बहुत अरसे बाद गली के नुक्कड़ में
हमें मिली थी वो |
शानों शौकत से लबरेज ,
गाड़ी से अभी - अभी उतरी थी वो |
हमें देखते ही तपाक से गले मिलने लगी |
जैसे कैद से किसी पंछी को
कुछ वक्त उड़ने की इज़ाज़त मिली |
मेरी क्या सुनती , वो तो अपनी ही कहने लगी |
ऐसा लगा माँनो बरसो बाद , फिर वो बहकने लगी |
हमने भी हाथ में मोबाइल देख
चुटकी लेते हुए बात को पलटना चाहा |
उसकी बात को रोक फिकरा एक कसना चाहा |
लगता है आजकल , सारे जहाँ से जुडी हो ?
किसी और की नहीं , सिर्फ अपनी ही सुनाती हो ?
बस इतना सुनते ही वो रुआंसी सी होने लगी |
खिलखिलाहट के बीच ,
उदासी की झलक साफ़ दिखने लगी |
मोबाइल को देखते हुए , बस इतना ही कहने लगी |
इससे भले तो हम पहले थे ...
दोस्तों के बीच जाकर हँसते - बोलते तो थे |
अब तो इसकी ट्रिन - ट्रिन से ही माहोल बिगड जाता है |
रांग नम्बर होने पर भी सवाल खड़ा हो जाता है |
और क्या कहूँ ? ये तो बस मेरी सुरक्षा का एक बहाना है |
कही दूर होने पर पूरी घटना का ब्यौरा जो सुनाना है |
7 टिप्पणियां:
नये विश्वों की खोज में पुराने विश्व भूल चुके हैं हम।
बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
ये तो सच ही है की नई तकनीक ने हम को ...अपनों से दूर ही किया हैं :)))
वाकई सच बात है, कहा हो पाता है किसी से मिलना जुलना..
उदासी की झलक साफ़ दिखने लगी |
मोबाइल को देखते हुए , बस इतना ही कहने लगी |
इससे भले तो हम पहले थे ...
दोस्तों के बीच जाकर हँसते - बोलते तो थे |
अब तो इसकी ट्रिन - ट्रिन से ही माहोल बिगड जाता है |
कहते है ना
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत,हम अपने गम से कब खाली
चलो बस हो चुका मिलना,ना हम खाली ना तुम खाली
.................
इससे भले तो हम पहले थे ...
दोस्तों के बीच जाकर हँसते - बोलते तो थे
कुछ हद तक संचार माध्यम ने हमें सचमुच पंगु सा बना दिया है हालांकि सूचना का सुन्दर माध्यम भी है . आपने मन की बात कह दी .सुप्रभात .
achchha bahana tha:)
wah jee wah...!
.
iss dursanchar ki kranti ne dur ko najdik kar diya, par najdik ko bahut dur...
bahut acchhi rachna.
is samasya ka bhi tod nikal aayega...vo din door nahi.
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