बच्चो को दे प्यार और विश्वास

               महिला एवं शिशु विकास मंत्रालय ने युनिसफ़ और कुच्छ एनजीओ के साथ मिलकर हाल ही मै चाइल्ड येब्युस के मामले मै भारत के १६ राज्यों का सर्वे किया है ! इस सर्वे मै शामिल ५३% बच्चो ने माना की वे कभी ना कभी शारीरिक शोषण करने वालो में से ५०% जान पहचान वाले लोग ही थे ! बचियों  की तुलना में बच्चे शारीरिक शोषण का ज्यादा शिकार हो रहे हैं !
                                         ये हमारे देश मै नहीं दुनिया भर मै घटने वाली जटिल समस्या है जिसको हम किसी भी तरह नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते जिसकी खबर हम हर रोज़ अख़बार , टेलीविज़न के माध्यम से देखते और सुनते हैं ! कितना प्यार करते हैं हम अपने बच्चो से ? हमारा जवाब होता है ''''''''बहुत ज्यादा ;;;;; कितना ख्याल रखते हैं हम अपने बच्चो का ? हमारा फिर वही जवाब '''''बहुत ज्यादा ! फिर ये सब  केसे हो जाता है ? कही न कही तो हम उनकी देख रेख मै चुक कर ही रहे हैं जिसका भुगतान हमारे मासूम बच्चो को उठाना पड़ता है ! कोन सी है हमारी वो भूल ? हमे अपने बच्चो के साथ एक दोस्त की तरह रहना चाहिए अपने रोज़ -मर्रा की जिंदगी मै से कुच्छ पल उनके साथ व्यतीत करना चाहिए उनके खट्टे - मीठे पालो को उनके साथ बाँटना चाहिए ! उनका विश्वास जीतना चाहिए क्युकी हर इन्सान अपने साथ घटित घटना को किसी न किसी के साथ बंटाना चाहता है और उसकी प्रतिक्रिया जानना चाहता है ! जब हम अपने बच्चो के करीब जायेंगे उनके एहसासों को बाँटेंगे तभी हम उनके जीवन की गतिविधियों से अवगत रह पाएंगे और वो हमसे खुल कर अपने दिल की बात कह पाएंगे ! हमे एसा करके उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान देकर उनकी हिम्मत को बढाना है जिससे वो अपने खिलाफ होने वाले शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठा सके और दोषी को अपनी हिम्मत से पस्त कर सके ! हमे  अपने बच्चो की नीव इतनी मजबूत करनी होगी की वो थोड़े से ही हिलाने से गिरे नहीं बल्कि उसे ही गिरा दे जो उनकी नीव को हिलाना चाहता है और ये काम कोई और नहीं हम माँ-बाप ही अच्छी तरह कर सकते हैं क्युकी वो किसी ओर की नहीं हमारी और आपकी जिमेदारी है जब हम ही उन्हें संरक्षण नहीं दे पाएंगे तो हम दोषी को सजा केसे दिला पाएंगे !
  बच्चो मै शोषण के मामले अधिकांशतः घर की चार दिवारी से कभी बाहर निकल ही नहीं पाते दोषियों के खिलाफ केस दर्ज करवाने की बात तो बहुत दूर की है ,पर जब तक हम उनके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएंगे येसे मामले खत्म होने का नाम ही नहीं ले सकते और येसे लोगो की हिम्मत बढती चली जाएगी !ये बात १००% सच है की जितने भी इस तरह के शोषण होते हैं वो हमारे करीब के लोग ही होते हैं ! और इस मै हर वर्ग के लोग आते हैं !कुच्छ लोगो का कहना है की येसे लोग मानसिक रूप से बीमार होते हैं पर मेरा ये सोचना है की अगर वो मानसिक रूप से बीमार होते हैं तो अपने और दुसरे के बचो मै फर्क केसे कर लेते हैं उस वक़्त उनकी बीमारी ठीक  केसे रहती है ये सिर्फ एक क्षण की भूख भर है जो आदमी को अँधा बना देती है और मासूम का जीवन तबहा  कर देती है ! येसे व्यक्ति को बिलकुल माफ़ नहीं करना चाहिए ! हमे अपने बच्चो को अपने करीबी लोगो से हमेशा सतर्क रहना सीखना चाहिए ! जिससे वो उनकी मसुमियता का फायदा कभी अंकल ,चाचा या भाई बन कर न उठा सके ! हमे इन लोगो से ज्यादा विश्वास अपने बच्चो की बातो पर करना होगा जिससे कोई बाहर का आदमी हमसे मीठी -२ बाते करके हमारे बच्चो के साथ दुराचार न कर सके ! उन्हें इज़त करना सिखाना है पर अगर उस की आड़ मै उनसे कोई गलत व्यव्हार करे तो उसका जवाब देना भी सीखना होगा !ये सब  हमारे और आपके प्रयत्न से ही पूरा हो सकता है ! बस हमारा काम है बच्चो के अन्दर विश्वास और हिम्मत जगाने की जिससे उन्हें हमारी मदद  की जरुरत होने पर अपना मुह बंद न रखना पड़े उनका हम पर  विश्वास ही उन्हें हमसे संपर्क बनाने मै मदद करेगा !
                                               बच्चो को प्यार देने का अर्थ ये नहीं की हम उन्हें समय से खाना दे देना या उनके नम्बरों का लेखा जोखा देख लिया इन सब के साथ -२ हमे उनमे आने वाले बदलाव पर भी नज़र रखनी चाहिए की कही हमारा बच्चा किसी तरह की परेशानी से तो नहीं जूझ रहा या चुप -चाप क्यु रहने लगा है आदि हम ये सब काम उन्हें अपना थोडा सा समय दे  कर आसानी से कर सकते हैं और अपने बच्चो को एक सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं !


आस्था

क्या है ये आस्था जिसका गुणगान हम हर वक़्त करते रहते हैं ,पर उसका सही ज्ञान हमे आज तक मालूम ही  नहीं है ! हम सब एक अंधी दोड़  का हिस्सा  भर  है हमने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की  की इसका सही मायने मै अर्थ क्या  है और इससे आखिर हम चाहते क्या हैं ? हम तो बस एक के पीछे एक लम्बी लाइन लगाते  चले जाते हैं जो सिर्फ और सिर्फ एक भारी भीड़ और धक्का - मुक्की से ज्यादा कुच्छ भी नहीं है ! जिसको खोजते -२ हम इतनी दूर निकल जाते हैं वो तो  हर वक़्त हमारे साथ ही रहता है ,पर हमारी संकुचित सोच , पुराने संस्कार , दिखावा    ये सब हमारी आँखों मै पट्टी  बाँधे रखती है और हम एक बेजान लाश की तरह सारे मंदिर, मस्जिद , और गुरुदवारो मै उसे खोजते  फिरते हैं ! जबकि हम जिसकी तलाश मै चलते हैं वो तो हमेशा  हमारे साथ जाता भी है और वापिस  भी वही आता है !
         भगवान वह आकृति है जिसकी हम इतनी श्रद्धा से पूजा अर्चना  करते हैं उस पर विश्वास करते हैं ,अगर उसी के प्रति हमारी आस्था है तो वो हमसे कुच्छ भी नहीं मांगता ! वो तो हर मोड़ पर हमारा साथ देने के लिए हर वक़्त तैयार रहता है ! उसका तो उद्देश्य ही हम सब से अच्छे काम करवाते रहने की होती है और हम उसके इतने करीब जा कर भी ये बात समझ ही नहीं पाते और सारी जिंदगी इसी अपाथापी मै बिता देते हैं और जिंदगी भर एसा कुच्छ भी नहीं कर पाते जिसके लिए उसने हमे ज़मीं मै भेजा था ! मेरी सोच के अनुसार किसी पर आस्था करना गलत नहीं है उसके बिना तो संसार मै कुच्छ भी नहीं है पर एसा  करने के साथ किसी येसे काम को करना जिससे हमारी उस आस्था का मकसद भी हल हो जाये और  ज्यादा  अच्छा है ! हम किसी येसे इन्सान की मदद करे जिसको हमारी जरुरत है और हम उसे मदद देने मै सक्षम भी हैं तो हमारी उसके प्रति की गई आस्था का असर दोगुना हो जाता है क्युकी उसके अन्दर भी वही विराजमान है जिसकी खोज हम बाहर करते हैं और उसके अन्दर से निकली ख़ुशी ही भगवान का  आशीर्वाद है ! हम कभी अपने आपको भीतर तक देखते ही नहीं है की हम क्या चाह रहे हैं और क्या करने से क्या असर होगा हम तो सिर्फ  आँख मूंद कर उस दिशा मै चल पड़ते हैं जहां दूसरा हमे ले जाता है हमे खुद पर ही भरोसा नहीं तो हम किसी और पर भरोसा केसे कर सकते हैं ? सबसे पहले हमे अपना भरोसा जीतना  है की क्या गलत और क्या सही हो सकता है ! जब हम अपनी सोच समझ से काम करते हैं तो एसा कभी नहीं हो सकता की हम गलत हो जाये ! अगर हमे उसे पाना है तो हमारी पहली दस्तक उस गरीब के घर मै होनी चाहिए जिसके अन्दर की दुआ उस तक पहुचने की सीडी होती है ! कितना आसां है ये समझना की उसके बनाये हुए संसार मै इतनी गरीबी है तो वह चेन  से मंदिर, मस्जिद या गुरुदवारो मै केसे विराजमान हो सकते हैं ? हमारे देश मै ५० करोड़ की आबादी गरीब जनता की है और हम ये सोच ले की भगवान उन सब की दुआ ना सुन कर हमारी सुने कहाँ तक सही होगा ? बल्कि हमे तो उसका शुक्रगुजार होना चाहिए की उसने हमे इतना कुच्छ दे दिया की हम अगर चाहे तो दुसरो की मदद करके उसका काम आसां कर सकते हैं !
                                                भगवान के प्रति आस्था रखना और झूठी शान , दिखावा दो अलग २ बात है ! हम धार्मिक स्थानों मै जाकर झूठी शान की खातिर इतना २ पैसा लुटा आते हैं जिसकी वहां जरूरत ही नहीं होती जो हमेशा हमे देता रहता है उसे इन सब  की कहाँ जरुरत हो सकती है वो हमे उन जरुरत मंद लोगो को देने का माध्यम  बनाना चाहता है पर हम है की इस तरह की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते और उसका दिया पैसा उसी के चरणों मै लोटा आते हैं जिसका इस्तेमाल गलत कामो मै हो जाता है और वो गरीब तक पहुँच ही नहीं पाता ! अब तिरुपति नाथ के मंदिर को ही ले तो वहां करोडो की सम्पति चढाई जाती है पर हमारे देश की जनता फिर भी भूख से बिलख रही है तो किस काम की वो झूटी आस्था जो अपने साथ रह रहे उस इन्सान का पेट न भर पा रही हो ? मेरे शब्दों मै एसी आस्था कभी सार्थक नहीं हो सकती ! जब एक इंसा का दुसरे इंसा के प्रति प्यार , दया भाव ही नहीं है तो वो भगवान से प्यार करने का दावा  केसे कर सकता है वो हमसे तब तक दूर हैं जब तक हम किसी इन्सान के चेहरे पर ख़ुशी न ला दे उसके बाद हमारी आस्था उसके प्रति अपने आप कमाल दिखाने  लगेगी ! अगर हमे उस तक पहुंचना है तो हमारी पहली सीडी इंसा का इंसा के प्रति प्यार ही है उसके बाद ही आगे का सफ़र शुरू किया जा सकता है जब तक पक्की नीव का निर्माण नहीं करेंगे तब तक पक्का घर केसे बना  सकते  है उसके बाद ही हमारा जिंदगी  का सफ़र आसां हो जायेगा और हम सुकून से रह पाएंगे और भगवान   के प्रति समर्पण का भी यही उदेश्ये है !
  भगवान कितने सरल अंदाज़ मै हमे अपने साथ जुड़ने का रास्ता बतला जाते हैं पर हम हर बार उसकी इस अदा को नज़र अंदाज़ कर देते हैं और दुबारा से उसी राह मै चल निकलते हैं जिसका कोई मतलब ही नहीं है! जानते हम सब  कुच्छ हैं पर उसके अंजाम से डरते हैं क्युकी उसे अपनाना हमारे लिए थोडा नया जरुर हो सकता है लेकिन  उससे नुकसान कुच्छ भी नहीं होगा बल्कि हमे अपने जीने का मकसद जरुर मिल जायेगा ! एक छोटी  सी  हिम्मत से लिया गया फ़ेसला हमारे देश की गरीबी को जड़ से ख़तम कर सकती है और हमे अपने आप को समझने और जानने का मोक्का दे सकती है की हम क्या हैं और असल मै चाहते क्या हैं ? चारो तरफ एक सुकून लाना ही तो हमारा मकसद होगा ?और अपने उस भगवान को जिसे हम गरीब नवाज़ , दिन दयाल और पालन हारे भी कहते रहते हैं उस नाम का मतलब भी सार्थक कर देंगे ! अगर हम गोर से सोचे तो इन्ही नामो मै कितना बड़ा राज़ छुपा है जो किसी न किसी तरह हमे कुच्छ बताना चाहता है ! शायद हमारी सही आस्था का परिचय भी  यही है !

सूक्ति

दुनिया क्या कहेगी - एसा सोचना भी कमजोरी है ,तुम्हे जो अच्छा लगे वही करो ! जीवन का रहस्य  भी यही है ! 

एहसास


क्या कहे कैसी  हसीं वो शाम थी |
ना जाने किसकी याद हमारे पास थी |
सर्द हवाओं  का प्यारा सा एहसास था |
बैचेन कर देने वाली रूह का जो साथ था |
जान कर हम ना जाने क्यु अनजान थे |
मीठे -मीठे दर्द से तब हम  बेजान थे |
 सर्द हवाएं बदन को छु कर जा रही थी |
प्यारी - प्यारी बातें दिल में  उतर रही थी |
मीठे से  दर्द का एहसास  दिल के करीब था |
कहते भी कीससे हर कोई तो हमसे दूर था |
रात ने भी जो  दस्तक देना शुरू किया |
नींद  ने भी अपनी आग़ोश में  लेना शुरू किया |
बात जहां से शुरू हुई वही पर खत्म हो गई |
यादें  भी अपने  पंख समेटे हमसे विदा हुई  |
अब ना जाने वो अपना कब पैगाम सुनाएगी |
अपने प्यारे एहसासों से फिर से हमें जगाएगी |

नज़रे


  नज़र जो उनसे हमारी मिल गई !
ना जाने क्या वो क़यामत कर गई !
फिर संभल के भी न संभल पाए हम !
नज़रे ही कुच्छ जो एसा जादू कर गई ! 
नज़रे  मिली और कायनात  पलट गई ! 
नज़र न जाने  नज़र से  क्या कह गई  !
नजर ही नज़रो से हमारा पता कह गई  !                         नज़र ही उनका काम आसां कर गई  !                       और हमको उनका गुलाम कर गई  !                                                                                 

सादगी

   
सादगी वो अदा है जिसका कोई सानी नहीं है !
सादगी ही इंसा को इंसा की हकीक़त बतलाती है !
सादा जीवन उच्च विचार इंसा का परिचय करवाती है !
सादगी ही इंसा को इंसा के और  करीब ले आती है !
सादगी ही असल जीवन से उसका परिचय करवाती है !
सादा जीवन ही मानव का असल जीवन का गहना है !
और ऊपर का आवरण तो इसी जग मै रहना है !
सादगी ही मानव की सभ्यता का प्रतीक है !
अपने लिए कठोर दुसरो के लिए कोमल है सादगी !

चुप्पी

   
                                     चुप्पी कितनी प्यारी जुबाँ रखती है !
                                                             बिन कहे हर बात बयां करती है !
                                     हर हाल को बदलने की हिम्मत रखती है !
                                                              सारे फेसले पल भर मै ये हल करती है !
                                     किसी से कोई शिकवा गिला ना ये करती है !
                                                             मेरे तो दिन रत ये साथ रहती है !
                                     दुसरे की भावनाओ का सम्मान करती है !
                                                             मुझे तो ये प्यार का सागर लगती है !
                                     बिना कहे सारे जवाब दे देती है !
                                                             सारे मुद्दे बिना कानून के संभाल  लेती है !
                                     रिश्तो को एक लम्बा सफ़र देती है !

कॉमनवेल्थ


कॉमनवेल्थ कॉमनवेल्थ
                   आ गया लो कॉमनवेल्थ
कितने मुद्दे अपने साथ
                   और लाया कॉमनवेल्थ
किसने खाया किसको खिलाया
                  बता न पाया कॉमनवेल्थ
कितनी अभी और नई कहानी
                 हमको सुनाएगा कॉमनवेल्थ
बारिश आई चली गई
                फिर भी न डोला कॉमनवेल्थ
गरीबो ने अपनी मेहनत से
                खूब सजाया कॉमनवेल्थ
बाड़ से बेहाल जनता को
               नज़र अंदाज़ कर गया कॉमनवेल्थ
नेतागड़ सब व्यस्त थे
              क्युकी बहुत करीब था कॉमनवेल्थ
भूखी जनता रो - रो हारी
               उनको क्या देगा ये कॉमनवेल्थ
ये सब  तो चलता  ही रहेगा
             अब कह भी दो स्वागत  कॉमनवेल्थ !