इससे भले तो हम पहले थे



बहुत अरसे बाद गली के नुक्कड़ में
हमें मिली थी वो |
शानों शौकत से लबरेज ,
गाड़ी से अभी - अभी उतरी थी वो |
हमें देखते ही तपाक से गले मिलने लगी |
जैसे  कैद से किसी पंछी को
कुछ वक्त उड़ने की इज़ाज़त मिली |
मेरी क्या सुनती , वो तो अपनी ही कहने लगी |
ऐसा लगा माँनो बरसो बाद , फिर वो बहकने लगी |
हमने भी हाथ में मोबाइल देख
चुटकी लेते हुए बात को पलटना चाहा |
उसकी बात को रोक फिकरा एक कसना चाहा |
लगता है आजकल , सारे जहाँ से जुडी हो ?
किसी और की नहीं , सिर्फ अपनी ही सुनाती हो ?
बस इतना सुनते ही वो रुआंसी सी होने लगी  |
खिलखिलाहट के बीच ,
उदासी की झलक साफ़ दिखने लगी  |
मोबाइल को देखते हुए , बस इतना ही कहने लगी |
इससे भले तो हम पहले थे  ...
दोस्तों के बीच जाकर हँसते - बोलते तो थे |
अब तो इसकी ट्रिन - ट्रिन से ही माहोल बिगड जाता है |
रांग नम्बर होने पर भी सवाल खड़ा हो जाता है |
और क्या कहूँ  ? ये तो बस मेरी सुरक्षा का एक बहाना है |
कही दूर होने पर पूरी घटना का ब्यौरा जो सुनाना है |



पुरस्कार कैसे दिए जाते हैं



कोई पुरस्कृत कैसे होता है ?
जैसे कोई जिंदगी भर बिना इनाम के
इनाम वाला बनता है |
वैसे कुछ लोग बिना नाम के भी ,
इनाम बटोरते रहते हैं |
तो कुछ नाम ऐसे भी हैं ,
जो इनाम की शक्ल ही , बदल देते हैं |
वे लेते हैं... तो खबर बनती है |
ठुकराते हैं.. तो खबर बनती है |
क्युकी ...  जो धूर्त होते हैं
वो ... बहुत मीठे होते हैं |
और मीठे फलो मै कीड़े भी जल्दी होते हैं |
तो बस उनकी मुस्कराहट को ही
तय करने दो .......?.
की  मुस्कान उनकी कितनी निर्दोष है |
और फिर वो  मिले , तो जानो
की उनकी आँखों में , चमक कितनी है  ?
आखिर में बस इतना कि मीठा  न मिले तो...
नमकीन से काम चलेगा ?
आजकल तो जेबकतरों और
उठाई -गीरों को भी इनाम
दे दिए जाते हैं |
तो अब हम कैसे ये तय करे की ...
पुरस्कार कैसे दिए जाते हैं ?      
                                   

कुछ अनसुलझे से पहलु



रुक ... थोडा ठहर |
ओ ... उड़ते हुए बादल |
सवालों में उलझे अनसुलझे , 
पहलुओं को सुलझा जा |
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
मुंडेर में रखे उस लिफाफे को
अपने साथ ले चलना |
कुछ खास नहीं ...
अनसुलझे से कुछ सवाल हैं उसमे |
अक्सर तकलीफ देते हैं ,
जब सवालों के घेरे में लेते हैं |

उफ़ ये जिन्दगी



लहरों के संग 
बढती जा रही है जिन्दगी ...
मेरी सुनती ही नहीं 
अपनी सुनाये जा रही है जिन्दगी |

बाहर आने दूँ जज्बातों को 
तो लोक - लाज और मर्यादा ...
भीतर संभालूं तो
तो  घुटन , उससे भी ज्यादा |

कम शब्दों में बहुत कुछ
समझा रही जिन्दगी ,
बहुत अपनी और थोड़ी
मेरी सुना रही है जिन्दगी |

खामोश लहरों के संग
गीत गा रही है जिंदगी ...
सोचते हैं किसको छोडे ,
किसको थामें ...
जरा - जरा से दर्द में
दिल थाम लेती है जिन्दगी |

राह में रुक रुककर सबक
सीखा रही है जिंदगी ...
व्यक्तित्व कुछ तो हैं अब
सिमटने को आमादा
फिर भी तेरी - मेरी ही ...
करती जा रही है जिन्दगी |
अपने आप से बेखबर
खुद को मिटाए जा रही है जिंदगी |