अच्छी परवरिश या सिर्फ पैसा

 आज मनुष्ये के जीवन संरचना मै इतनी तेज़ी से बदलाव आ रहा है की वो अपने जीवन मै होने वाले उथल पुथल की तरफ भी ध्यान ही  नहीं दे पा रहा है  ! वह तो बस एक रेस मै दोड़ते हुए घोड़े की तरह खुले मैदान मै बस भागता ही चला जा रहा है और वो इस बात से बिलकुल बेखबर है या ये कहो की वो इसकी खबर रखना भी नहीं चाहता की वो इस अंधी  दोड़ मै कितने अपनों का साथ गंवाता चला जा रहा है इसका पता उसे तब चलता है जब वो उन सबसे बहुत दूर चला जाता है और वक़्त उनके हाथ से निकल चुका होता है उनके एहसास उन्हें तब झकझोरते हैं जब वो अपनेआप से थक चुके होते हैं और उन्हें उन एहसासों की जरुरत पड़ती है तब वो चाह कर भी उन पलों को वापस नहीं ला पाते ! क्युकी की कहते हैं न बीते पल कभी लोट  कर नहीं आते बस यादे ही रह जाती हैं.................. बिलकुल इसी तरह पर काश इसका एहसास  उन्हें पहले से हो जाये !
                                                                    हम इस मुद्दे को ही ले लेते हैं ! आज हमारे समाज मै पति - पत्नी दोनों पैसा कमाने मै इस कदर डूब गये हैं की उन्हें अपने बच्चों  तक की खबर नहीं है की वो किस दिशा मै आगे बढ रहे है क्या उनको सही दिशा निर्देश मिल रही  हैं या उनकी परवरिश उन्हें परिवार या समाज से दूर ले जा रहे हैं ? ये सब  सोचने का उनके पास समय ही कहाँ है ? उन्हें तो बस पेसे ने जेसे अपनी गिरफ्त मै जकड़ सा लिया है ! उन्हें तो बस एसा लगने लगा है की जेसे पैसा ही सब कुच्छ है और सिर्फ उसके बलबूते पर ही वह अपने बच्चों को अच्छे संस्कार और प्यार दे देगी ? पर ये बात बिलकुल सच नहीं है दोस्त ..............ये हमारी एक बहुत बड़ी भूल साबित होगी और होती रही है ! अगर पैसा ही सब कुच्छ दिला सकता था तो हमारे अन्दर किसी के लिए उस एहसास  उस प्यार को कम क्यु नहीं कर पाता जिसके लिए हर वर्ग का इन्सान बरसो  से तड़प  सा जाता है क्युकी जो प्यार जो विश्वास हम उसके करीब रह कर दे सकते हैं वो पैसा कभी पूरा नहीं कर पाता अगर एसा होता तो इन्सान अकेले ही सारा जीवन व्यतीत  कर देता इन रिश्तो के झमेले मै क्यु  पड़ा रहता पर ये हमारे जीवन का एक कडवा सच है की हम लाख इससे दूर भागे  पर हकीकत तो यही बयाँ करती है ! बच्चों को माँ - पाप के प्यार की सबसे जयादा जरूरत होती है क्युकी वो तो अभी दुनिया को समझने के लिए तयारी मै जुटा होता है कुच्छ सिखाना चाहता है फिर जब उन्हें हमारा प्रयाप्त समय ही न मिल पायेगा तो वो इन सबको कहाँ से हासिल करेगा ? सच है की उससे इसकी जानकारी इधर उधर से बटोरनी पड़ेगी और उसे कोंन केसी  सलहा देगा ये तो उसके बड़े होने के बाद ही पता लग सकता है क्युकी बच्चों को दिए संस्कार  ही उन्हें एक अच्छा इन्सान बना सकता है और जब हम उन्हें समय ही नहीं दे पाएंगे तो अच्छे संस्कार केसे ?
                                                                            सचाई ये भी है की अगर हम अपने सही परवरिश प्यार - दुलार से ये समझाए  की जितना  है वो उसमे ही खुश रहने की कोशिश करे और एक खुशहाल जीवन जीने का तरीका सीखे  तो हमे इस अंधी दोड़ का हिस्सा  बने रहने की जरुरत कभी न पड़े ! उन्हें परिवार का प्यार सब  कुच्छ सिखा देता है पर हमारी अपनी एक दुसरे से की गई तुलना और अपने आप को एक दुसरे से बेहतर  दिखाने और  झूठी  प्रसंशा  का लालच  हमे अपने बच्चों से दूर ले जाती है ! दरसल ये बच्चों की मांग नहीं ......................ये हमारा अपना निर्णय होता है की मै भी कुच्छ हूँ और यही मै बनने की चाहत   हमसे ये सब  करवाता है कहने मै तो बहुत कडवा लगता है पर हकीकत ये ही है ! जब माँ का प्यार है तो आया [ मेड ] जिसे हम अपने बच्चों को सोंप कर खुद बाहर निकल जाते हैं क्या वो माँ .......... शब्द की सही भूमिका निभा पाती होगी हरगिज़ नहीं वो सब तो उसका काम है सिर्फ पैसा कमाने का एक जरिया फिर वो उस मासूम के साथ वो एहसास  केसे बाँट सकती है ? और अगर थोडा बहुत इंसाफ करती भी होगी तो क्या वो उनमे वो संस्कार भर  पायेगी जो आप उनके लिए इतनी मेहनत कर रहे हो  भाग रहे हो हरगिज नहीं ? तो हम क्यु अपनी इतनी प्यारी सी  जिंदगी प्यारे से एहसास  को दुसरे के हवाले करके बस भागते चले जा रहे हैं ! ज़रा सोचो जब हम पलट कर इनके पास आना चाहेंगे तो क्या वो हमे वेसा प्यार लोटा पाएंगे जो हमने कभी उन्हें दिया ही नहीं ? कभी नहीं .........क्युकी जब हमारा एहसास ही उनके पास नहीं होगा तो वो हमारे  साथ इंसाफ केसे करेंगे ? और हम उन्हें फिर कुसूरवार भी नहीं कह सकते क्युकी शुरुवात तो हमारी ही थी न ?
                                                                कहते हैं न की  हम जो देते हैं हमे वेसा ही वापस मिलता है तो फिर हमे भी इन सबकी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए ! क्युकी वह भी हमे वही देने मै पिच्छे नहीं रहेंगे क्युकी उनकी नजरो मै वही सही होगा जो हमने उनके लिए किया था अकेलापन ..................जो हमने उन्हें दिया था किसी और के हाथो मै सोंप कर और उसका दिया दर्द कही आखिरी वकत मै हमारा दर्द न बन जाये ? इसलिए हमे वक़्त रहते -२ अपने वर्तमान को संवारते हुए भविष्य की तरफ बढना चाहिए ! माता - पिता दोनों  को मिलकर अपनी दिशा मै आगे बढना चाहिए और अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए सही तरीके से बच्चों की परवरिश करनी चाहिए ! क्युकी अगर आज हम उन्हें सच्चा  प्यार विश्वास देंगे तभी तो वो  उसी प्यार और  विश्वास के आधार पर अपने जीवन का निर्माण कर पाएंगे और एक सुंदर संसार बसायेगे और हमारे भविष्य की नीव को भी संभाल पाएंगे ! क्युकी कहते हैं न .......................उम्मीद पर ही संसार चलता है ! तो फिर एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बड़ते हुए !

विडंबना

                                                                                                                                                                  
                                                              
                                                                    कितनी बड़ी विडंबना है ये हमारे देश की , की हम जिस बेटी को पैदा होते ही एक बोझ समझ बैठते हैं  उसी बोझ के  साथ हम सारी जिंदगी भी बिताना चाहते हैं | बचपन से लेकर मरने तक वही लड़की अलग -अलग रूप ले कर हमारा  साथ  निभाती चलती है | जिसके बिना आदमी एक पल भी नहीं गुजार सकता और कुछ लोग   फिर अपने घर में  उसके आगमन करते ही उसे कभी अपनी मुसीबत , कभी बोझ समझ कर जीते जी मार डालना चाहता है | कितने  नासमझ है वो इन्सान जो इतनी बड़ी हकीकत को नहीं समझ पाते  या फिर ये कहो की समझना ही नहीं चाहते  और उससे अपना पीछा छुडाना चाहते  है | उनकी  नकारात्मक सोच उसका उसके दहेज़ को लेकर सोचने वाली परेशानी और समाज की अन्य कुरीतियों  को लेकर उसके साथ जोड़ कर सोचना उसके कमजोर व्यक्तित्व का परिचय ही तो देती है  और दूसरी तरफ उसकी संगिनी उसके साथ हर हाल में  रह कर भी ऐसा  कभी नहीं सोचती वो हिम्मत से उसका सामना करने  को हमेशा तैयार रहती है पर उसे मारने को कभी नहीं कहती | इंसान  क्या इतना कमजोर और आलसी भी हो सकता है की जिंदगी में  जो परेशानी बाद में  आने वाली हो उससे डरकर वो एक ऐसे  मासूम का खून बहा  दे जिसने अभी दुनिया में  कदम भी नहीं रखा है ? ये भी तो हो सकता है हो क्या सकता है ऐसा  हो ही  रहा है की वही बेटी आज माँ - बाबा का सहारा  बनी हुई है और उनकी परवरिश कर रही है आज बेटियाँ - बेटो के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं उसमे इतनी ताक़त है की वो अपने साथ अपने पुरे परिवार को पाल सकने की हिम्मत रखती है |
                                                   अब देखो न बेटियां  बचपन से ही अपने एहसास  को किस कदर बनाये रखती है कभी बहन बन कर भाई का साथ  देती है तो कभी सुख - दुख में  माँ - बाप की भावनाओ को समझते हुए आगे कदम रखती है | और फिर शादी के बाद अपने पति के परिवार को भी वही ख़ुशी देती है और जीवन भर  उसका साथ भी निभाती है  | फिर ये सब  करके वो ऐसा  कोंन सा गुनाह करती हैं की कुछ  के दिलो तक  उनकी ये  भावनाएं  पहुँच ही नहीं पाती और उनके दिल में  इनको मारने  का ख्याल आ जाता है | इससे तो यही लगता है की जो भी इसकी हत्या के बारे में  सोचता होगा या तो  वो दिमागी तोर से ढीक   नहीं होता होगा या फिर उसके दिल में नारी के प्रति कोई भावना ही नहीं होती होगी  वर्ना जो इतनी बखूबी से अपना कर्तव्य निभाती हो उसे जन्म लेते ही मार डालने का ख्याल उसके दिल में  कभी न आये |
                                                              हमे ही मिलकर इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी और ऐसी  बहुत सी मासूम जानों को मरने से रोकने के लिए कदम उठाना ही होगा ताकि  जो जन्म से पहले ही कुचल दी जाती हैं उनको मरने से रोका जा सके नहीं तो ऐसी ही मरती  रहेंगी सिर्फ हमारी नकारात्मक सोच की वजह से ही | हमें  अपनी सोच बदलनी होगी जिससे उनपर होने वाले अत्याचार  रुक सके | क्युकी अगर बेटियों का आस्तित्व ही दुनिया से खत्म होने लगेगा तब तो धीरे - धीरे सृष्टि का भी  अंत हो जायेगा क्या ये बात कभी नहीं सोचा हमने क्युकी अकेले बेटे से तो घर को नहीं बनाया जा सकता उसके लिए बेटियों का होना बहुत जरुरी है | इसीलिए हमें  सच्चाई   को न झुठलाते हुए उसका सामना करना होगा और बेटियों को भी बेटों  की ही तरह बराबर का सम्मान देना  होगा | ये बात  उस वक़्त भी गलत नहीं थी जब बेटियों को न .............के बराबर समझा जाता था की उसका अधिकार तब भी उतना ही था जीतना उसने आज  अपने हक से हासिल किया है | और अगर हम ये कहे की अगर आदमी शरीर है तो औरत  उसकी आत्मा फिर उनको अलग कैसे  आँका जा सकता है ? मेरा कहने का तात्पर्य  ये है की दोनों की तुलना एक बराबर ही होनी चाहिए जीतना हक बेटे का उतना ही बेटी का भी हो और  अगर इनके अनुपात में ऐसे  ही अंतर  आता गया तो वो दिन दूर नहीं जब इस सृष्टि का ही अंत हो जाये |इसलिए उसके एहसास  को समझो और उसे भरपूर प्यार दो जिससे उसके दिल से प्यार का शब्द ही खत्म  न हो जाये और हम अपने इस कृत्य को करके बाद मै पछताए | इसके लिए हमें  उसके प्यार और बलिदान को समझना होगा और सकारात्मक सोच रखनी होगी | जिससे  वो सबके साथ अपना ये प्यार इसी तरह बनाये रखने की हिम्मत न खो दे |  
                                                                      

आज़ादी का सही अर्थ


नारी की शक्ति का पता तो यही से चलता है !
दुर्गा,सरस्वती,लक्ष्मी का रूप ये सब  कहता है ! 
नारी भी अगर इन अदा को पहचान ले !
तो हर किसी हाल मै वो जीना जान ले ! 
नारी ही तो इस संसार का आधार है !
उसके बिना तो हर आस्तिव ही बेकार है !
पर हर  शक्ति का समन्वय होना चाहिए !
प्यार, आदर,समर्पण इसका अर्थ होना चाहिए !
ओरत को इस शक्ति पे नाज़ होना चाहिए !
पर इसके इस्तेमाल का सही ज्ञान होना चाहिए !
अपनी दी आज़ादी का हरगिज़ फायदा न उठा !
एक सुन्दर समाज का निर्माण करना चाहिए !
वो तो घर की आधार है परिवार उसके सतम्भ है !
उसके डगमगाने से ईमारत गिरनी नहीं चाहिए !  

वो बीते पल

 
कितने प्यारे थे वो दिन ,
जब साथ तुम्हारे चलते थे |
कुछ  वादे तुमसे करते थे ,
फिर तोड़ के आगे बड़ते थे | 

दो पल का हँसना - रोना था ,
फिर रूठ के आगे बढना  था |
प्यारी - प्यारी बातों के साथ  ,
इक दूजे के संग  यूँ चलना था |

अब सपनों का सफ़र निराला है  ,
प्यारी बातों  का ताना- बाना है |
उन प्यारी - प्यारी बातों का 
मीठा सा एक फ़साना  है    |

वो पन्नों का  जुड़ते जाना था ,
प्यारी सी किताब बनाना था |
अब उन मीठी - मीठी यादों से ,
दिल को बहलाते  जाना है  |

आज  फिर से वो सौगात मिली |
फिर यादों की बरसात हुई ,
अब आप तो साथ न आये थे |
यादों को साथ बस लाये थे ,

अब दिल को , तो  बहलाना था |
यादों का सफ़र बनाना था |
फिर से उन मिट्ठी यादों में ,
पंछी बन कर उड़ जाना  था |
मदहोश होती उन घटाओं  में
खुद को भूल , बस जाना है |

जिंदगी का भी यही  तराना  है |
बस प्यार से जीते जाना  है |
मिट्ठी - मिट्ठी यादों से फिर
प्यार का सागर बनाना है |

रहमत का असर



खुदा की रहमत है जो हमको ...............
सबसे मिलवाती है !
उसकी ज़रा नवाजी ही है ............
जो हमे इस काबिल बनाती है !
वर्ना हम तो खुद मै ....................
एक अदना सा फ़साना है !
वो ही सब जानता है .....................
हमे  कहाँ तलक  जाना है !
हमे तो बस करम ................
करते जाना है!
और बस उसका करम .............
खुदा के बन्दों  तक ले जाना है !
उसके करम से ये जहां ...............
सारा मालामाल जो  हो जाये !
ये जिंदगी  फिर सबकी  ..............
बेइंतिहा  हसीन हो जाये !
हर कोई  यहाँ पर ......................
अपनी ही जान हो जाये !
हर किसी के  दर्द मै  .............
बस हमको आह्ट हो जाये !
हमारी दवा से बस ...........
मरहम का असर हो जाये !
इंसानियत ही इंसा का  ...............
 धरम  हो जाये !
गेर का नाम सदा ..................
दुनिया से कट  जाये !
यु कहो की हर कोई .............
ज़नत  को भूल कर फिर ...........
इसी  दुनिया मै खो जाये !
और सबके जीवन का ...............
मकसद ही सफल हो जाये !

बादल

Green Farm and Blue Sky
उमड़ - घुमड़ कर जब
वो अपनी ही शान मै
चलने लगता है !
ज़मी वालो का दिल तो
जोरो से धडकने लगता है !
वो तो बस जीता है
ओरों की चाह के लिए !      
कितना बड़ा दिल है उसका
की अपनी  और अपने
परिवार के आस्तित्व का
जरा भी ख्याल किये बिना ..............
बस चल देता है वो तो
अपनी ही धुन मै हो मगन
किसी को कुच्छ देने की चाह मै  !
न कोई दिल मै हसरत 
न ही कोई मलाल लिए हुए ,
अपने को मिटा के
दुसरे को सुकूं देने  के लिए !
फिर उसका प्रदर्शन ..............
ओरों से बेहतेर क्यु न हो ?
और उसके लिए हमारे दिल मै
प्यारी सी जगह फिर क्यु  न हो !

अनजाना शख्श


हमने तो कभी जाना ही न था
                         खुद को  इतने करीब से !
उसकी पारखी नजरो ने  न जाने
                        केसा ये कमाल कर दिया  !
हमने तो अभी अपनी ज़मी
                       मै न पहचान बनाई थी !
उसने तो हमारी गिनती
                     तारो मै लाकर ही कर दी !
वक़्त जेसे -जेसे अपनी
                  आग़ोश मै भरता चला गया !
हमारी पहचान  मै  और वो ............
                  इजाफा करता चला गया !
कितना प्यारा था वो शख्श
                जो हमे इतना प्यार करता था !
हमे खबर भी  न हुई
                 और वो दिल मै उतरता चला गया !
कितने प्यारे बन गये थे
                ये रिश्ते बिना किसी चाहत के !
और हम एक दुसरे  को
                   सम्मान देते ही चले गये !
न जाने ये दोस्ती का सफ़र
                 कब तलक  यु ही चलेगा !
न जाने कब वो  हमे तारो से ............
            फिर  सूरज की रौशनी कहेगा ?

जिन्दगी

INSPIRED BY THIS FEELING

महकती सी जिंदगी की किताब पर |
गुनगुनाते सुरों के इस साज़ पर |
एक गीत गा रही है जिंदगी |
कुछ खास सुना रही है जिंदगी |
                     सुबह का सूरज यहाँ पर चढ़ रहा |
                     चाँद की रौशनी को मद्धम कर रहा |
                      रात अपने आप को समेट कर ,
                     सुबह के स्वागत में जैसे लग रहा |
किसी के मिलन की बेला आ रही |
किसी को विरह जैसे  बुला रही |
एक क्षण जिंदगी जैसे  हंसा रही |
एक क्षण जिंदगी जैसे  रुला रही |
                     रोज़ फूल कर रही श्रृंगार  है |
                     रोज़ धुल उसको नहला रही  |
                    रोज़ पतंगे दीप पे हैं मिट रहे |
                   एक मीत पे असंख्य मीत मिट रहे |
धर रही है उम्र कामना का शरीर |
टूट रही है किसी के सांसो की लड़ी |          
एक घर बसा रही है जिंदगी |
एक घर मिटा रही है जिंदगी |
                 खुश है अगर जिंदगी यौवन  लिए हुए |
                 रो रहा है बुडापा सांसो को समेटे हुए |
                  एक पल जैसे   सुला रही है जिंदगी |
                  एक पल जैसे  हंसा रही है जिंदगी |
जा रही बहार एक सवेरा लिए हुए |
आ रही है रात जलती शमा लिए हुए |
एक बार जो लेके जाती  है जिंदगी |
दुसरे पल देके भी तो जाती है जिंदगी |