
फिर जवां होगी , नई बयार
पेड़ - पौधों से होकर अंगीकार
नई कोंपले सर उठायेंगी
नया किरदार फिर निभाएंगी
पतझड़ दिल दुखायेगा
पेड़ों से पत्ते उड़ा ले जायेगा
हवा भी करतब दिखायेगा
टूटे - तिनकों को बिखरा जाएगा
ये नित नया रंग बदलता मौसम
धुल - मिटटी में सनकर
धरा के सीने को चीरकर सर उठाएगा
बारिश की बूंदों से प्यास बुझाएगा
सूरज की रौशनी में तपकर ...
इंसा की प्यास भी मिटाएगा
इंसा का पेट भरता जायेगा |