इन हवाओं से अब दोस्ती हो गई थी |
लगता है दिए की उम्र लंबी हो गई थी |
अभी तो इसमें कई और रंग बचे थे |
तेरी तस्वीर कबकी पूरी हो चुकी थी |
मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |
जबसे जाना था मंजिल का पता मैंने |
मेरी तो रफ़्तार ही धीमी हो गई थी |
बहुत बार चाहा था फिर से हंसना मैंने |
पर उदासी तब और गहरी हो गई थी |
बहुत ही करीब चली गई थी चाँद के मैं |
उसकी रौशनी में थोड़ी धुंदली हो गई थी |
चल तो रही थी अब साथ - साथ उसके |
पर अपने परिचय से अंजान हो गई थी |
बहुत कशमकश होती थी जिंदगी में लेकिन |
फिर भी दोस्तों के साथ खुशगवार हो गई थी |
16 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
अनुपम
dost to hote hi aise hai ,bahut sunder.........
रंग भरे हैं कितने हमने,
जीवन अभी अधूरा लगता।
मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |
बहुत सुन्दर कमाल की प्रस्तुति है आपकी.
अनुपम भावों का अहसास कराती हुई.
आभार.
बहुत सुंदर, क्या कहने
मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |
वाह ... क्या कमाल का शेर है ... लाजवाब गज़ल है पूरी ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
behtreen....
अरे कमाल का लिखा है आज तो……………मेरे पास तो शब्द कम पड गये है तारीफ़ के लिए
मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |
क्या सोंच है गजब वाह वाह ..
बहुत बार चाहा था फिर से हंसना मैंने |
पर उदासी तब और गहरी हो गई थी |
वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !. ....
♥
आदरणीया मीनाक्षी जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत ही करीब चली गई थी चांद के मैं
उसकी रौशनी में थोड़ी धुंदली हो गई थी
लगता है , अब नामधारी शायरों की छुट्टी का इरादा कर लिया है आपने … :)
सच , बहुत प्यारा शे'र है !
आपकी पिछली दो-तीन पोस्ट्स की रचनाएं भी अभी पढ़ीं … पसंद आईं !
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut khoobsurat prastuti...
tanhaayaadein.blogspot.com
pe swagat hai apka.....intazaar rahega
बहुत कशमकश होती थी जिंदगी में लेकिन |
फिर भी दोस्तों के साथ खुशगवार हो गई थी |
-बहुत बढ़िया...
बहुत कशमकश होती थी जिंदगी में लेकिन |
फिर भी दोस्तों के साथ खुशगवार हो गई थी |
-बहुत बढ़िया...
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