हुस्न
हुस्न को संवरनें की जरूरत क्या है |
सादगी भी तो कयामत की नज़र रखती है |
हुस्न जब - जब बेपर्दा होता है |
ज़माने से हर बार रुसवा होता है |
सुना है आजकल हुस्न का अंदाज़
कुछ बदला - बदला सा लगता है |
पहले हुस्न परदे की ओट में रहा करता था |
आज सरे राह नज़रे कर्म हुआ करता है |
पहले उस तक पहुंचने को लोग तरसते थे |
अब न चाह कर भी वो हर राह से गुजरता है |
चिलमन में छुपे हुस्न का अंदाज़ ही निराला था |
उसके दीदार में बिछी आँखों का नशा भी सुहाना था |
अब न वो हुस्न है न चाहने वालों का अंदाज़ बाकि है |
अब तो बदला - बदला सा ये सारा जहां नज़र आता है |
चाहने वालों ने भी अपना अंदाज़ कुछ बदला है |
अब वो भी सरे राह का नज़ारा देखते फिरते हैं |
जब हुस्न बेपरवाह है तो...
चाहने वालों की इसमें क्या खता हैं ?
फिर उनके सर दिया गया इल्ज़ाम ...
उनकों बे मतलब में दी गई एक सज़ा है |
फिर उनके सर दिया गया इल्ज़ाम ...
उनकों बे मतलब में दी गई एक सज़ा है |
खुद को महफूज एसे रखो की चाहने वाला भी
तुम्हारे हुस्न पर रशक खाने लगे |
आपके हुस्न पर वो खुबसूरत गज़ल बनाने लगे |
आप भी उसमें झूम कर खुद को जान सको |
अपनी खूबसूरती के दो लफ्ज़ तुम भी उसमें बोल सको |
10 टिप्पणियां:
बहुत ही उम्दा
waah ... sau fisadi baat
बहुत ही बढ़िया!
bahut jald aisa lagne laga jaise aapke shabd bolte hon...:)
badhai!
नहीं नहीं ऐसी बातें दूसरों को करने देनी चाहिये।
shukriya doston
दो लफ्ज़- ''बहुत खूब''
चिलमन में छुपे हुस्न का अंदाज़ ही निराला था |
उसके दीदार में बिछी आँखों का नशा भी सुहाना था |
अच्छी पंक्ति लगी. एक फ़िल्मी गीत का टुकड़ा याद आ रहा है...नज़रें न होतीं नज़ारा न होता तो दुनिया में हसीनों का गुज़ारा न होता.
बहुत बढ़िया लिखा आपने.लगे रहिये मुन्ना भाई.
waah... itna sach... parda utha diya... nazara dikha diya...
सहजता का आकर्षण अप्रतिम है।
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