हर तरफ शोर सुन धरा ने निर्णय था लिया ,
बादलों को बगावत का प्रस्ताव लिख दिया |
उमड़ - घुमड़ के शोर ने हर शोर को दबा दिया ,
मूक तांडव ने इंसानी ज़ज्बातों को जगा दिया |
ऐसे भिगोया धरा को की लहुलुहान कर दिया ,
हर तरफ दर्द का भयंकर सैलाब ही ला दिया |
चीख - पुकार ने मानव मन को दहला दिया ,
तब - तक बादलों ने अपना काम कर दिया |
सबक सीखाने को धरा ने था ये काम किया ,
बादलों ने प्रकृति का रोष ही बयाँ कर दिया |
6 टिप्पणियां:
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
बहुत बढ़िया रचना बधाई आपको
न जाने किसने किसको दण्ड दिया है।
धरा व्याकुल...पीड़ा उमड़ी..
आन पड़ी विपदा की घड़ी... :(
~सादर!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।
ऐसे भिगोया धरा को की लहुलुहान कर दिया ,
हर तरफ दर्द का भयंकर सैलाब ही ला दिया |
प्रकृति की व्याकुलता का सुन्दर चित्रण
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