
रुक ... थोडा ठहर |
ओ ... उड़ते हुए बादल |
सवालों में उलझे अनसुलझे ,
पहलुओं को सुलझा जा |
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
मुंडेर में रखे उस लिफाफे को
अपने साथ ले चलना |
कुछ खास नहीं ...
अनसुलझे से कुछ सवाल हैं उसमे |
अक्सर तकलीफ देते हैं ,
जब सवालों के घेरे में लेते हैं |
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
मुंडेर में रखे उस लिफाफे को
अपने साथ ले चलना |
कुछ खास नहीं ...
अनसुलझे से कुछ सवाल हैं उसमे |
अक्सर तकलीफ देते हैं ,
जब सवालों के घेरे में लेते हैं |