सबका परिचय पाना चाहता है दिल
खुद अपने परिचय से घबराता है दिल
कितना झूठ , कितना धोखा , कितनी बईमानी
है हममे ........
हाँ इस पैमाने को अच्छे से जानता है दिल
शायद इसलिए खुदको मिलने से घबराता है दिल
मंदिर में जाता है ...
मस्जिद में भी जाता है ...
गीता और कुरान में भी दिल लगता है
पर अकेले बैठने से बहुत घबराता है दिल
इंसान से मिलता है ...
ईश्वर को पाना चाहता है ...
पर खुद से मिलने से अक्सर डर जाता है ये दिल
क्युकी खुद को बहुत अच्छे से जानता है दिल
हाँ इसीलिए यहाँ - वहाँ भागता फिरता है दिल |
13 टिप्पणियां:
तभी तो आईने से कतराता है दिल.....
बहुत बहुत सुंदर भाव मिनाक्षी जी.....
अनु
इधर-उधर भागता है दिल.....
सुन्दर सोच...
और रचना भी सुन्दर
सादर
दिल तो बस फिर दिल ही है...... कहाँ मानता है किसी की...... बहुत अच्छी अभिवयक्ति......
क्युकी खुद को बहुत अच्छे से जानता है दिल
हाँ इसीलिए यहाँ - वहाँ भागता फिरता है दिल |
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति,,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
अपना परिचय ही तो पहचान हैं
खुद को जाना, सर्वश्रेष्ठ है..
बहुत सुंदर
क्या कहने
minakshi ji bahut sunder bhav............
minakshi jee....dil ki baaton ko kya khoob bayaan kiya hai aapne!
इस अनजाने को जानने में अक्सर जीवन गुज़र जाते हैं..
सुंदर रचना मीनाक्षी जी !!
क्युकी खुद को बहुत अच्छे से जानता है दिल
हाँ इसीलिए यहाँ - वहाँ भागता फिरता है दिल |
बहुत सुन्दर रचना... आभार
अपनी पहचान को बनाये रखे ...वो जरुरी हैं ...आभार
पर खुद से मिलने से अक्सर डर जाता है ये दिल
क्युकी खुद को बहुत अच्छे से जानता है दिल
हाँ इसीलिए यहाँ - वहाँ भागता फिरता है दिल |
बहूत हि सुंदर रचना...
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