कहाँ रुकना कहाँ चलना
ये फन बखूबी जानते हैं हम |
जीवन के सफर को
तभी आसां बना पाते हैं हम |
आँधियों के रुख को
पहले से जान लेते हैं हम |
अंजाम को उसके तभी
आसानी से झेल पाते हम |
रुख देख हवाओं का
उम्र दिए की लंबी करते हम |
सुनकर बादलों का शोर
सफर को अंजाम देते हम |
लहरों को देखकर
नाव को सागर में डालते हम |
तूफानों की दिशा जानकर
मुंह कश्ती का मोड लेते हम |
डरकर काँटों की चुभन से
फूलों से झट मुँह मोड लेते हम |
खुशबूं का भान होने पर
लाकर उसे घर में सजाते हम |
टूटे न कोई रिश्ता
फिर खुद को मिटाते हम |
अपने को दरकिनार रख
अपनों का घर बसाते हम |
24 टिप्पणियां:
कहाँ रुकना कहाँ चलना
इस फन को बखूबी जानते हम |
जीवन के सफर को तभी तो
इतना आसान बना पाते हम |>>Bahut bahut bahu khhubsurat khayaalaat aur khubsurat pankhtiyaan.Ms.Minakshi Pant ji >>>
Hausal kabhi na dagmagaapaaye, chalte chalha zindagi k safar me ikgrash hokar|
har manjil kaise na aasaan ho jaaye. Himmat jinke apne ander ho usay koi kya jhuka paaye|RK
keep it madam. apki poems bahut achhe hain
kaise kab aur kis tarah se apni kis soch ko kiske saame rakhna hai aur kaise pesh karna hai kis ada o nazakat se .Ba-khoobi jaante hain aap.Kudos to you ...rk ehsaas ki ik kiran
हवाओं के रुख को देखकर
दिए की उम्र लंबी कर ही देते हैं हम |
गरजते बादलों का शोर सुनकर
सफर को अपने अंजाम देते हैं हम |jeene ka hausla hum banate rahte hain
टूटे न कोई भी रिश्ता
इसलिए खुद को मिटा देते हैं हम |
अपने को दरकिनार रख
फिर अपनों का घर बसा देते हैं हम |
वाह ..
आँधियों के रुख को
अक्सर पहले से जान लेते हैं हम |
उससे लड़ने का सामान
आसानी से तभी जुटा पाते हैं हम |
बहुत सही कहा है ..अच्छी प्रस्तुति
बहुत सही कहा है !
टूटे न कोई भी रिश्ता
इसलिए खुद को मिटा देते हैं हम |
अपने को दरकिनार रख
फिर अपनों का घर बसा देते हैं हम
sundar prastuti...
लहरों को देखकर जब
नाव को सागर में डालते हैं हम |
तूफानों की दिशा जानकर
कश्ती का मुंह मोड लेते हैं हम |
aur khoobsoorti bhi isi mein hai ki visham paristhitiyon se bach kar chala jaaye..
कहाँ रुकना कहाँ चलना
इस फन को बखूबी जानते हम |
जीवन के सफर को तभी तो
इतना आसान बना पाते हम
बहुत सुन्दर रचना.. आभार...
जीवन यही बिताते आये,
अपना सर्व लुटाते आये।
बहुत खूब..बहुत ही खूब.मीनाक्षी जी , बहुत सुन्दर लिखा है..
कहाँ रुकना कहाँ चलना
इस फन को बखूबी जानते हैं हम |
जीवन के सफर को
तभी इतना आसां बना पाते हैं हम | sundar rachna...
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना, बधाई.
बहुत सुन्दर/सार्थक/सकारात्मक रचना...
सादर...
टूटे न कोई भी रिश्ता
इसलिए खुद को मिटा देते हैं हम |
अपने को दरकिनार रख
फिर अपनों का घर बसा देते हैं हम |
bahut hi shunder bhav liye anokhi rachana.bahut badhaai aapko.
मुझे ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है , की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (१६)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए / जरुर पधारें /
bahut umdaa doorandesha ka bhaan dilaati post bahut achchi.
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! बधाई!
टूटे न कोई रिश्ता
फिर खुद को मिटाते हम |
अपने को दरकिनार रख
अपनों का घर बसाते हम |
बहुत सुंदर विचार और रचना.
बधाई.
टूटे न कोई रिश्ता
फिर खुद को मिटाते हम |
अपने को दरकिनार रख
अपनों का घर बसाते हम |
...सच अपनों का घर बसे इसके लिए क्या-क्या नहीं कर जाते है हम..
बहुत सुन्दर दिल का करीब से गुजरती पंक्तियाँ..
जीवन जीने की यही तो कला है ... सभी कुछ पहले से जानना फिर अपने आप को तैयार करना ...
सच में सब जानते हैं हम|
बहुत सुन्दर रचना...
आँधियों के रुख को
पहले से जान लेते हैं हम |
अंजाम को उसके तभी
आसानी से झेल पाते हम |
बहुत खूब..
waah bahut badiya...
बहुत प्यारी कविता...
बधाई.
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