वो कहता है , " मुझमे अब वो पहले जैसी कोई बात ही नहीं |
मैंने कहा , " तेरे दिल में मेरे लिए अब वो , ज़ज्बात ही नहीं |
वो कहता है , " मेरी कशिश में पहले जैसी खलिश ही नहीं |
मैंने कहा , " तेरी चाहत में अब वो बेइंतहा तड़प ही नहीं |
उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |
उसने कहा , " बार - बार बदलना ये फितरत में नहीं मेरे |
मैंने कहा , " बेवफा ही सही फिर भी वफा की चाह रखती हूँ |
मायूस होकर , " भूल जाना हमें अब और दर्द न सह पायेंगें |
मैंने कहा , कैसे भूलें ?
तेरे सिवा किसी और को दिल में रख ही न पाएंगे |
मैंने कहा , " तेरी चाहत में अब वो बेइंतहा तड़प ही नहीं |
उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |
उसने कहा , " बार - बार बदलना ये फितरत में नहीं मेरे |
मैंने कहा , " बेवफा ही सही फिर भी वफा की चाह रखती हूँ |
मायूस होकर , " भूल जाना हमें अब और दर्द न सह पायेंगें |
मैंने कहा , कैसे भूलें ?
तेरे सिवा किसी और को दिल में रख ही न पाएंगे |
9 टिप्पणियां:
वाह
बहुत सुन्दर...
बेहद सुन्दर एहसास...
जज्बातों का दरिया सा..........
सादर
अनु
बहुत - बहुत शुक्रिया अनु जी |
बहुत - बहुत शुक्रिया अनु जी |
उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |
बस यही इश्क है जो एक एहसास है
वाह जी वाह क्या बात है ये पंक्तियाँ तो गजब ढा रहीं हैं.
उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |
उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |
वाह , क्या बात है ...सुंदर
गहरा और स्पष्ट संवाद..
अनोखा अंदाज़,सुन्दर रचना !!
हर ख्वाइस का जरूरी नहीं अहसास होता है।
जो सपने में दिखा वो हकीकत में कहाँ होता है।
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