आरज़ू


करवटे  लेते  गये हालत मेरे जेसे जेसे
दोस्त भी मेरे बदलते चले गए वेसे वेसे
कोंन रोता है किसी और की खातिर ये दोस्त
सबको अपनी ही किसी बात पर रोना आया
कहते है म़ोत जिंदगी की दुश्मन है
जिंदगी भी कभी जान लेके जाती है
ठोकर किसी पत्थर से अगर  खाया है मैने
मंजिल का पता भी उसी पत्थर से मिला है
अब क्या जवाब  दू मै कोई ये तो बताओ
वो मुझसे पूछते हैं की बोल तेरी आरज़ू  क्या है ?

बेटियां

कितनी प्यारी होती हैं बेटियां 
हर घर को रोशन बनाती हैं बेटियां 
पापा की भी दुलारी होती हैं बेटियां 
ओस की बूंदों सी नम होती हैं बेटियां 
कली से भी नाजुक होती हैं बेटियां 
सपर्श मै अपनापन ना हो तो रो देती बेटियां 
रोशन करता बेटा तो सिर्फ एक ही कुल को 
दो -दो घरों की लाज निभाती हैं बेटियां 
सारे जहां से प्यारी होती हैं बेटियां 
पलकों मै पली , सांसो मै बसी धरोहर होती हैं बेटियां 
विधि का विधान कहो, या दुनिया की रस्मो को मानो
मुठी मै भरे नीर सी होती हैं बेटियां 
चाहे सांसे थम जाये बाबुल की  ,
हथेली पीली होते ही पराई हो जाती बेटियां  

नारी जीवन की एक कहानी

कल नारी जीवन की एक कहानी सुनी !
उसी की कहानी उसी की जुबानी सुनी !
३० साल जिसने उस घर को संजोने मै लगाया !
आज उसी घर को छोड़ने का उसने मन बनाया !
खटी- मीठी यादे उसे इतने लम्बे समय तक रोके तो रही
पर उसे  बेइंतहा  दर्द  भी देती रही !
सबने अलग अलग ठंग से उसका प्यार तो लिया !
पर उसकी झोली मै तो हर पल दर्द  ही दिया !
घर से निकलते वक़्त भी आंसुओ  ने उसका दामन न छोड़ा !
क्युकी उस वक़्त भी उसे उसी घर का ख्याल आया !
कितना समर्पण है नारी शक्ति मै ,
इतना दर्द आँचल मै समेटे रहती है !
फिर भी  हर पल प्यार बाँटती  फिरती है !
काश इसको कोई समझ सकता !
तो इसका भी दामन खुशियों से भर जाता !

घमंड किस बात का

हम किसका गुमान करते हैं ?
ग़ोर से देखें  तो यहाँ .................
कुछ  भी तो अपना नहीं !
रूह भी तो खुदा की बख्शी नेमत है !
जिस्म है की मिट्टी  की अमानत है !
क्यु न एक जुट होके रहते हम .........
एसी क्या चीज़ है जिसपे गर्व करते हम ?
दोलत  से क्या कुछ  खरीद पाएंगे ?
क्या इसीके बलबूते पर दूर तल्ख़ जायेंगे ! 
इसका तो आज यहाँ ..........
कल ...कही और ठिकाना है  !
ये मत भूलो,  इसे आज नहीं तो कल ........
हर घर घर मै  जाना है !
इसे पकड़ के न रख पाएंगे हम ,   
फिर इंसा होके इंसा को ठुड़ते नज़र आयेंगे !
तो फिर आज ही से ये वादा..........
 खुद से करते हैं हम , 
इंसा  हैं तो इंसा की तरह ही रहते हैं !
कभी गुमान के फेरे मै न ही पड़ते हैं !

माँ का दुलारा

माँ माँ के इस क्रंदन ने ,
हर माँ को आज जगाया है !
मत रो माँ के दुलारे तू ,
तेरे सर पे तो हर माँ का साया है !
तू क्यु इस कदर बैचेन हो जाता है ,
ये तो सब उसका ही नियम बनाया है !
जो इस धरती  पर आता है ,
उसको तो इक दिन जाना है !
माँ शब्द ही एसा निराला है ,
जो सबके मन को भाता है !
फिर तुम इससे केसे बचते ,
और अपनी बात न फिर कहते !
माँ ने तो अपना फ़र्ज़ अदा किया ,
तेरे हाथो मै देश को सोंप दिया !
अब तुने फ़र्ज़ निभाना है ,
उसका बेटा बन दिखलाना है !
फिर उसकी ही गोदी मै बैठकर ,
अपना ये दर्द मिटाना है !
और हर माँ की दुवाओ को  ,
अपनी ताक़त फिर से बनाना है !

इंसानियत का परिचय

हमने तो जहां तलख भी नज़र डाली है ,
जिंदगी हर पल  बेजार ही नज़र आई है !
इंसा - इंसा को सीडी भर फकत समझता है ,
और अपने मतलब के लिए ही बस जीता है !
हमने तो हर हाल मै प्यार ही प्यार बांटा है ,
पर अंजाम कुच्छ भी नज़र नहीं आया है !
लोग तो बस मतलब के लिए ही जीते हैं ,
काम खत्म होते ही अपनी राह निकल लेते  हैं !
क्या यही इंसानियत का परिचय है ,
हम तो अब तक ये न जान पाए हैं !
कोंन कीससे क्या पाना चाहे  है ,
क्यु  दिल की बात दिल दबाये चले  जाये  है !
जो बात आपस की है उससे क्यु न कह पाए है ,
जिससे आपस की दुरी को और भी कम कर पाए है  !
इंसा का - इंसा से  वही पर परिचय हो जाता ,
उसके सफ़र का अंत भी शायद ख़तम हो जाता ?