सबक



हर तरफ शोर सुन धरा ने निर्णय था लिया ,
बादलों को बगावत का प्रस्ताव लिख दिया |

उमड़ - घुमड़ के शोर ने हर शोर को दबा दिया ,
मूक तांडव ने इंसानी ज़ज्बातों को जगा दिया |

ऐसे भिगोया धरा को की लहुलुहान कर दिया ,
हर तरफ दर्द का भयंकर सैलाब ही ला दिया |

चीख - पुकार ने मानव मन को दहला दिया ,
तब - तक बादलों ने अपना काम कर दिया |

सबक सीखाने को धरा ने था ये काम किया ,
बादलों ने प्रकृति का रोष ही बयाँ कर दिया |

6 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना बधाई आपको

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

न जाने किसने किसको दण्ड दिया है।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

धरा व्याकुल...पीड़ा उमड़ी..
आन पड़ी विपदा की घड़ी... :(

~सादर!

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।

Ramakant Singh ने कहा…

ऐसे भिगोया धरा को की लहुलुहान कर दिया ,
हर तरफ दर्द का भयंकर सैलाब ही ला दिया |
प्रकृति की व्याकुलता का सुन्दर चित्रण