लम्हा - लम्हा जिंदगी कुछ यूँ सिमट गई ,
जो मज़ा था इंतजार में अब सज़ा बन गई |
दर्द और ख़ुशी के बीच दूरियां जो बड गई ,
दिलो के दरमियाँ मोहोब्बत कम हो गई |
चिठ्ठी - तार बीते जमाने की बात हो गई ,
आधुनिक दौड़ में वो बंद किताब हो गई |
कुछ सवाल हदों की सीमाएं पार कर गई ,
वक़्त के साथ अपने कई निशां छोड़ गई |
खफा नहीं , जिंदगी हमपे मेहरबान हो गई ,
भडास निकली तो बात आई - गई हो गई |
10 टिप्पणियां:
बढ़िया है.....
अनु
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
खफा नहीं , जिंदगी हमपे मेहरबान हो गई ,
भडास निकली तो बात आई - गई हो गई |
मकता बिल्कुल पते की बात कह गया, बहुत लाजवाब.
रामराम.
ठीक ही है, उसी समय निपटाते बढ़ते रहिये।
खफा नहीं , जिंदगी हमपे मेहरबान हो गई ,
भडास निकली तो बात आई - गई हो गई |
बढ़िया...
ओह, क्या बात है,
बहुत सुंदर, बहुत सुंदर
मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
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दर्द और ख़ुशी के बीच दूरियां जो बड गई ,
दिलो के दरमियाँ मोहोब्बत कम हो गई |
निःशब्द करती बेहतरीन **********
लगता है मेरी टिप्पणियाँ स्पैम में जा रही हैं ...
वाह...बहुत बढ़िया...!
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