
सूरज ने बादलों कि ओट से जो झाँका है !
सारी प्रकृति पर नशा ही तो छाया है !
फूल और पत्तियों मै भी उत्साह जागा है !
जेसे कुच्छ कर गुजरने का ये नज़ारा है !
फसल भी लहलहा के अंगड़ाईयां ले रही हैं !
जेसे पल भर मै कुच्छ गाने जा रही है !
मंद पवन भी अठखेलियाँ लगाती हैं !
जेसे मोसम के बदलाव का जश्न मनाती है !
पंछी भी मस्त गगन मै मदहोश उड़ते हैं !
जेसे अपनी ख़ुशी का वो इजहार करतें हैं !
गिलहरी नाच - नाच के ये जताती है !
जेसे वो बार - बार हमे मुहं चिढाती है !
सर्दी के मोसम का ही तो ये नज़ारा है !
वर्ना गर्मी मै धूप को किसने.......... पुकारा है !