परिचय


पलपल दिल को अब करार आ रहा है |
जमाना हमको हमसे मिलवा  रहा है |

कश पे कश प्यार का चढ़ाए जा रहे हैं |
दिल का गुबार धुएं में उडाये जा रहे हैं |

कश्तियाँ खोल दी सबने अपने खेमें से |
तूफानों से लड़ना उनको सिखला रहे हैं |

कितनी भी गमगिनियाँ हो राहे वफा में |
जश्ने जिंदगी अब सब मनाये जा रहें हैं |

कोई भी कर रहा हो जिंदगी से खिलाफत |
ये जानकार भी सब मुस्कुराये जा रहे हैं |

दिया है वादा जिंदगी को  साथ निभाने का |
इसलिए हंस - हंसकर सब जिए जा रहे हैं |

टूटे न रिश्तों कि डोर


आलीशान  महलों कि चाहत में
हम दीवारों से बातें करने लगे |
मेज , कुर्सी का साथ पाकर ही
खुद को धनवान समझने लगे |
अपनों के साथ से थोड़े थके - थके
ओरों से  दिल कि बात करने लगे |
ये कैसी नई चाहत का दौर चला
कि  रिश्ते अब कमजोर पड़ने लगे |
इतनी बैचेनियाँ क्यु भरे  खुद में
कि जीना ही  मुहाल लगने लगे |
चलो समेट लेते हैं इस सफर को
कहीं रिश्ते ही न हमसे दूर होने लगे |
हम मानते हैं कि ये नए दौर कि बात है |
पर रिश्तों तो हमारे उतने ही खास हैं |

समर्पण


नदी चल रही है देखो
सागर में समाने |
कली खिल रही है
फिर से भवरों को रिझाने |
सूरज ले रहा अंगडाई
सुबह का भान करवाने  |
काली रात ने ओडी चादर
चांदनी के बहाने |
बादल भी गरजा फिरसे
इंसा कि प्यास बुझाने |
खेत लहलहाए हर दिल कि
उम्मीद जगाने |
मौन धडकने कुछ संभली
माहोल  बनाने |
कही चुप रहकर
तो कही कह - कह कर ...
खुद को सब चले हैं सजाने |
फिर भी सृष्टि कि हर कृति
कर रही है समर्पण
सबकी खातिर अपना
कुछ न कुछ गवाने |