रुक ... थोडा ठहर |
ओ ... उड़ते हुए बादल |
सवालों में उलझे अनसुलझे ,
पहलुओं को सुलझा जा |
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
मुंडेर में रखे उस लिफाफे को
अपने साथ ले चलना |
कुछ खास नहीं ...
अनसुलझे से कुछ सवाल हैं उसमे |
अक्सर तकलीफ देते हैं ,
जब सवालों के घेरे में लेते हैं |
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
मुंडेर में रखे उस लिफाफे को
अपने साथ ले चलना |
कुछ खास नहीं ...
अनसुलझे से कुछ सवाल हैं उसमे |
अक्सर तकलीफ देते हैं ,
जब सवालों के घेरे में लेते हैं |
34 टिप्पणियां:
अनसुलझे से कुछ सवाल अक्सर तकलीफ देते हैं ,
मीनाक्षी जी,,,कभी तो मेरे पोस्ट आइये,स्वागत है,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
शर्तों पर ज़िन्दगी नहीं जी सकते बहुत कठिन है ..
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/5.html
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
दिल में उतर जानेवाली भावनाओं को प्रस्तुति देती .
जीवन के अनलुलझे पहलुओं को सुलझाते चलना होगा । इतना अधिक भार रख कर अधिक चला भी तो नहीं जा सकता है ।
सत्य कठोर होता है ...
शुभकामनायें आपको !
बहुत बढ़िया |
बधाई ||
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा
बहुत सुंदर रचना
क्या बात
सवाल बहुत है ...पर उत्तर कम ...और वही दर्द को परिभाषित कर जाते हैं
बहुत २ शुक्रिया धीरेन्द्र सिंह जी :)
बहुत २ बहुत शुक्रिया रमाकांत सिंह जी |
रश्मि दी सिर्फ लिंक कोई कमेन्ट नहीं :) बहुत बहुत शुक्रिया दी आप मेरे ब्लॉग में आई आभार |
सच कहा प्रवीन जी पर क्या करे न चले भी तो कहाँ जाएँ और जब तक जिन्दगी ये अनसुलझे सवाल तो सर उठाते ही रहेंगे फिर घबराना कैसा |बहुत २ शुक्रिया प्रवीण जी |
सच कहा प्रवीन जी पर क्या करे न चले भी तो कहाँ जाएँ और जब तक जिन्दगी ये अनसुलझे सवाल तो सर उठाते ही रहेंगे फिर घबराना कैसा |बहुत २ शुक्रिया प्रवीण जी |
बहुत वक्त बाद हमारे ब्लॉग में आप दिखे सतीश जी हमारा उत्साह बढ़ाते रहने का तहे दिल से शुक्रिया |
बहुत वक्त बाद हमारे ब्लॉग में आप दिखे सतीश जी हमारा उत्साह बढ़ाते रहने का तहे दिल से शुक्रिया |
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी मैं आपकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ की आपने मुझे चर्चा मंच में एक बार फिर से आमंत्रित कर मेरा उत्साहवर्धन किया है मैं आपकी बहुत शुक्रगुजार हूँ |
बहुत २ शुक्रिया रविकर जी |
महेन्द्र श्रीवास्तव जी मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगी आपने हर बार मेरे उत्साह को कायम रखने में मेरी मदद की है एक बार फिर से आपका शुक्रिया |
मेरा उत्साह बढाने में आपका भी बहुत बड़ा हाथ है मैं आपका दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ बहुत २ शुक्रिया |
आज 14-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
.... आज की वार्ता में ... हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा ? इतना मजबूत सिलेण्डर लीक हुआ तो कैसे ? ..........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
दिल को छू गयी रचना...आभार
गहरा अतर्मन का चिंतन।सुंदर प्रस्तुति।
बहुत उम्दा रचना |
इस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार
यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!
संगीता स्वरुप दीदी जी आपके इस तरह बार - २ मेरा उत्साहवर्धन की मैं बहुत शुक्रगुजार हूँ आपका अपने ब्लॉग पर आना मेरा उत्साह बढाता है मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ |
बहुत - बहुत शुक्रिया Arvind Jangid जी मेरे ब्लॉग में आकर मेरी हिम्मत बढ़ाने का शुक्रिया |
Devendra Dutta Mishra जी आपने मेरी रचना में लिखे भावों को समझा इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया |
काव्य संसार आपने मेरा उत्साहवर्धन कर मुझे और आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया है इसके लिए दिल से शुक्रिया |
आएगा ज़रूर वो बादल...
लाएगा एक टुकड़ा इन्द्रधनुष भी अपने साथ...
:-)
सादर
अनु
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?....बहुत सुन्दर मीनाक्षी जी..कभी मेरी पोस्ट में आइये,स्वागत है,,,
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
Bahut sundar bhaav...:-)
बहुत अच्छी प्रस्तुति "ज़िन्दगी शर्तों की स्याही में घुल गयी,वो भी पहली ही बारिस में धुल गई,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बहुत अच्छी प्रस्तुति "ज़िन्दगी शर्तों की स्याही में घुल गयी,वो भी पहली ही बारिस में धुल गई,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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