स्वागत 2011


चली चली देखो चली चली 
इतिहास के पनों मै अपना नाम ................
दर्ज करने 2010 चली  !
सुख - दुख का पिटारा 
हमको देकर ............
वो देखो...वो  अपने देश चली !
कहाँ हम भूलेंगे अब उसको 
हमने ही तो जोड़ा था उसको 
जेसे पतंग  संग डोर बंधी , 
चली - चली , चली - चली 
देखो वो तो हमसे कितनी दूर चली !
कितना समर्पण उसमे देखो 
अपना सब कुच्छ हमको सोंप 
वो ख़ाली हाथ ही पार गई 
चली चली , चली चली 
बिटिया बन वो तो  ससुराल चली !
न घमंड न कोई बेर 
बस इंसा की ये हाथों की मेल  
सबको सब कुच्छ दे ही दिया  
फिर से दामन अपना समेट 
इस दुनियां से नाता  तोड़ चली  
चली चली  , चली  चली
2011 को अपना काम सोंप चली !
कानों मै चुप से स्वागत ही  कहा 
फिर अपना दामन धीरे से छुडा ............
2011  के शोर मै खो सी गई ! 
देखो तो वो सच मै चली चली  !
आओ हम भी कुच्छ ...........
एसा करे 2010  को प्यार से
अलविदा कहें !
नव वर्ष के स्वागत मै लगें !
बधाई दोस्तों !

भविष्य का सम्बन्ध वर्तमान से

  इतिहास गवाह है इन्सान ने जब भी किसी विपदा ( विपत्ति ) का सामना अगर किया है  तो उसका जिम्मेदार वो खुद होता है | उसी के  द्वारा की हुई गलती का भुगतान वो बाद में  करता है  , क्युकी जब हम कोई फैसला  लेते हैं तो हमे सिर्फ वर्तमान का ही सुख दिखता है और उसी  ख़ुशी का भुगतान हमें  भविष्य में  दर्द सह कर करना  होता है | चलो आज हम इतिहास के कुछ  एसे ही वाकयों  पर नज़र डालते हैं जिससे सारी दुनियां अच्छे से परिचित है | अब रामायण को ही ले लेते हैं कौन  नहीं जानता रामायण को , इनके किरदारों को मेरे ख्याल से सभी भारतीय इस बात से वाकिफ हैं कि  ये हमारे देश का बहुत पवित्र  ग्रन्थ है | हम इसे पड़ते हैं इसकी पूजा करते हैं और दशहरे के आगमन के साथ ही  हर घर में  इसकी चर्चा सुनी जा सकती है | रामायण हमें इन्सान के हर रूप से पहचान करवाने का मौका देते हुए इंसान के हर किरदार से ताल्लुख करवाती है जैसे  किस तरह से चाल चल कर  केकई ने राम को बनवास दिया इससे उसकी चालाकी का पता चलता है फिर चारों भाइयो का एक दुसरे के प्रति समर्पण , सीता का पति के लिए त्याग , पिता का बेटे के प्रति प्यार और  रावण का लालच आदि |
रामायण में   इन्सान के हर चरित्र का  चित्रण बखूबी से  दिखाया गया है | हमारी हर पीड़ी उसे पढ़ती  है उसका बखान भी करती है पर अफ़सोस ,  उसे बहुत प्यार से समेट के रख भी देती है | हर एक के साथ बैठ कर श्री राम . सीता माँ , लक्ष्मण , भारत के बारे में सब चर्चा भी करते हैं की उन्होंने कितना बड़ा त्याग किया , लक्ष्मण ने श्री राम का कितना साथ दिया पर जिस मकसद को पूरा करने के लिए श्री राम , कृष्ण ने ये लीलाएं रचाई क्या  हमने उन्हें अपने जीवन मै ग्रहण किया ? नहीं किसी ने नहीं !  अरे .....जो खुद अंतर्यामी हो सारी सृष्टि जिसके इशारों पर चलती  हो , जिसकी रज़ा से एक पत्ता भी नहीं हिल पाता हो , उसे ये सब कष्ट सहने की जरुरत ही क्या थी ! ये सब हमारे लिए किया गया एक खूबसूरत प्रयास था की इन्सान ..........आगे जब भी कोई कदम उठए तो वो रामायण , महाभारत और बड़े - बड़े गर्न्थों से सबक सीख  सके  | उसने तो हर कदम पर हमारा साथ देना चाहा पर हमने कभी कोशिश ही नहीं की | हमने उसे सिर्फ और सिर्फ अपने  धर्म  का  नाम दे कर ही संभाल लिया | अगर हम सच में  रामायण और महाभारत जैसे  ग्रंथों को सम्मान देना चाहतें हैं तो उन सभी में  घटित सदाचार की बातों का अनुसरण करना ही होगा तभी हमारे ग्रन्थ सार्थक कहलायेंगें , वर्ना इन ग्रंथों को सिर्फ पूजना और सम्मान देना अपने आप से ही नहीं पूरी सृष्टी से धोखा होगा अगर हम इन से कोई सीख न ले पायें तो .............
                गाँधी जी ने बहुत खुबसूरत बात कही थी ........................
    भूल करके सिखा जाता है ,
              लेकिन इसका मतलब  यह नहीं
                          
 कि जीवन भर ..  भूल ही की जाये !
                                                                           अब देखो न अमेरिका ने अपने बल पर कभी किसी देश में तो कभी किसी देश में अपना अधिकार जमाना चाहा जिसका भुगतान उसे वर्ड ट्रेड सेंटर ......... के रूप में  देना पड़ा | अब पाकिस्तान को ही ले लो तालिबानों को शरण दी की वो उनकी मदद करेंगे पर नतीजा ये हुआ की आज वो ही इन पर भारी  पड़ रहें हैं उनके ही देश में रहकर तालिबान उन्ही का खून बहाने में लगे हैं  उनके जिन्दगी का मकसद न जाने क्या है ?  पर नाम जेहाद का लेते हैं जिसका इंसानियत से दूर - दूर तक  कोई भाईचारे से कोई परिचय ही न हो , तो वो इस शब्द के मतलब को भला क्या जान पाएंगे वो इन्सान की भावना को कैसे  समझ सकतें हैं | इंसान    प्यार , नफरत , आक्रोश , घमंड और समर्पण का एक पुतला भर है बस हमें  अपने अन्दर से अच्छे - अच्छे संस्कारों को उभारना है अपने अन्दर संयम लाना है | अगर इन्सान ही नहीं रहेगा तो धर्म का अर्थ ही कहाँ रहेगा क्या इतनी छोटी सी बात भी हम समझ नहीं पा रहें ? अब हम अपने देश को ही लेते हैं हमारे देश में  होने वाली छोटी - बड़ी घटना के जिम्मेदार  क्या सिर्फ वो लोग हैं जो वारदात करते हैं नहीं ये सच नहीं ......... क्युकी हमारी  समय पर न  कि गई लापरवाही ही उस वक्त के वारदात का कारण बनती है | तो अगर हम वर्तमान में  ठीक से काम करते हैं तो हमारा भविष्य बहुत हद तक सुरक्षित हो सकता है क्युकी बिना वर्तमान के भविष्य संभव ही नहीं | तो क्यु न हम अपने इतिहास  के पन्नों से ही कुछ अच्छा सीखकर उसे अपने जीवन को और खूबसूरत बना दें | 
                           

चुनो अपनी राहें


फकत मुकद्दर पर जिन्दा रहना ,
           निकम्मापन और बुझदिली है !
अमन की दुनियां मै मेहनत करके ,
            अपना हिस्सा वसूल करलो तुम !
उजड़ जायेगा चमन ये बाक़ी ,
             गर और कांटें न हटाओगे तुम !
गुलिस्तान की गरचे खेर चाहो ,
            तो चंद कांटें कबूल  करलो तुम ! 

अमन का पैगाम



हर किसी की जिंदगी मै एक मकसद होता है !
खुद बेवफा हो लेकिन तलाश वफ़ा की रखता है !!
                                     अगर हम दिल से ये चाहते हैं की हम अपने देश मै अमन का पैगाम लाये तो हमें सबसे पहले अपने आप को बदलना होगा सिर्फ किताबो मै पड़ कर लिख कर या मुहं  से कह देने भर से हम अमन हरगिज़ नहीं ला सकते ! अब देखो न हमारा देश तो पहले से ही इतने बड़े विद्वानों , ज्ञानियों से भरा पड़ा है फिर हम अब तक पूरी तरह से अपने देश मै  अमन क्यु  नहीं ला पायें   ! शायद हमरा देश के प्रति दिए  गये  योगदान मै कोई कमी तो इसका कारण नहीं ? क्युकी जब हम किसी अच्छे और शांतिपुरण  देश की कामना करते हैं , तो उन सब मै हमारी गिनती खुदबखुद हो जाती है और उसे सुंदर बनाने और  बिगड़ने का काम हमारा भी होता है फिर वो गलती कितनी भी छोटी क्यु  न हो ! फिर हम ओरों से अलग केसे हो सकते हैं हम भी तो उसी अंश का हिस्सा हैं  ! अब देखो न किसी की तरफ इशारा करके ये कहना की वो शख्श खराब है , वो गंदा है , उसे तमीज़ नहीं या फिर उसे किसी की फ़िक्र ही नहीं कितना आसान  सा होता है ! क्या हम इतनी आसानी से अपने दोष गिनवा पाएंगे हरगिज नहीं क्युकी एसा करना हमारे लिए बहुत कठिन हो सकता है ! इसीलिए जब किसी अच्छे  या बुरे  देश की बात होती है तो उस देश की नीवं  हमारे अपने घरों से ही हो कर निकलती है ! सबसे पहले हम ........ हमारे रिश्तेदार ........हमारा समाज .....और फिर देश की बात आती है ! क्या हम अपने परिवार मै वो संस्कार , प्यार , सम्मान  हर तरह का फ़र्ज़  बखूबी निभा पा रहें हैं क्युकी अच्छे और बुराई की शुरुवात तो हमारे घर से ही होने वाली है अगर हमारा व्यव्हार घरके हर सदस्य के प्रति  प्रेम पूर्ण होगा और उनमे समर्पण की भावना होगी तभी तो हम अपने समाज मै खूबसूरती ला पाएंगे ! और अगर हमारा व्यव्हार उनके प्रति क्रूर होगा तो वो बाहर जाकर उस नफ़रत से समाज मै जा कर  चोरी , लूटपाट  , बलात्कार और उग्रवाद को ही जन्म देंगे ! क्युकी इन सब बीमारियों की नीवं  तो घर से रखी गई है न ..............जो वो अपने अन्दर के तूफान को शांत  करने के लिए समाज वालों  को परेशान  करके करने वाला  है ! जिससे अमन और शांति जेसे शब्द अपने आप ख़त्म   होने लगते हैं ! तो हम तो ये भी कहते हैं !...............
                       सच है की तहजीब ही एक लाख की जान होती है !
                             फूल खिलते हैं तो आवाज़ कहाँ होती है !!
                                          आज फिर से अगर हम अपने देश को एक खुबसूरत देश बनाना चाहते हैं , तो हमे अपने परिवेश को बदलना होगा और  हमे अपने परिवार और देश को इतनी खुशियाँ इतना प्यार देना होगा की उनके अन्दर से नफ़रत किस बला का नाम है..................शब्द ही जुबान से ख़त्म हो जाये ! क्युकी मनुष्य जब भी कोई गलत काम करता है तो किसी बात से अवसादग्रस्त हो कर ही करता है हमे कुच्छ अच्छा करने के लिए दूर जाने की कोई आवश्कता भी नहीं है हमारे आस - पास ही इतना बड़ा समाज बसता  है , कि अगर हम मिलकर किसी एक  के दिल मै भी प्यार भर सके तो यु समझो की हमने अमन को वापस  लाने के बीज बो दिए , पर उसके लिए अपने आप मै ........... संयम , दुसरो के प्रति प्यार , दुसरो की गलतियों पर उन्हें माफ़ कर देना और आगे अच्छा करने का मोका देना होगा !
                                             किसी अच्छे को अच्छा कह देने भर से क्या परिवर्तन आएगा ? मेरे ख्याल से तो कुच्छ भी नहीं वो तो पहले से ही  अच्छा है पर किसी एसे को प्यार करना जो किसी अवसाद की वजह से गलत काम मै फंस गया है  और उसे अपने उस बात का अफ़सोस है पर कुच्छ कर नहीं पा रहा उसे कोई राह नहीं मिल रही कोई सहरा नहीं मिल रहा समाज उसे वो प्यार नहीं दे रही जिसकी वजह से वो उपर  उठ  सके तो फिर वो एक अच्छा आदमी केसे बन पायेगा अगर हमें समाज मै 5 लोग भी  किसी का अच्छा करते हुए  देखते हैं तो उनमे से एक तो अच्छा बनने की कोशिश जरुर करेगा ! तो किसी के एहसासों को छु कर , प्यार और सम्मान दे कर हम उसे उस दलदल से बाहर निकाल सकते हैं ! ये काम करने मै थोड़ी तकलीफ जरुर हो सकती है पर अगर सच मै अमन की चाह दिल मै है तो ये काम इतना भी कठिन नहीं , क्युकी जो खुद हमारे जेसा है उसे हमारी बात अपने जेसी ही लगेगी और वो उसका जवाब वाह वाह करके ही देगा और जिसके दिल मै हमारी बात का असर हो जायेगा वो इंसान ही बदल जायेगा और फिर एक विस्फोट की आवाज आएगी  क्युकी एहसास  तो सबके अन्दर एक से ही होते हैं फिर उस आने वाले परिवर्तन का रूप ही कुच्छ अलग होगा जिससे एक  सुंदर समाज बनेगा और फिर  एक एसा देश जिसे हम  अमन ( शांति ) के नाम से पुकारेंगे !
                                   किसी होड़ का हिस्सा नहीं हु ,
                                     ख़तम हो कुच्छ पलों मै !
                                     वो छोटा किस्सा  नहीं हु ,
                                 जो  रोक न पाउ बदहवासों को  !                                                                                                            

आरज़ू

जमीं पे बिखरी रेत को ,
आसमां की चाहत हो गई  !
उसे पाने की आरज़ू जो की ,
तकदीर को हमसे शिकायत हो गई !
दोस्तों अब ये मरहम , 
ना लगाओ मेरे जख्मो पर !
पत्थरों से मोहोब्त  करते करते ,
चोट खाने की आदत हो गई !

दर्द


क्या छुपा है इन बेबाक आँखों मै ,
क्या किसी के आने का इंतजार !
केसे निहारती हैं ये एक टक हमे , 
की शायद  कोई तो एसा आएगा !
जो मुझे इस गर्द से निकाल पायेगा !
क्या इन आँखों का इस कदर......... 
ये इंतजार कभी खत्म हो पायेगा !
जो इस के दर्द को समझ पाए 
वो मसीहा भी कभी आएगा !
उसे इस गुमनाम अंधेरो से ले जाकर 
उन सितारों मै फिर बसाएगा !
बहुत से सपने बसे हैं इन नन्ही आँखों मै 
न जाने किसकी किस्मत मै
ये सितारा फिर से जगमगाएगा !

मेरी मंजिल


           लिखती तो हर - दम हु ,  
                        क्युकी विचार  नहीं रुकते !
           फिर भी खालीपन सा ही  
                       हरदम न जाने क्यु रहता है !
          क्या प्यार ............?
                     नहीं ...प्यार तो सब करते हैं मुझे !
          क्या फिर  पैसा .......?
                    अरे नहीं सब कुच्छ तो है न मेरे पास !
          फिर क्या है वो ........?
                   जो हरदम मुझे झकझोरती रहती है !
          जो हर दम मुझे..........
                            अपने  पास बुलाती रहती है !
          जो वास्तव मे मै चाहती भी हु !
                  लेकिन लेखनी भी उसकी पूर्ति नहीं कर पाती  !
        शायद ये उन गरीबो का दर्द तो नहीं ?       
                   जिसको सोचने भर से दिल दहल उठता है !
           किसी की गरीबी......... हमारी ......
                   वाह वाह लुटने का एक जरिया भर तो नहीं ?
        हमारी ये कलम काश  उनके ...............
                     किसी एक के दर्द को कम कर पाती !
       तो हमे इस अत्याचार का ....
                     भागीदार तो न बनाती !
          

प्यार का अंदाज़


जिसने इश्क  किया ..........
         वो भला केसे न जानेगा !
इसमें बनते बिगड़ते रंग
         वो क्यु न पहचानेगा !
इश्क  मै मिले अवसाद..........
        का स्वाद केसा होता है !
दर्द भी जब आँखों से बहें.....
        तो उसमे भी प्यार होता है !
हर पल उसके इंतजार मै ......
          दिन गुलजार होता है !
हर पल उसे पाने की चाह मै ......
       अपना ख्याल ही कहाँ होता है !
पर आज के युग मै ........
     प्यार ने कुच्छ एसी करवट ली है !
उसके प्यार का अंदाज़ .....
          कुच्छ इस कदर निराला है !
थोड़े ही दिनों मै प्यार तो ..............
            रफूचक्कर ही हो जाता है !
जेसे की किसी फिल्म  का शाट........
            पल भर मै खत्म हो जाता है !

क्या है वास्तविकता



झूठ - झूठ और झूठ 
सच्चाई  का तो  दूर - दूर 
तक कोई परिचय ही नहीं !
क्या होती है वास्तविकता 
क्या हम जानते हैं ?
मेरे ख्याल से तो नहीं !
क्युकी हमारे जीवन मै 
उसका तो दूर - दूर तक
कोई आभास ही नहीं 
हम तो सिर्फ और सिर्फ 
जीते भी हैं तो ........... 
तो सिर्फ ये सोच कर 
की ....अगर एसा किया .......
तो वो क्या कहेगा !
अगर वेसा किया
तो वो क्या सोचेगा !
हम तो अपने आप से ही 
परिचित नहीं ..........
की मै कोंन हु ?
क्या चाहता हु ?
मुझे ख़ुशी  केसे मिलेगी ?
हम तो सिर्फ दूसरों  .......
के गुलाम भर हैं !
दुसरो की बातों .......
पर जीते हैं  !
और उन्ही के लिए 
मरते भी रहते हैं !
फिर हमे कितनी भी 
तकलीफ ही क्यु न
हो रही हो !
पर हमे तो बस 
एसे ही जीना है !
क्यु एसा क्यु ?
जब  हर कोई .........
इस दर्द से परेशान हैं ,
तो फिर क्यु इस कदर  
झूठी जिंदगी जीते हैं हम 
जिसमे खुद अपना परिचय 
ही भूल जाते हैं हम 
क्यु  न इस अंदाज़ को 
बदल डाले हम !
वास्तविकता से अपना ही
परिचय  करा  डाले हम !
और इतिहास के सुनहरी .
पन्नो मै अपना ही.......... 
नाम रच डाले हम ! 

महंगाई का असल परिचय

महंगाई - महंगाई और सिर्फ महंगाई  जहां देखो बस इसी का शोर सुनाई  दे रहा है ! मिडिया , अखबार  दूरदर्शन सब इसी का गुणगान  कर रहे हैं ! क्या सचमुच इतने परेशां हैं हम इस बढती हुई महंगाई से या फिर ये सिर्फ किसी एक मुद्दे  को लेकर उसमे बहस करने भर की ही बात तो नहीं हो रही  है ! अब देखो न एसी कोंन सी चीज़ हमारी राह मै बाधा डाल  रही है जिससे हमे इस बढती हुई महंगाई का आभास  हो रहा है ! क्या सब्जियों के बड़ते दाम ? क्या दाल की बढती कीमते ? अगर ये सब हमे महंगाई का पता दे रही है तो ये सब सिर्फ एक मुद्दा है और कुच्छ नहीं ! क्युकी इन सब के बावजूद हमारे घर के बच्चे बड़े - बड़े स्कूलों   मै बड़ी - बड़ी रकम दे कर शिक्षा ग्रहण कर ही तो रहें हैं और जब स्कूल मै भी वो पढाई   ठीक  से नहीं कर पाते तो हम एक और मोटी रकम देकर उन्हें स्कूल से बाहर किसी  और अध्यापक के पास [ tution ] दे कर भी पढने भेजते ही  हैं ! जब की यही लाड प्यार उन्हें उनकी राह मै आगे बड़ने से रोक रहा है वो अपने पर विश्वास कम और दुसरे की बात पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं ! हम उन्हें वो सारी सुविधा जेसे बड़ी - बड़ी गाड़ी , महंगे - महंगे मोबाइल फ़ोन जेसी सुविधा देने वाली चीजें  आसानी से दिलवा देते हैं सिर्फ एक झूटी शान की खातिर जिसके बिना भी जीवन आसानी से यापन किया जा सकता है ! इन सब सुविधाओ की पूर्ति करते  हुए भी अगर हम ये कहे की महंगाई बढ रही है ! तो फिर हमारे लिए तो ये सब सिर्फ और सिर्फ कहने भर की ही बात लगती है ! 
                                                                     महंगाई का असल परिचय हम जानना चाहते हैं तो उन गरीब तग्बे के लोगो से पूछों .......... जो दिन - रात मेहनत तो करते हैं पर फिर भी दो वक़्त की रोती जुटा पाने के लिए बेबस हैं ! अगर जानना ही है तो उस रिक्शे वाले से पुछो........जो इन्सान को उसकी मजिल तक पहुंचा देने के बाद भी सिर्फ अपनी मेहनत का पैसा  पाने के लिए उसके सामने गिड़गिडाता   नज़र आता है ! क्या उसी वक़्त हमे महंगाई याद आती है जब हम किसी गरीब का हक छीन  रहे होते हैं ! तब तो हम उस गरीब रिक्शे वाले की तुलना मै सच मै गरीब हैं और हमे ये बढती महंगाई सच मै परेशान कर रही है ! 
                                                                  महंगाई भी अगर बढती है तो हमारे जीवन मै झांक कर ही बढती है  क्युकी महंगाई बड़ाने वाले भी हमारी गतिविधियों पर नज़र गडाए रहते हैं की अगर हर सुविधा हर घर मै आसानी से परवेश कर रही है तो फिर थोडा सा और बड़ा देंगे तो क्या फर्क पड़ जायेगा ! तो फिर वो हमारे कदम से कदम मिलाती रहती है और हम थोड़े वक़्त तो जोर शोर से शोर करते हैं फिर अपनी निजी जिंदगी मै मस्त हो जाते हैं ! अगर इस बड़ती  महगाई का असल जिंदगी मै सच मै फर्क पड़ रहा है तो वो है हमारे देश की गरीब जनता जो इसकी मार से इस कदर पिस रही है की तन ढकने के लिए कपडा तो क्या दो वक़्त की रोटी  जुटाना भी मुश्किल सा हो रहा  है ! उनके पास तो उस वास्तविक दर्द को झलने और चुप  रहने के सिवा अपनी बात को कह पाने का कोई माध्यम भी नहीं है ! जब पेट भरने को अनाज ही नहीं होगा तो जुबान मै अपनी बात कह पाने की ताकत भी कहाँ से आएगी जो वो इस दर्द.......... की उन तक आसानी से पहुंचा पाए जो की इस महंगाई को बडाते रहने  के असल मै हकदार हैं ! कहते भी हैं न ......................
                                        इन्सान भी उसी इन्सान से डरता है !
                             जिसके पास अपनी बात कहने की ताक़त होती है !
                   इन  बेसहारा बेजुबानों के पास तो न शरीर की ताकत है और न ही जुबान की और न ही हमारी तरह कलम की फिर महंगाई भी उनकी क्यु सुनेगी वो तो सिर्फ उनसे डरती है जो पलटकर  उन पर वार करने की हिम्मत रखता  हैं ! गरीब जनता से उसको क्या लेना देना ! उनका तो हमारे समाज मै कोई आस्तित्व ही नहीं है उनके अच्छे होने या बुरा होने का हिसाब कोई क्यु रखे उनकी जिंदगी कब शुरू होती है और कब खत्म वो तो शायद वो भी ठीक  से नहीं जान पाए हैं अब तक  ! महंगाई किस बला का नाम है इससे तो उसका दूर दूर तक कोई परिचय ही नहीं हो पाता ! और हम एक दुसरे से कह कर अखबारों और कलम के माध्यम से अपनी भड़ास निकलते रहते हैं और अपनी जिंदगी मै आगे चलते जाते हैं और महंगाई हमारी दोस्त की तरह हमसे कदम  से कदम  मिला कर चलती रहती है !
                                                                 महंगाई ही हमारे देश मै होने वाले एक बहुत बड़े तालमेल मै फर्क कर रही है ! जिससे आमिर लोग इतने आमिर हो  गये हैं की उनके पास इतना पैसा है की उन्हें इस बात का पता नहीं है और गरीब जनता इतनी गरीब होती जा रही है की उसके पास दो वक़्त की रोटी   भी उपलब्ध नहीं हो पा रही ! एक तरफ देश उन ऊँचाइयों  को छु रही  है जहां पहुचना बहुत गोंरव की बात है  और दूसरी तरफ गरीब जनता  भूख से अपनी जान दे रही है ! जिसका  किसी को लेश मात्र भी पता  नहीं कि क्या ये हमारे देश के लिए शर्म  की बात नहीं है !  काश हम इस तालमेल को किसी तरह ठीक  कर पाते और अपने देश की भूखी जनता को उपर  उठा कर एक समृद्शील देश का निर्माण कर पाते ! हम मिलकर अपने देश के हर नागरिक के अन्दर एक जोश को भर कर बेकारी ,  भ्रष्टाचारी व् बेरोजगारी जेसे शब्दों  का ही अंत कर पाते , और ये सब करना मुश्किल हो सकता है पर असंभव कभी नहीं !      

खून का रंग

काश हर कोई इस बात को
अच्छे से जान पाता !
की खून का रंग सच मै 
सबका लाल है होता  !
तो ये मज़हब के नाम से 
खिंची गई दीवारे ,
इतनी मजबूत तो.... 
हरगिज़ न हो पाती !
हर इंसा एक दुसरे 
की जान का दुश्मन 
 इस कदर  न होता !
अगर वो इस बहते खून की 
कीमत जो  समझता ............
अपने अज़ीज़ दोस्तों पे हरदम 
जुल्म यु  न करता ..............
नाम धरम का लेकर किसी को 
तडपते न देखता ..............
अपने लहू को उससे मिलाकर 
एक मिसाल कायम ही वो करता 
सारे धरम के ठेकेदारों की 
जुबान पर एक ताला लगा 
 देश मै अमन की ............ 
एक मिसाल कायम करता !
हर  मजहब को एक सूत्र 
मै बांध कर ..............
अपने सफ़र का...............
फिर  यु आगाज़ करता !
काश हर कोई अपने इस .........
खून की कीमत ..........
को जान पाता !
फिर सारे देश को एक ही 
बंधन मै बांध जाता !

कोई तो अपना होता


सारा संसार नारी बिन अकेला |
हर आस्तिव इस बिन अधूरा  |
हर पल वो आदमी के साथ  |
उस बिन इंसा कहाँ है साकार ?
उससे मिलकर ही तो बना
ये प्यारा सा संसार|
पर न जाने इस बात से
इंसा क्यु करता है इंकार  |
सबने अलग - अलग ठंग से .....
नारी से है  प्यार लिया ...
पर उसकी झोली में तो हर पल
दर्द ही दर्द दिया |
सबने उसके दामन को.
आंसुओ से भरना चाहा  
पर तब भी उसने ...
उस घर की खातिर ही जीना चाहा |
ऐसा  नहीं की नारी शक्ति में  
कोई बल न हो मिला |
झाँसी की रानी भी तो 
उसी शक्ति की ... है प्रतिमा |
उसके अन्दर का  कोमल हृदय
उसे ये सब न करने देता है  |
अपनी हर भावनाओ को ...
त्याग दूसरों की इज्ज़त करता है |
नारी का  समर्पण ही तो ...
ये सब कुछ कहती  है |
इतना दर्द समेटे आँचल में
फिर भी सबके आगंन में 
खुशियाँ  भरती है |
नारी की इस पीड़ा को 
अगर कोई समझ पाता
|उसके कोमल ह्रदय में भी 
बहारों का चमन खिल जाता | 

.माँ का दर्द निराला

सिर्फ एक सन्देश जो माँ की भावनाओं से अन्जान हैं !
कहते हैं सब ये ......
की माँ ....हर दम रोती है .......
बचपन मै बच्चों को .......
भूखा देख  तड़पती है !
रात - रात भर जाग - जाग  .
 फिर लोरी सुना............
खुद जगती है !
बच्चों  की बेबसी को
खूब वो समझती है !
तभी तो  अच्छे - बुरे एहसासों मै 
हर पल साथ वो  रहती है !
बच्चों को सारा जीवन दे.............. 
फिर अपना सफ़र वो तय करती है !
बुड़ापे मै जब कभी वो ..........
बेबसी से गुजरती है !
तब कुच्छ बच्चे उन्हें .......
कुच्छ एसा सिला दे देते हैं !
उनके दर्द को कुच्छ और ......
बड़ा........... कर देते हैं !
उनके ही  घर से उन्हें ..........
बेदखल करने का बड़ा गुनाह
 वो कर देते हैं !.
और फिर शयद सारी जिंदगी 
खुद भी तो वो तडपते हैं ! 
माँ जब पहले रोती थी !
तब भूखा देख के रोती थी !
और आज भी जब वो ..........
रोती है तो ..........
शायद हमारी  बेबसी
 पर ही रोती है .............
कितना प्यारा है ये रिश्ता
जिसमे कोई  लालच  नहीं
और किसी से कुछ  ...........
पाने की भी चाहत नहीं .......
काश माँ की  ममता को
हर कोई जान पाता
तो  सबका जीवन भी..........  
बिना प्रयत्न के ही  सफल हो जाता !
 माँ को भी तो  ..........
हमारी  इस बेवजह की बेबसी पर
यु आंसू  न बहाना पड़ता ......
तो क्यु न  उन आंसुओं को ..............
हम बहने से पहले ही रोक दें !
और उसके प्यारे एहसास को ...........
फिर से नया जीवन दे दें !

जन्म दिन की बधाइयाँ



  अटल जी अटल जी 
                    भोले   भाले अटल जी !
क्रिसमस के ही दिन तो 
                    धरती  पे आये अटल जी !
इतने बड़े देश मै ..............
                 कुच्छ के तो प्यारे अटल जी !
राजनीति से जुडके भी............. 
                 अच्छे कवि कहलाये अटल जी !
जिंदगी के तन्हा सफ़र मै 
                 सबसे प्यार करते हैं अटल जी !
आज तो इस सफर के मोड़ पर  
                        85 के हो गये  अटल जी !
जिंदगी मै क्या खोया क्या पाया 
                 ये तो वो ही बेहतर हमसे जानें  ! 
 पर आगे के सफ़र की ...............
                लख  - लख बधाइयाँ  अटल जी !  

अपने अपने क्रास



                                                        परम हंस योगानंद ने क्रिसमस के अवसर पर अपने अमेरिका श्रोतओं से कहा था की ' इस ब्रह्माण्ड मै क्राइस्ट- चेतना  विशेष रूप से सक्रीय हो जाती है ! सच्चे  साधक मै विश्वयापी क्राइस्ट की भावना जन्म लेती है ! ध्यान के माध्यम से अज्ञान के बादल छितरा  जाते हैं और बंद आँखों के पीछे के अंधकार मै देवी आलोक के दर्शन होने लगते हैं ! जन - जन मै ये प्रकाश उदित हो यही इस पर्व का उद्देश्य  है !' प्रभु का अंश लेकर जब - जब कोई महान आत्मा इस धरती पर उतरती है , उसका स्वागत  करने के लिए हमे अपने दिल के दरवाजे खोल कर रखने होंगे ! तभी उस चेतना को हम आत्मसात कर पाएंगे ! ईसा मसीह ने कहा है ................' Behold I stand at the door and knock , If any man can hear my voice and open the door , I will come into him sup with him he with me '  अर्थात देखो मै तुम्हारे द्वार  पर खड़ा दस्तक दे रहा हु ! यदि कोई मेरी आवाज़ सुन कर द्वार खोलेगा तो मै अन्दर आकर उसके साथ आ कर भोजन करूँगा और वो मेरे साथ !
                राम और कृष्ण के आह्वान को भी शबरी ने सुदामा ने , विदुर ने सुना था और उनका सानिध्य पाने का सोभाग्य पाया ! ' बड़े दिन ' के झिलमिलाते उत्सव मै जन्म की बधाइयों के बीच से ईसा मसीह की क्रास पर कीलित छवि की करूणा बार - बार उभर कर आ जाती है ! सर्वशक्तिमान होते हुए भी अवतारों , महान आत्माओ को साधारण जन की तरह अपने - अपने क्रास पर लटकना पड़ता है ! यीशु की महिमा केवल मानव जाती के उद्धारक और ईश्वर के पुत्र के रूप के कारण ही नहीं , बल्कि ' सहनशीलता ' की साकार मूर्ति की वजह से भी है ! बाइबल मै कहा गया है ..............की इश्वर हम पर कभी इतना बोझ  नहीं डालता , जिसे हम सहन न कर सके ! उस दुख से  बचने के रास्ते होते हैं , पर बचाव अस्थाई ही होता है ! टाल जाने पर भी वही स्थिति दुबारा आ खड़ी होती है ! इसलिए बचने की कोशिश से कहीं  बेहतर है , उसको पार कर लेना , वश मै कर पाना ! यीशु पर भी जब पीड़ा का समय आया तो उन्होंने कहा ' प्रभु मुझे इस समय से बचाओ फिर साथ ही कहा मै इसी समय के लिए ही तो आया था ' दुख चाहे दूसरों की मुक्ति के लिए सहा जाये , चाहे आत्मविकास  के लिए या दुसरो के कर्मो के कारण सहना पड़े , ईश्वर का प्रसाद समझकर  धीरज से जो व्यक्ति सह लेता है वही कुंदन बनता है ! दुख हमारी साधना , मुक्ति और आस्था की परीक्षा है ! दुख का मातम मनाने , उसे सँभाल कर रखने से वह दुगना हो जाता है ! कष्ट के समय छोटे - छोटे सुखों को याद करने से दुख का प्रभाव कम होता है धेर्य से दुखों  को सहने के बाद पुनरुत्थान मिलता है , जेसे ईसा मसीह को मिला !
                          बुद्धिमान व्यक्ति सदेव आत्मसंतुष्टी   रूपी लो को
                            अपनी इच्छाओं की आहुती से प्रकाशमान
                                     बनाये रखते हैं !

कमसीन कली


वो जो फूल बन  खड़ी थी ,
                 मेरे जाते ही महक बन उड़ गई !
वो जो बर्फ बन खड़ी थी ,
                मेरे जाते ही पानी बन पिघल गई !
वो जो नदी बन चड़ी थी ,
                मेरे जाते ही रेत बन बिखर गई !
वो जो जुगनू बन चमकी थी ,
                 मेरे जाते  ही रात बन खो गई !
नए नए  रूप मै पास बुलाती थी ,
              न जाने वो  गुम क्यु  हो जाती थी !
कभी जुगनू ,कभी तितली बनकर ,
                 मेरे ख्वाबों मै वो रोज़ आती थी !
नए- नए रंग फिर वो भरती थी ,
                 मेरे सपनों को रोज़ सजाती थी !
केसी थी वो कमसीन कली ,
                   जो रोज़ मुझे सताती थी ! 
जब मै ....करीब जाता था ,            
             तो मुझसे अपना दामन बचाती थी !
मै दिन भर सपने सजाता था ,
                    वो रात होते ही पलट जाती थी !

भ्रष्टाचार



ताक़त की ख्वाइश ,
                लुट का लालच ,
                             कमजोरो पर ज़ुल्म
                                               कुच्छ का कहना है की ये सब ज़ज्बात हैं !
                      
                           हम खुद को कितना बेहतर  ढंग से समझते हैं इस बात का प्रभाव सामाजिक वास्तविकता की हमारी संचालन क्षमता पर गहराई पूर्वक पड़ता है ! कुच्छ क्षेत्रो मै  हम खुद को बेहतर तरीके से जानते हैं , लेकिन कुच्छ मामलो मै अपने अच्छे रूप मै दीखने की जरुरत या अच्छे पूर्वाग्रह के चलते हम अपने आप से अजनबी बने रहते हैं ! समय बीतता जाता है और हम खुद से ही रूबरू नहीं हो पाते हैं 
                                                             मेरे ख़याल से भ्रष्टाचार  शब्द अपने  आप मै अलग - अलग  बातों  से ताल्लुख  रखता है ! आज दुनिया मै हर तरफ इसी का ही बोल - बाला है और आज ये हर तरह के व्यवसाय मै अपना परिचय बहुत खूबसूरती से करवा रही है ! यु कहो की आज सारी दुनिया इसी के रंगों मै रंगी  पड़ी है ! क्यु  बन जाते हैं लोग भ्रष्टाचारी ? क्या पैसा कमाने की होड़  इसका कारण हो सकता है पर अगर फुर्सत से बैठ कर सोचा जाये तो एक इन्सान को अपने जीवन यापन के लिए कितने पैसों  की जरुरत पड़ सकती है ! दो मुठी के बराबर हमारा पेट है और एक छोटा सा घर और शरीर डाकने के लिए कपडा फिर उससे ज्यादा मिलने के बावजूद भी  क्या चाह रहे हैं हम सब ? फिर ख्याल आता है की कही ये इंसा से ........इंसा  की आगे निकलने की दोड़ तो नहीं अपने आप को एक दुसरे से अच्छा साबित करने की होड़.................. की कही मेरा प्रदर्शन उससे कम न हो जाये और मै इस दोड़ती हुई दुनिया के हाथ से छुट न जाऊ ! और इसी वजह से आज लोगो के अन्दर से बेज्ज़ती , बदनामी ,और संस्कार जेसे शब्दों का एहसासों  ही ख़तम होता जा रहा है उनके पास इतना समय ही नहीं है की वो एक दुसरे की भावनाओ को सुने समझे और विचार कर सके जब  एक दुसरे के लिए  समय ही नहीं होगा तो एहसास को  केसे  महसूस कर पाएंगे ! उन्हें अब इन बातों से कोई फरक नहीं पड़ता की कोई उनके बारे मै क्या सोचता है उसे तो बस भागते जाना है और कुच्छ भी अच्छा या बुरा करके दुनिया के आगे अपने आप को साबित करना है फिर उसके लिए उसे लुटपाट ,चोरी चकारी  यहाँ तक की उसे बलात्कार करके किसी की जिंदगी से खेलने मै भी कोई फर्क नहीं पड़ता ! उसे तो अपना काम करना है बस उसे किसी की भावनाओ की कोई कदर नहीं है ! ये सब उसकी परवरिश , संकुचित सोच और बेबसी की कहानी बयाँ  करती है ! और इन मै से कुच्छ के जिमेदार हम और हमारा  समाज  भी है जिसने उसके अन्दर इस तरह का ख़ालीपन और सोच को जन्म दिया !
          आज दुनिया इतनी तेज़ी से भाग राही है की उसका मनुष्य से मनुष्य का ताल मेल ही ख़तम होता जा रहा है ! कुच्छ लोग इतने आगे निकाल गये हैं की उन तक पहुँच पाना एक आम आदमी के बस की बात ही नहीं है उन्हें खुद भी नहीं पता की उनका आगे का लक्ष्य अब क्या है और कहाँ तक  और जाना है ! और दूसरी तरफ ये हाल है की खाने के लिए कुच्छ भी नहीं है न कोई लक्ष्य ही नज़र आता है वो तो बस अपना लक्ष्य बदल- बदल कर उनकी परझाइयो  को छूने की कोशिश मै लगे हुए हैं ! और उन्ही के नक़्शे कदमो को बदल - बदल कर उन्ही के हथकंडे अपना रहे हैं ! उन्हें ये सब सोचने की जरुरत ही महसूस नहीं हो रही की क्या गलत और क्या सही है क्युकी वो सब तो उनकी नजरो मै महानायक........... हैं फिर वो गलत केसे हो सकते हैं ! इसी वजह से अत्याचार  , लूटमार , बलात्कार आदि को अंजाम दे दे कर वो अपना नाम दर्ज करवाते जा रहे हैं और देश एक भ्रष्टाचार  का रूप लेती चली जा रही है  देश मै अराजकता फेल रही है ! सीधी सी बात है समाज मै रह कर जब कोई सिर्फ आपने बारे मै ही सोचेगा तो ये सब होना तो लाज़मी सी बात है हर कोई अपनी मर्ज़ी से  काम करता है और आपने प्रदर्शन  मै होने वाली टिप्पणी  का इंतजार  औरउसके बाद  फिर आगे की तैयारी शुरू की अब मै एसा क्या करू की फिर सारी जनता का ध्यान मेरी तरफ खींचे !
                  ये झूठी ....... वाह - वाही ही इन्सान को इतना भागने को मजबूर कर रही है ! जबकि जिंदगी जीने के लिए इतने संघर्ष की जरुरत  नहीं पड़ती ! अगर इन्सान का बेहतर करने का मुकाबला किसी दुसरे इन्सान से न होकर अपने  आप से ही हो तो ! ये सब बाते की कोई क्या कर रहा होगा ? मै उस जेसी क्यु  नहीं हु ??  वो मुझसे बेहतर क्यु  है ये सब बाते एक आम इन्सान को बैचेन करने के लिए बहुत बड़ी भूमिका निभाता है  और वो अपने आप को भूल कर दुसरो के पीछे भागने लग जाता है और आपने आस्तित्व को ही भुला बेठता है ! और खुद को भूल कर इस बैचेन कर देने वाली भीड़  का हिस्सा बन जाता है ! अगर हमारा मुकाबला हर वक़्त अपने आप से हो की हमने आज इतना किया और कल इससे  और बेहतर करे तो हम बिना कोई गलत काम का सहारा लेकर अपने  आप को आसानी से उन उँचइयो तक पहुंचा सकते हैं ! शायद हकीक़त मै इसी का नाम एक खुबसूरत  जिंदगी है ! बाक़ी इतनी बड़ी दुनिया मै सबकी अपनी - अपनी सोच है !
                       डसेगा  तुमको ये लालच ...........
                                          हम न कहते थे ?
                      पलट जाएगी एक दिन बाज़ी...........
                                        क्या हम न कहते थे ?

शतको का शहंशाह

लिखना तो आज हम कुछ और चाह रहे थे पर हर तरफ सचिन सचिन के शोरे ने जैसे कुछ और लिखने ही नहीं दिया तो हमने भी अपना रुख सचिन की तरफ ही मोड़ लिया सोचा क्यों ना हम भी अपने देश के महानतम बल्लेबाज़ सचिन के लिए दो शब्द कह ही दे ! जिस तरह से वो अपने आप को इतिहास के पन्नो मै दर्ज करवाते जा रहे हैं  सच मै काबिले तारीफ है ! हम तो ये कहेंगे की अगर किसी  भी तरह का ठंग व् तकनिकी का संगम कही देखना हो तो वो सचिन की बल्लेबाज़ी मै मिलती है !
                                                                आज से 21 साल पहले सचिन ने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ 88 रन बनाये थे जब वो लोट कर पवेलियन आ रहे थे तो उनकी आँखों मै आंसू थे !अपने करियर का पहले  शतक से चुक जाने का दर्द उनकी आँखों से साफ़ झलक रहा था ! उसी सचिन ने उस दर्द को अपने ज़ेहन मै एसे संजोया  की उसे ही अपनी हिम्मत बनाकर आगे का सफ़र जारी रखते हुए  टेस्ट क्रिकेट मै अपनी 50 वी सेंचुरी  दर्ज कर दी ! क्रिकेट के प्रति उनके बेइंतिहा  प्यार , सम्मान  और प्रशंसको के विश्वाश को बनाये रखने के ज़ज्बे ने उनके लक्ष्य तक पहुँचने के सफ़र को आसां बना दिया ! सचिन के चाहने वालो ने उन्हें क्रिकेट की दुनिया का भगवान  तक नाम दे दिया ! जनता का उनके प्रति प्यार , सम्मान , भरोसा और उनका साधारण व्यक्तित्व जनता को प्रभावित  भी करता है ! क्युकी मनुष्य की पहचान उसकी एक खूबी को लेकर नहीं बल्कि उसके सभी पहलुओ को लेकर की जाती है !
                                                    सचिन के धुवांधार बलेबाज़ी ने लोगो के दिलो मै क्रिकेट के प्रति लगाव को और अधिक बढावा दिया है ! समय - समय पर उनके प्रदर्शन को देखते हुए उनके साथी खिलाडियों ने उन्हें खुबसूरत टिप्णियो से भी नवाज़ा है ! एक बार डान ब्रेडमेन ने कहा था ................सचिन को दूरदर्शन मै खेलते देखकर मुझे लगता है जेसे मै ही खेल रहा हु !इसी तरह सर गिरफिल्ड सोबर्स ...............ने उन्हें दुनिया के महानतम खिलाडियों से नवाज़ा था ! उन्होंने कहा था ...............मैने बहुत से तेंदुलकर देखे , लेकिन उनमे से ये बेस्ट है ! सचिन को क्रिकेट का भगवान पहली बार........... बेरी रिचर्ड्स ने कहा था !
                             वन डे मै 46 सेंचुरी और सबसे ज्यादा रन ! टेस्ट मै 50 सेंचुरी  और सबसे अधिक रन सच मै किसी का किसी के प्रति जूनून और हिम्मत ही ये सब कमाल करवा सकती है ! जब विव रिचर्ड्स............. जेसा महान खिलाडी ये कह सकता है की मै सचिन को टिकट लेकर भी खेलते देखना चाहूँगा तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है ! उन्होंने सचिन को 99.5% परफेक्ट बताया था ! ये सभी बाते सचिन को सबसे हटकर एक अलग पहचान दिलाती है !
सचिन के शतको  का सफ़र ........................................
   
पहला शतक ........119 रन .........इंग्लैंड ...........14 अगस्त 1990 .........मेनचेस्टर
10 वां शतक ........117 रन .......इंग्लैंड ..............5 जुलाई 1996 ................नाटिघम
20 वां शतक ........126 रन .......न्यूज़ीलैंड .........13 ओक्टुबर 1999 ...........मोहाली
30 वां शतक ........193 रन ........इंग्लेंड ...........23 अगस्त 2002..............लीडस
40 वां शतक ........109 रन .......ओस्ट्रेलिया ......6 नवम्बर 2008 ............नागपुर
50 वां शतक ........107 रन .......दक्षिण अफ्रीका .........19 दिसम्बर 2010........ .सेंचुरियन
                                                  तो ये था हमारे महान बल्लेबाज़ मास्टर ब्लास्टर सचिन  तेंदुलकर की जिंदगी का एक शानदार सफ़र जो आज भी जारी है ! उनका ये जूनून आज की उभरती  नोजवान पीड़ी  को अपना सफ़र जारी रखने मै हिम्मत और ताक़त की याद दिलवाती रहेगी और उन्हें भी सचिन की तरह उँचइयो को छु सकने का रस्ता बताती रहेगी ! वो उनके  इस एहसास को बनाये रखएगी की ....................
                                 कदम चूम लेती है खुद आके मंजिल !
                                 अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे !!      
           

प्यारी सी दुआ


जिंदगी तो उसने खबसुरत  दी थी ,
जीना हमे आया ही नहीं !
खुशिया तो उसने हजारो दी थी ,
गमो से उभरना  हमे आया ही नहीं !
खुशनुमा पल उसने बेपन्हा दिए थे ,
वक़्त से लम्हे चुराना हमे आया ही नहीं !
प्यार तो उसने हमे बेहद किया था ,
हमे प्यार निभाना आया ही नहीं !
सोचते  तो थे की अब संभल जायेंगे ,
वक़्त ने तो पलटना कभी जाना ही नहीं !
अब तो  फकत फ़रियाद ही ये करते हैं ,
उसके गुलशन मै बाहर भर दे तू !
न इस कदर गुनाह करेंगे  कभी ,
इस बार तो खुदाया  माफ़ कर दे तू !

प्यारा सा रिश्ता

ये प्यारा सा जो रिश्ता है |
कुछ तेरा है , कुछ  मेरा है ||
कहीं  लिखा नहीं , कही पढ़ा  नहीं |
फिर भी जाना - पहचाना है |
कुछ  मासूम सा , कुछ अलबेला   |
कुछ  अपना सा , कुछ  बेगाना |

ये मासूम सा जो , रिश्ता है |
कुछ  तेरा है , कुछ  मेरा है ||

कुछ  चंचल सा , कुछ  शर्मीला |
कुछ  सुख सा , तो कुछ  संजीदा |
कुछ  उलझा सा , कुछ  सुलझा सा |
मस्ती से भरा , कुछ  खफा - खफा |

ये प्यारा सा जो रिश्ता है |
कुछ  तेरा है कुछ  मेरा है ||


कड़ी धूप मै ये , साया जैसा  |
अँधेरी रात मै ये , जुगनू जैसा  |
कभी रस्ता है , कभी मंजिल है |
किसी  धागे से भी ये , बंधा नहीं |


ये जो प्यारा सा रिश्ता है |                        
कभी तेरा है , कभी मेरा है |

ये तो सच्चे मोती के जैसा है  |
दिल की सीपी मै , कैदी जैसा है |
सबकी नजरो से , ढांप लिया |
कभी मन दिया , कभी एतबार किया |
सब कुछ  इस पर ही , वार दिया |
                            
कुछ  मेरा है , कुछ  तेरा है |
ये प्यारा सा जो , रिश्ता है ||