दर्द सीने में हो तो नगमों की जरूरत क्या है |
जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है |
गर आंसूं आँख में है तो खुद ग़ज़ल है इन्सां |
ऐसे एहसास साथ हों तो शेरों की जरूरत क्या है |
गौर से देखो तो सूरज से बड़ी है दुनिया |
फिर भी काली अंधेरों में पड़ी है दुनिया |
राज़ को कैद किया जब - जब इन्सां ने यहाँ |
बंद तालाब में घुट - घुट के सड़ी है दुनिया |
इसको बनाने में तो मेहनत गरीबों की हुई |
फिर भी अमीरों के पाँव में पड़ी है दुनिया |
जिनकी बात मानकर सब सच - सच कहा था मैंने |
आज उसी इन्सां के पक्ष में खड़ी है दुनिया |
सपनों के एहसास तो हैं नर्म मखमल जैसे |
कैसे गुजरेगी सख्त पत्थर जैसी है दुनिया |