मौसम तो अपनी चाल से , चलता है |
वक्त के साथ , अपना रंग बदलता है |
सुबह की धूप आकर , जहां ठहरती है |
सांझ होते ही , दामन समेट लेती है |
तेज बारिशों का , दोष नहीं है तबाही |
ये प्रकृति से की गई छेडछाड कहती है |
होश वाले भी जब , होश गंवा सकते हैं |
बदहवासों को , किस बात की मनाही है |
इतनी गमगीन नहीं है , जिंदगी की राहें |
ये बीते वक्त की बीती कहानी कहती है |
नाकामयाबियों में , वक्त का नही है दोष |
ये वक्त के साथ न चल सकना कहती है |
जेहन में दर्द के बादल , घने कितने रहे |
सुकून दबे पाँव, दस्तक लगा ही देती है |
19 टिप्पणियां:
अपने गुनाहों का बोझ हमारे अपने कन्धों पर ही है।
गरजते तेज बारिशों का , दोष नहीं है तबाही |
ये प्रकृति से छेडछाड की , वारदातें कहती है |
बिलकुल सही जाने और क्या क्या देखना बाकि है !
सुंदर रचना !
क्या बात है, बहुत सुंदर रचना
हकीकत के बिल्कुल करीब
और वक्त यूँ ही चलता रहता है ..अच्छी प्रस्तुति
जेहन में दर्द के बादल , घने कितने रहे |
सुकून दबे पाँव, दस्तक लगा ही देती है |बेहतरीन शब्द सयोजन भावपूर्ण रचना.......
हमारी सोच व हमारे कर्म ही तो हमारे कल के संसार में प्रतिबींबित है रहे हैं। गम्भीरसोच से पूर्ण रचना।
नाकामयाबियों में , वक्त का नही है दोष |
ये वक्त के साथ न चल सकना कहती है |
वाह! मीनाक्षी जी.
गजब कि प्रस्तुति है आपकी.
हर शेर लाजबाब है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
मेरी नई पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है आपका.
तेज बारिशों का , दोष नहीं है तबाही |
ये प्रकृति से की गई छेडछाड कहती है |
बहुत सही बात कही आपने।
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कल 29/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Gooooood! Thank you for that post! Much appreciated!
From everything is canvas
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सार्थक, विचारोत्प्रेरक रचना...
सादर बधाई...
हकीकत बयान करते हुए सुन्दर शब्दों से सुसज्जित शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
भावनाओं को शब्द कुशलता से दिये हैं आप ने
बधाई
होश वाले भी जब,होश गंवा सकते हैं |
बदहवासों को,किस बात की मनाही है |
जेहन में दर्द के बादल,घने कितने रहे |
सुकून दबे पाँव,दस्तक लगा ही देती है !
हर किसी बात की इंतिहा होती है..
"आखिर कब तब दर्द बर्दाश्त करेगा कोई .
कुछ ही लम्हों के लिए चैन भी खोज लेगा वोही..."
पूरी गज़ल काबिले तारीफ है....
जेहन में दर्द के बादल , घने कितने रहे |
सुकून दबे पाँव, दस्तक लगा ही देती है |
बही ही भव पूर्ण गजल...शुभ कामनायें !!
जीवन के कुछ टुकडे टुकडे सत्य
अनुभव की बातें हैं,हमने भी महसूस किया है।
सुबह की धुप आकार जहां ठहरती है
सांझ होते ही आंचल समेत लेती है '
बहुत सुन्दर पंक्तिया |
कभी मेरे ब्लॉग पर भी आएं |
आशा
नाकामयाबियों में , वक्त का नही है दोष |
ये वक्त के साथ न चल सकना कहती है |
जेहन में दर्द के बादल , घने कितने रहे |
सुकून दबे पाँव, दस्तक लगा ही देती है |
बहुत सही कहा है आपने ,
बहुत अच्छी लगी आपकी ये बाते....
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