
हम इस मुद्दे को ही ले लेते हैं ! आज हमारे समाज मै पति - पत्नी दोनों पैसा कमाने मै इस कदर डूब गये हैं की उन्हें अपने बच्चों तक की खबर नहीं है की वो किस दिशा मै आगे बढ रहे है क्या उनको सही दिशा निर्देश मिल रही हैं या उनकी परवरिश उन्हें परिवार या समाज से दूर ले जा रहे हैं ? ये सब सोचने का उनके पास समय ही कहाँ है ? उन्हें तो बस पेसे ने जेसे अपनी गिरफ्त मै जकड़ सा लिया है ! उन्हें तो बस एसा लगने लगा है की जेसे पैसा ही सब कुच्छ है और सिर्फ उसके बलबूते पर ही वह अपने बच्चों को अच्छे संस्कार और प्यार दे देगी ? पर ये बात बिलकुल सच नहीं है दोस्त ..............ये हमारी एक बहुत बड़ी भूल साबित होगी और होती रही है ! अगर पैसा ही सब कुच्छ दिला सकता था तो हमारे अन्दर किसी के लिए उस एहसास उस प्यार को कम क्यु नहीं कर पाता जिसके लिए हर वर्ग का इन्सान बरसो से तड़प सा जाता है क्युकी जो प्यार जो विश्वास हम उसके करीब रह कर दे सकते हैं वो पैसा कभी पूरा नहीं कर पाता अगर एसा होता तो इन्सान अकेले ही सारा जीवन व्यतीत कर देता इन रिश्तो के झमेले मै क्यु पड़ा रहता पर ये हमारे जीवन का एक कडवा सच है की हम लाख इससे दूर भागे पर हकीकत तो यही बयाँ करती है ! बच्चों को माँ - पाप के प्यार की सबसे जयादा जरूरत होती है क्युकी वो तो अभी दुनिया को समझने के लिए तयारी मै जुटा होता है कुच्छ सिखाना चाहता है फिर जब उन्हें हमारा प्रयाप्त समय ही न मिल पायेगा तो वो इन सबको कहाँ से हासिल करेगा ? सच है की उससे इसकी जानकारी इधर उधर से बटोरनी पड़ेगी और उसे कोंन केसी सलहा देगा ये तो उसके बड़े होने के बाद ही पता लग सकता है क्युकी बच्चों को दिए संस्कार ही उन्हें एक अच्छा इन्सान बना सकता है और जब हम उन्हें समय ही नहीं दे पाएंगे तो अच्छे संस्कार केसे ?
सचाई ये भी है की अगर हम अपने सही परवरिश प्यार - दुलार से ये समझाए की जितना है वो उसमे ही खुश रहने की कोशिश करे और एक खुशहाल जीवन जीने का तरीका सीखे तो हमे इस अंधी दोड़ का हिस्सा बने रहने की जरुरत कभी न पड़े ! उन्हें परिवार का प्यार सब कुच्छ सिखा देता है पर हमारी अपनी एक दुसरे से की गई तुलना और अपने आप को एक दुसरे से बेहतर दिखाने और झूठी प्रसंशा का लालच हमे अपने बच्चों से दूर ले जाती है ! दरसल ये बच्चों की मांग नहीं ......................ये हमारा अपना निर्णय होता है की मै भी कुच्छ हूँ और यही मै बनने की चाहत हमसे ये सब करवाता है कहने मै तो बहुत कडवा लगता है पर हकीकत ये ही है ! जब माँ का प्यार है तो आया [ मेड ] जिसे हम अपने बच्चों को सोंप कर खुद बाहर निकल जाते हैं क्या वो माँ .......... शब्द की सही भूमिका निभा पाती होगी हरगिज़ नहीं वो सब तो उसका काम है सिर्फ पैसा कमाने का एक जरिया फिर वो उस मासूम के साथ वो एहसास केसे बाँट सकती है ? और अगर थोडा बहुत इंसाफ करती भी होगी तो क्या वो उनमे वो संस्कार भर पायेगी जो आप उनके लिए इतनी मेहनत कर रहे हो भाग रहे हो हरगिज नहीं ? तो हम क्यु अपनी इतनी प्यारी सी जिंदगी प्यारे से एहसास को दुसरे के हवाले करके बस भागते चले जा रहे हैं ! ज़रा सोचो जब हम पलट कर इनके पास आना चाहेंगे तो क्या वो हमे वेसा प्यार लोटा पाएंगे जो हमने कभी उन्हें दिया ही नहीं ? कभी नहीं .........क्युकी जब हमारा एहसास ही उनके पास नहीं होगा तो वो हमारे साथ इंसाफ केसे करेंगे ? और हम उन्हें फिर कुसूरवार भी नहीं कह सकते क्युकी शुरुवात तो हमारी ही थी न ?
कहते हैं न की हम जो देते हैं हमे वेसा ही वापस मिलता है तो फिर हमे भी इन सबकी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए ! क्युकी वह भी हमे वही देने मै पिच्छे नहीं रहेंगे क्युकी उनकी नजरो मै वही सही होगा जो हमने उनके लिए किया था अकेलापन ..................जो हमने उन्हें दिया था किसी और के हाथो मै सोंप कर और उसका दिया दर्द कही आखिरी वकत मै हमारा दर्द न बन जाये ? इसलिए हमे वक़्त रहते -२ अपने वर्तमान को संवारते हुए भविष्य की तरफ बढना चाहिए ! माता - पिता दोनों को मिलकर अपनी दिशा मै आगे बढना चाहिए और अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए सही तरीके से बच्चों की परवरिश करनी चाहिए ! क्युकी अगर आज हम उन्हें सच्चा प्यार विश्वास देंगे तभी तो वो उसी प्यार और विश्वास के आधार पर अपने जीवन का निर्माण कर पाएंगे और एक सुंदर संसार बसायेगे और हमारे भविष्य की नीव को भी संभाल पाएंगे ! क्युकी कहते हैं न .......................उम्मीद पर ही संसार चलता है ! तो फिर एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बड़ते हुए !