अंजाने एक शोर ने
फिर मुझको चोंका दिया |
ऐसा लगा की फिर कंहीं
कोई मंजर बिगड गया |
पास जाकर देखा तो
किताबों में थी बहस छिड़ी |
करीब जाकर सुना तो
बात का पता चल गया |
सभी ग्रंथों की आपस में
ये अनबन थी चल रही |
किसका ग्रन्थ संस्कारी
उनमे ये शर्त थी लगी |
खुद - खुदको न जानकार
बात इंसानी बहस पर थी टिकी |
इसलिए बिना सोचे - समझे
आपस में ये बहस थी छिड़ी |
बहुत वक्त गुजर गया
जब न कोई फैसला हुआ |
फिर छाई थोड़ी चुप्पी
और समां बदल गया |
सब एक दूसरे से
खुश हो - होके गले मिलने लगे थे |
सब ग्रंथों का एक ही है कहना
ये कह - कहकर सब खुश हो रहे थे |
अब साथ - साथ रहेंगे
उन्होंने तय था कर लिया |
साथ रहने में ही है मज़ा
सबने अब ये फैसला था कर लिया |
10 टिप्पणियां:
ये बात इंसान कब समझेगा ..
बहुत ही सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति है आपकी.
सही कहा है आपने 'इंसान इंसान से जुदा नही'
आपस में अनबन छोड़ मेल मिलाप बढाईये
सद् ग्रंथों की इसी बात को समझिए और समझाईये
insaan aakhir insaan hee hai...
एक ग्रन्थ के सौ अर्थ निकाल लेते हैं आदमी, पुस्तकों को लड़ने की क्या आवश्यकता?
सुन्दर प्रस्तुति
सब ग्रंथों का एक ही है कहना
ये कह - कहकर सब खुश हो रहे थे |
अब साथ - साथ रहेंगे
उन्होंने तय था कर लिया |
साथ रहने में ही है मज़ा
सबने अब ये फैसला था कर लिया
umda prastuti...yahi sachchai hai.
सार्थक पोस्ट.....
very profound......
Kya baat hai pant ji sachhai se rubru
सभी सम्मानित मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया :)
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