रिश्ते


खुली आँखों से जब देखा
जिंदगी भुरभुरा रेत का
एक टीला सा लगी
जो कभी बहुत गर्म
तो कभी ठंडी हो जाती
कभी लहरें बहा ले जाती
तो कभी तेज आंधियां
अपने संग उड़ा ले जाती
उस  रेगिस्तान कि तरह
जहां सिर्फ धसना
और सिर्फ धसना है
हरपल  हाथ से फिसलता हुआ
रिश्तों कि मजबूत डोर
जिसे थामे रहती
लहरों के थपेडों से बचाती
तेज आँधियों से संभालती
टूटे घरोंदों को फिरसे जोड़ती
मजबूत बाहुबल में जकड़े हुए
अपने जीने  को साकार करती
पर असल जिंदगी तो ...
इंसा के जहन  में है पलती
हर वक्त गोते लगाते हुए
उथल - पुथल करती हुई
भावनाओं को अपने में सजाती हुई
हर वक्त मकडजाल बुनकर
अपने जीवन को दिशा देती
सबसे दूर सिर्फ अपने आप में  ...
जिसकी किसी को कोई खबर नहीं
पर रिश्तों कि डोर उसे टूटने न देती |