गंगा का किनारा
दूर क्षितिज में छुपता सूरज
शंख - घंटियों की ध्वनि
हाँ यही तो है हमारा हिन्दोस्तान
और वही दूसरी तरफ ...
कुछ घरों में फांकों की नौबत
घर से बहार जान की कीमत
हर निगाह निगलने को बैचेन
हर कदम पर भाप बनकर उड़ते होंसले
कहीं शिकस्त इरादों से सुलगती जिन्दगी
बड़े - बड़े निर्माण में योगदान बांटता
सफलता की सिडीयों में आगे - आगे दौड़ता
एक तरफ ऊँचाइयों को छु रहा भारत
और दूसरी तरफ ...
अपनी जड़ों को कमजोर कर रहा भारत |
12 टिप्पणियां:
काश सूरज की लाल आग औरों के घर का ईंधन बन पाती..
सच है आज के भारत की कुछ ऐसी ही गाथा है
अरुन = www.arunsblog.in
सच कहा आपने...
विचारणीय पोस्ट है...और भारत की स्थिति भी विचारणीय है...
सादर
अनु
विषमताओं के साथ भी बढ़ता जाता हिंदुस्तान है
सफलता की सीडियों में आगे - आगे दौड़ता
एक तरफ ऊँचाइयों को छु रहा भारत
और दूसरी तरफ ...
अपनी जड़ों को कमजोर कर रहा भारत |
इतनी व्याकुलता क्यों , विषमताओं के साथ ही विकास चलता है .जिन्दा मछली ही धारा के प्रतिकूल चलती है मरी हुई मछली धारा के साथ तैरती है
behtareeen..
मीनाक्षी जी आपने सही कहा ...आज ये दोनों ही रूप का भारत हम सबके सामने है >>>
हाँ यही तो है हमारा हिन्दोस्तान
बड़े - बड़े निर्माण में है योगदान
फिर भी रोटी को तरसता इंसान...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |
दो अलग तस्वीरें हो गयी है भारत की एक दूसरे से भिन्न , सच्चाई तो यही है .
बहार , सीडियों को ठीक कर लें !
ek tasveer k kayi rukh.
बहुत सटीक प्रस्तुति....
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