किस कदर दोहरी संस्कृति है ये
जहां तात्कालिक लाभ हो
वहां हम आधुनिक ...
वैसे पूरी मनोरचना में पुरातन
क्या तुम्हे नहीं लगता ?
हाँ कुछ ऐसे ही तो
जीवन बसर करते हैं हम लोग
सत्य को खोजने के लिए हमने
सुविधापरस्ती से सम्बन्ध बनाया है
हमारी मूल समस्या यही है
सत्य की खोज ...
पर न जाने उस सफर का आरम्भ
कब होगा ?
अब तक तो पुराने और नये के बीच में
एक दंद्न्द भर है
न पुराना पूरा और अब भी अधुरा
सफर जारी है ...
एक खुबसूरत मंजिल की तलाश को लेकर |
7 टिप्पणियां:
क्या कहने, बहुत सुंदर
अच्छी रचना..
लाभ नहीं तो त्यक्त डगर है,
गाँव पददलित सजा नगर है।
बहुत ही प्रभावशाली.
रामराम.
प्रभावी रचना ... सुन्दर भाव मय रचना ...
खुबसूरत अभिवयक्ति......
हमारी मूल समस्या यही है
सत्य की खोज ...
पर न जाने उस सफर का आरम्भ
कब होगा ?
पहला कदन उठ जाये तो यात्रा शुरू हो ही जाती है, बहुत सुंदर.
रामराम.
तलाश जारी रहें .....ये ही तो जिंदगी है
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