
ऐ पथिक !
थोडा ठहर , साथ मैं भी चल सकूँ |
राह में आगे निकल
मंजिल कि तलाश तक |
लहरों से डरकर जो तुम
कश्ती दरिया में न उतारोगे |
अपने गंतव्य कि दौड़ में
बहुत पीछे तुम रह जाओगे |
लोभ , लालच कि गर्द में
डूबा हुआ ये विश्व है |
हिसा - अहिंसा का राह में
फैला हुआ समुद्र है |
फूलों की ख्वाइश जो की तो
काँटों पर भी चलना होगा |
मोती जो तुमको चाहिए
गहरे सागर भी उतरना होगा |
सारी विपदाओं को जीत कर
आगे तुम जो बड़ते जाओगे |
थाम लेना हाथ मेरा थककर
राह में जो तुम रुक जाओगे |
करना प्रतीक्षा सुदूर भविष्य
कि गंतव्य तक |
चलना निरंतर ... धैर्य रख
मंजिल पाने कि चाह तक |