राह में सफर तो सब , करते हैं साथ - साथ
धर्म के नाम पर , जाने फिर क्यु बबाल है |
धीरे - 2 बना रहे हैं लोग , मुझसे दूरियां
मेरी ऊँचाइयों का , क्या ये पहला पड़ाव है |
मंजिल की और बड़े जब , तो सब हम ख्याल थे
अब न जाने क्यु , और किस बात पर तनाव है |
मुश्किल से डगर में , मिलते हैं कभी - कभी
पर हमने सुना है , कि दोनों में मनमुटाव है |
कुछ लोग थे ऐसे , जिन पर हमें एतबार था
लगता है उन लोगों का भी अब , खाना खराब है |
कुछ का कहना है , कि गरीबी कुछ और साल है
हमें तो है लगता ये उन सबका , ख्याली पुलाव है |
29 टिप्पणियां:
वाह...
बहुत बढ़िया...
कुछ लोग थे ऐसे , जिन पर हमें एतबार था
लगता है उन लोगों का भी अब , खाना खराब है |
लाजवाब..
सादर
अनु
बढिया है,
बात वहां तक पहुंचे, जहां आप पहुंचाना चाहती हैं
बहुत बढिया
सहना, फिर रहना,
सब धीरे धीरे सीखेंगे।
बहुत ही बढ़िया
सादर
वाह क्या बात पढ़ कर बस मज़ा आ गया.
गहरे भाव लिए रचना...
बहुत बढ़िया...
:-)
बहुत खूब ...
chalate chaliye samay ke saath ....
sundar rachna ...!!
बहुत - बहुत शुक्रिया @ expression जी |
बहुत बहुत आभार महेंद्र श्रीवास्तव जी |
बहुत - बहुत शुक्रिया प्रवीण जी |
बहुत २ शुक्रिया यशवंत |
बहुत बहुत धन्यवाद अनंत जी |
आपका बहुत शुक्रिया रीना जी |
बहुत २ शुक्रिया संगीता दीदी |
तहे दिल से शुक्रिया अनुपमा त्रिपाठी जी |
तहे दिल से शुक्रिया अनुपमा त्रिपाठी जी |
धीरे - 2 बना रहे हैं लोग , मुझसे दूरियां
मेरी ऊँचाइयों का , क्या ये पहला पड़ाव है |
मंजिल की और बड़े जब , तो सब हम ख्याल थे
अब न जाने क्यु , और किस बात पर तनाव है
बहुत बढ़िया
अभिव्यक्ति को उचित शब्द प्रदान किये जाए तो खयाल स्पस्ट हो जाते हैं .
क्या कहें ..इन दिनों हमारे भी कुछ ऐसे ही खयाल हैं !
शुक्रिया वंदना जी :)
शुक्रिया वाणी गीत जी :)
अच्छी एवँ समयोचित रचना है.
कुछ का कहना है , कि गरीबी कुछ और साल है
हमें तो है लगता ये उन सबका , ख्याली पुलाव है |....theek lagta hai aapko....
शुक्रिया पुरुषोतम पाण्डेय जी :)
बहुत - बहुत शुक्रिया मृदुला जी |
सभी पंक्तियाँ गूढ़ अर्थ समेटे हैं...बहुत पसंद आई रचना|
achchhee rachanaa
बहुत - बहुत शुक्रिया ऋता शेखर मधु जी |
बहुत बहुत शुक्रिया अजय कुमार जी |
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