
राह में सफर तो सब , करते हैं साथ - साथ
धर्म के नाम पर , जाने फिर क्यु बबाल है |
धीरे - 2 बना रहे हैं लोग , मुझसे दूरियां
मेरी ऊँचाइयों का , क्या ये पहला पड़ाव है |
मंजिल की और बड़े जब , तो सब हम ख्याल थे
अब न जाने क्यु , और किस बात पर तनाव है |
मुश्किल से डगर में , मिलते हैं कभी - कभी
पर हमने सुना है , कि दोनों में मनमुटाव है |
कुछ लोग थे ऐसे , जिन पर हमें एतबार था
लगता है उन लोगों का भी अब , खाना खराब है |
कुछ का कहना है , कि गरीबी कुछ और साल है
हमें तो है लगता ये उन सबका , ख्याली पुलाव है |