अपना - अपना नजरिया

सबकी मंजिल एक ...
नजरिया जुदा - जुदा 
कोई हंस के तो कोई रोके 
जीवन है जीता 
कोई देके तो कोई लेके 
जीवन फिर भी है चलता 
कोई प्यार से ,
कोई मार से अपना 
सिक्का है जमाता 
समय अपने नज़रिए से 
निरंतर है आगे बढती  
न कभी रुकी है न रुकेगी 
जीवन हर मोड़ पर 
एक अनसुलझी पहेली 
जिसे सुलझाते हुए 
आगे बड़ते जाना है |
न ये तेरी , न ही मेरी 
विरासत में कुछ पल के लिए 
हमको - तुमको है  मिली 
आओ कुछ एसा कर दे कि
इसका एहसान उतर जाए
कौन  आएगा पलटकर 
फिर अपने आस्तिव की 
तलाश में ...
आज का गुजरा पल 
कल ... हमको देने वाला नहीं
सोने - चाँदी की ठेरी
हम कब तक साथ 
रखतें हैं ...
आपस के एहसास ही तो 
हमारे  हरपल साथ रहतें  हैं |
फिर निर्णय लेने में 
इतनी देरी क्यु कर हो 
बदल लो आजसे ही जीवन 
की सफल जीवन हमारा हो |


पूरी फिर भी अधूरी


मुद्दते बीत गई 
तुम न आये अब तक 
सुबह की हर किरण मुझसे ...
तेरा पता पूछती हैं |
चांदनी आ - आके 
दीदार को तरसती है |
फूल भी अपनी महक 
हरबार बिखेर जाती  हैं |
हवाएं भी देख तुझे ...
अपना रुख बदलती  हैं |
खुबसूरत रूह में महकती 
सी ग़ज़ल हो तुम |
सूरज से निकली किरण
जैसी  भी हो तुम |
खामोश रात की चमक 
जैसी हो तुम |
कभी खुशबु , कभी आंसूं 
कभी संगीत  जैसी हो तुम |
खुबसूरत चेहरे की 
एक प्यारी सी मुस्कान हो तुम |
किसी का प्यार , कल्पना 
और इन्तजार भी हो तुम |
पर फिर भी हकीक़त की तरह 
आज भी अधूरी हो तुम |