भूख से व्याकुल पेट
कुछ ऐसा रूप है धरती |
बिन पानी के मछली जैसे
रह रहकर है तडपती |
इक टक निहारती आँखे
किसी से कुछ नहीं कहती |
बस नैया को पार लगने की
एक आस में ही है जीती |
सागर में उठता ज्वार
पेट में हिलोरे जब है लेता
उसके शांत होने तक का
बस वो इंतज़ार ही करती |
भूख - प्यास की आग
पेट को इस कदर है तरसाती |
बंजर धरती को देख आसमान
जैसे आंसू बहाना हो चाहती |
आस के समंदर में ख्वाइशें
हिलोरे कुछ इस अंदाज़ से लेती |
सागर की गोद में जैसे नैया
रह रहकर है डोलती |
सारी जुगत लगाकर भी
जब कोई बात ही न है बनती |
तब हारकर वो इसे अपनी
किस्मत ही है समझती |
भूख को बसाकर फिर
इस बेजान रूह में दर्द भरे सफर का
फिर वो अंत है करती |
16 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर, एक लाइन याद आ रही है
भूख ने मजबूर कर दिया होगा,
आचरण बेच कर पेट भर लिया होगा।
अंतिम सांसों पर आ गया होगा संयम,
बेबसी में कोई गुनाह कर लिया होगा।
वाह बहुत खूब कहा दोस्त बहुत - बहुत शुक्रिया :)
बहुत सुन्दर भाव
बहुत २ शुक्रिया वंदना दोस्त |
देख कर दुख होता है कि एक ऐसा भी विश्व बसता है अपनी धरा पर।
अभिव्यक्ति के साथ चित्र भी बहुत मार्मिक
बहुत २ शुक्रिया प्रवीण जी |
बहुत - बहुत शुक्रिया संगीता दीदी |
बहुत सुन्दर भाव
bhaut hi khubsurat sargarbhit rachna....
sarthak abhivaykti...
बहुत - बहुत शुक्रिया संजय जी |
बहुत - बहुत्शुक्रिया सुषमा जी |
बहुत - बहुत शुक्रिया सागर जी |
भूखा इंसान को सपने देखने की हक नहीं,
पर भूखे पेट पर लात मारने का शौक रखता ये जालीम जमाना
भूखे को रोटी देने की ताक़त नहीं हैं ज़माने में,
पर भूखे की फोटो बेच कर पैसा कमाना जानता है जालीम जमाना
bhoonk ke dard ko bahut hi bemisaal tarike se aapne apni rachanaa ke maadhyam se bataayaa hai.bahut badhaai aapko.
मुझे ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है , की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (१६)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए / जरुर पधारें /
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