ...
फूलों की तरह झरते हैं ,
सुना है उसके शहर में
पत्ते भी गले मिलते हैं ,
अब उसके शहर में जाएँ
तो क्या पूछकर जाएँ ?
कहाँ , कैसे गुजारेंगें रात ...
ये बात किस - किसको बताये ,
चलो सितारों आज ही सफर पे निकलते हैं ,
जहन में कैद ख़्वाब की ताबीर करके देखते हैं ।
सुना है लोग उसे जी भरके देखते है ,
सुना है उसके शहर की ...
बात बड़ी निराली है ,
सुना है ढलते सूरज ने ...
कई दास्ताँ कह डाली है ,
सुना है जुगनुओं ने ...
कई बारात निकाली है ,
सुना है हर रात वहां ...
ईद और दिवाली है ,
सुना है अल्फ़ाज़ लबों से ...
फूलों की तरह झरते हैं ,
सुना है उसके शहर में
पत्ते भी गले मिलते हैं ,
अब उसके शहर में जाएँ
तो क्या पूछकर जाएँ ?
कहाँ , कैसे गुजारेंगें रात ...
ये बात किस - किसको बताये ,
चलो सितारों आज ही सफर पे निकलते हैं ,
जहन में कैद ख़्वाब की ताबीर करके देखते हैं ।
सुना है लोग उसे जी भरके देखते है ,
हम भी उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं ।
7 टिप्पणियां:
बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (14-04-2015) को "सब से सुंदर क्या है जग में" {चर्चा - 1947} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत शुक्रिया रूपचन्द्र शास्त्री जी ।
शुक्रिया ऋषभ शुक्ला जी ।
सुन्दर रचना
सुंदर ।
प्रशंसनीय
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