नई सुबह


दूर गगन में सूरज चमका ,
नई सुबह है आने को |
तम हटेगा , धुंद हटेगी ,
नया प्रकाश है छाने को |

देखो किरणों कि ये छटा ,
पेड़ों पर है ठहर जाने को |
सर्दी कि ठिठुरती बेला को ,
फिर से है गरमाने को |

गांव कि गोरी छम - छम करती ,
चली पनघट में लेने पानी को |
सूरज कि किरणों से बचती ,
आँचल से  लगी मुंह छुपाने को |

सागर कि लहरें भी लगी अब ,
अपना करतब दिखाने को |
लगी  किनारों से टकराने ,
अपना आस्तिव बतलाने को |

चिड़िया अम्बर में उड़  निकली ,
आज़ादी का आभास दिलाने को |
मछुवारों कि टोली  चल निकली ,
अपना कर्तव्य निभाने को |



फासले जिंदगी के

 
सोचती हूँ  पलकों में छुपाकर  मैं उसे रख लूँ |
मगर भीनी  महक तो वो साथ लेके चलता है |

मैं आँखे बंद करती हूँ एक चुभन सी होती है |
उस दर्द  से ही वो हरपल मेरे साथ रहता है |

उसे कोई न देखे मैं उसे दिल में छुपाती हूँ |
पर क्या करू आंखे हर राज़  खोल देती है |

जमाना करता है रुसवा मैं आंसू बहाती हूँ |
उसका  एहसास मुझे हिम्मत दिलाता है |

जब भी मैंने चाहा एक प्यारी गज़ल लिखूं |
ख्यालों में उसे रख फिर मैं कलम चलाती हूँ |

वो अपनी कहता है फिर मैं अपनी सुनाती हूँ |
फासले जिंदगी के इस तरह फिर मैं सजाती हूँ |

जय भारत

 
आओ गुंचे - गुंचे में आज
फिर से फूल हम खिला दें |
लायें ऐसी क्रांति कि हर तरफ
आग हम लगा दें |
उठ खड़े हो जाओ जो इस देश
का  दिल में अरमान हो  |
बच्चे , बूढ़े और नारी का भी
इसमें  योगदान हो |
देश में फैले इस गर्द को
गर हम हटाना है चाहते  ,
तो सिर्फ शोर ही काफी नहीं
इसे तो अंजाम तक पहुंचाना  है |
हाथ से हाथ थामकर जो हम
आगे बढते जायेंगे |
रोक ले राह  में कोई हमें
तो उसे भी अंजाम तक पहुचायेंगे |
देश में रहकर जब देश में
पल रहे गद्दार हों ,
तो कैसे करदे माफ , जो अपने ही
वतन कि ले रहा आन हो |
आओ आज ही हम
अपने दिलों में ये ठान लें ,
न लेंगे हम चैन जबतक
 देश में गद्दार हों |
सीखा दो उनको भी हुनर
जिससे देश का नाम न बदनाम हो |
वो भी हम संग ये कह उठे कि ...
मेरा देश सदा महान हो |
जय हिंद !