घर के आँगन में ठहरती
वो धूप की लालिमा
दूर क्षितिज के पार ...
रात की चादर मुझपर ड़ाल
दूर जाती हुई |
चाँद मुस्कुराता हुआ
तारों की बारात संग खुद को
संवारता हुआ ...
अपनी डोली में बैठकर
अँधेरी रात सजाने निकल पड़ा |
रात दुल्हन की तरह सजी
लाज से खुद को समेटे
चाँद के इंतज़ार में बैठी |
बिस्तर की खुशबु खूबसूरत
मदहोश महकती रात का
अहसास दिलाती हुई |
सारी कायनात थम सी गई |
सबकी बेकरारी बढने लगी |
चांदनी का पहरा लगने लगा |
रात की स्याही ने चादर पर
अपना पैगाम लिख डाला |
फूल की खुशबु ने सारे
आलम को महका दिया |
सनम ने चुपके से ...
कानों में क्या कहा |
हर तरफ सन्नाटे की चादर
पसर गई |
बिस्तर की सलवटों ने
चांद के आने का सबूत दे डाला |
हवा के मंद झोकें बदन को
छुकरके जब गुजरे |
सुबह की किरणों ने फिर से
दस्तक दे फिर नई सुबह का
सुन्दर पैगाम दे डाला |
14 टिप्पणियां:
खूबसूरत नयी सुबह
अति सुन्दर .
सुंदर भवाओं से अत्प्रौत भावमयी प्रस्तुति... समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपजा स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
चाँद और तारे मन के भावों को समझते हुये।
सुन्दर भावों का संयोजन...
ati sunder bhav ki rachna............
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार
हमेशा की तरह लाजबाब रचना !!
सुन्दर भावों का संयोजन...
सुबह की किरणों ने फिर से
दस्तक दे फिर नई सुबह का
सुन्दर पैगाम दे डाला |
सुंदर रचना।
bhaavbharee rachnaa . badhaayee
bahut hee sundar paigaam diya bhor ne.....sundar prastuti////
Behtarin rachna jo bhavnaon se otprot hai.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
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