छटपटाता मौन



प्रकृति का प्रकृति से जुडाव ,
नहीं अब नहीं रहा ये सब भाव ,
भीतर ही भीतर बड़ा कलरव है 
घनी भीड़ में सिर्फ शोर ही शोर है
भीतर से असहज ....
बाहर सभ्य होने की दौड है
सब कुछ है सही , पर फिर भी व्यर्थ
इतना दर्द , सब तरफ मौन ही मौन है
इतना असर , पता नहीं वजह कौन ?
शब्द जितने सहज , मौन उतना कठिन
द्वेष , इर्षा , क्रोध , मद , मोह और मैं
हर तरफ सिर्फ इसी का है बोल
जब जीवन ही रसहीन हो तो ...

गीत कैसे बने ...साज कोई कैसे छेड़े |

दिल



ये ख़ामोशी का मंजर 
और ये तडपता दिल |
राह में दूर तल्ख़ अब 
किसे खोजता है दिल |
छोटे - छोटे शहरों की
सुनसान डगर में ,
न कोई था , न कोई है ,
फिर क्यु परेशान है ये दिल |
सावन में भीगे हुए
वर्क में लिखे वो ज़ज्बात
जहन में बार - बार क्यु
दस्तक दे रहा है ये दिल |
सुनी आँखों में रोज
एक सपना सजाकर ,
उसे बेदर्दी से क्यु तोड़ देता है ये दिल |
आ टूटे सपनो की
एक किताब बनाएँ फिर देखें
अब तक कितनी बार टुटा है ये दिल |

सड़क


उफ़ !
और कितना लहू पिओगे  |
वैसे आदमखोर ...
पहले तो न थे तुम |
कच्ची - पक्की कंटीली राहों से
अक्सर गुजरी हूँ  मैं ,
पर इस तरह का खौफ
पहले कभी , जहन में न था |
अब तो राहों में , चलने से
डरने लगी हूँ मैं  |
घर से कोई भी निकले
खुदा की बंदगी करने लगी हूँ मैं |
कितनी ख़ामोशी से ...वाहनों को पलट
तुम इंसान निगल जाते हो |
ऐसे दरिंदगी का खेल ...
तुम कैसे ,
किस अंदाज़ से खेल जाते हो ?
बिना दर्द , बिना अहसास के
ये सब करना इतना आंसा नहीं |
फिर किसके इशारे में
ये खौफनाक मंजर सजाते हो |
कातिल सा ये भयानक लफ्ज़
तुम पर अच्छा नहीं लगता |
इंसान न होकर भी ये इल्ज़ाम
सच कहूँ यकीं नहीं होता |

आंधी



रोज रास्ते में , कभी - कभी टकरा जाती है |
धुल के साथ , पत्तों को भी साथ ले आती है |
बदल जाता है तब सारा आलम ...
जब - जब ये हकीकत में , दस्तक दे जाती है |
एक आशंका दिल में , रह - रहकर सताती है
ये जानते हुए भी की , कुछ देर के लिए ही आती है |
पर जाते - जाते अपने , कई निशां छोड़ जाती है |
निरंतर उसका आगे बढते जाना ...
डाली , टहनियों और कभी- २ पेड़ों को उखाड जाना ,
बढती गाड़ियों की , गति धीमी करते जाना ,
कभी किसी खम्बे से , टकरा तारो को गिरा जाना ,
सड़क पर बेसुध सी , बिछी दिख जाती है |
और जो रास्ते में हैं , उनसे ये अक्सर टकरा जाती है |
ऐसी आंधियां कई - कई बार , जिन्दगी में आती है |
कुछ ही पल में   , सारा सुकूने हयात ले जाती हैं |

नारी



धैर्य है स्फूर्ति है ,
ममता की मूर्ति है ,

शक्ति स्वरूपा है ,
प्रेम की प्रतिरूपा है ,

उर्जा की खान है ,
बच्चों की जान है ,

विज्ञान से नाता उसका ,
अंतरिक्ष भी भाता उसको ,

पति का वो मान है ,
विश्व की वो शान है ,

प्रकृति की शक्ति है ,
स्नेहमयी जननी है |

सत्य से परिचय




सुबह का सूरज शाम को ...
छत की मुंडेर से , फिसलता हुआ ,
आंगन में जो ठहरा |
पूर्व से दामन छुडाता हुआ ,
पश्चिम में जा उगा |
जीवन के पहलूँओं को समझना ,
इनता भी मुश्किल नहीं |
जीवन का सत्य , जीवन देकर
लम्हा - लम्हा समेटते जाना है |
हमारी उपलब्धियां , हमारे जीने का ठंग
जिंदगी सब कुछ धीरे - धीरे समझा देती है |
जुड़ते जाते हैं जैसे - जैसे संबंधों के डोर से ...
छुटना लाजमी है , ये बात बखूबी जहन में डाल देती है |
अकेले थे अकेले ही हमको जाना है ...
विधि का विधान पल - पल समझाती रहती  है |
फिर रह जाता है सिर्फ एक खाली शरीर
अकेला जर्जर हिलता हुआ ...
तब हाथ बढाकर दूर खड़े समय को
हमारा हाथ थमा देती है |

इससे भले तो हम पहले थे



बहुत अरसे बाद गली के नुक्कड़ में
हमें मिली थी वो |
शानों शौकत से लबरेज ,
गाड़ी से अभी - अभी उतरी थी वो |
हमें देखते ही तपाक से गले मिलने लगी |
जैसे  कैद से किसी पंछी को
कुछ वक्त उड़ने की इज़ाज़त मिली |
मेरी क्या सुनती , वो तो अपनी ही कहने लगी |
ऐसा लगा माँनो बरसो बाद , फिर वो बहकने लगी |
हमने भी हाथ में मोबाइल देख
चुटकी लेते हुए बात को पलटना चाहा |
उसकी बात को रोक फिकरा एक कसना चाहा |
लगता है आजकल , सारे जहाँ से जुडी हो ?
किसी और की नहीं , सिर्फ अपनी ही सुनाती हो ?
बस इतना सुनते ही वो रुआंसी सी होने लगी  |
खिलखिलाहट के बीच ,
उदासी की झलक साफ़ दिखने लगी  |
मोबाइल को देखते हुए , बस इतना ही कहने लगी |
इससे भले तो हम पहले थे  ...
दोस्तों के बीच जाकर हँसते - बोलते तो थे |
अब तो इसकी ट्रिन - ट्रिन से ही माहोल बिगड जाता है |
रांग नम्बर होने पर भी सवाल खड़ा हो जाता है |
और क्या कहूँ  ? ये तो बस मेरी सुरक्षा का एक बहाना है |
कही दूर होने पर पूरी घटना का ब्यौरा जो सुनाना है |



पुरस्कार कैसे दिए जाते हैं



कोई पुरस्कृत कैसे होता है ?
जैसे कोई जिंदगी भर बिना इनाम के
इनाम वाला बनता है |
वैसे कुछ लोग बिना नाम के भी ,
इनाम बटोरते रहते हैं |
तो कुछ नाम ऐसे भी हैं ,
जो इनाम की शक्ल ही , बदल देते हैं |
वे लेते हैं... तो खबर बनती है |
ठुकराते हैं.. तो खबर बनती है |
क्युकी ...  जो धूर्त होते हैं
वो ... बहुत मीठे होते हैं |
और मीठे फलो मै कीड़े भी जल्दी होते हैं |
तो बस उनकी मुस्कराहट को ही
तय करने दो .......?.
की  मुस्कान उनकी कितनी निर्दोष है |
और फिर वो  मिले , तो जानो
की उनकी आँखों में , चमक कितनी है  ?
आखिर में बस इतना कि मीठा  न मिले तो...
नमकीन से काम चलेगा ?
आजकल तो जेबकतरों और
उठाई -गीरों को भी इनाम
दे दिए जाते हैं |
तो अब हम कैसे ये तय करे की ...
पुरस्कार कैसे दिए जाते हैं ?      
                                   

कुछ अनसुलझे से पहलु



रुक ... थोडा ठहर |
ओ ... उड़ते हुए बादल |
सवालों में उलझे अनसुलझे , 
पहलुओं को सुलझा जा |
किस शर्त पर , आसमां के सीने में
तू अठखेलियाँ करता ?
किस चाहत से , अक्सर
धरा की तू , प्यास बुझाता ?
जमीं पर तो हमने कोई ऐसा ...
इंसा नहीं देखा |
बिना शर्त के कोई किसी को ,
हो अपनाता |
पर तू ... झूठी उम्मीद से ही
एक बार मेरे आँगन में उतरना |
मुंडेर में रखे उस लिफाफे को
अपने साथ ले चलना |
कुछ खास नहीं ...
अनसुलझे से कुछ सवाल हैं उसमे |
अक्सर तकलीफ देते हैं ,
जब सवालों के घेरे में लेते हैं |

उफ़ ये जिन्दगी



लहरों के संग 
बढती जा रही है जिन्दगी ...
मेरी सुनती ही नहीं 
अपनी सुनाये जा रही है जिन्दगी |

बाहर आने दूँ जज्बातों को 
तो लोक - लाज और मर्यादा ...
भीतर संभालूं तो
तो  घुटन , उससे भी ज्यादा |

कम शब्दों में बहुत कुछ
समझा रही जिन्दगी ,
बहुत अपनी और थोड़ी
मेरी सुना रही है जिन्दगी |

खामोश लहरों के संग
गीत गा रही है जिंदगी ...
सोचते हैं किसको छोडे ,
किसको थामें ...
जरा - जरा से दर्द में
दिल थाम लेती है जिन्दगी |

राह में रुक रुककर सबक
सीखा रही है जिंदगी ...
व्यक्तित्व कुछ तो हैं अब
सिमटने को आमादा
फिर भी तेरी - मेरी ही ...
करती जा रही है जिन्दगी |
अपने आप से बेखबर
खुद को मिटाए जा रही है जिंदगी |

तकरारे वफा

Photo: तकरारे वफा 

वो कहता है  , " मुझमे अब वो पहले जैसी कोई बात ही नहीं |
मैंने कहा , " तेरे दिल में मेरे लिए अब वो , ज़ज्बात ही नहीं |

वो कहता है  , " मेरी कशिश में पहले जैसी खलिश ही नहीं |
मैंने कहा , " तेरी चाहत में अब वो बेइंतहा  तड़प ही नहीं  |

उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |

उसने कहा , " बार - बार बदलना ये फितरत में नहीं मेरे |
मैंने कहा , " बेवफा ही सही फिर भी वफा की चाह रखती हूँ |

मायूस होकर  , " भूल जाना हमें अब और दर्द न सह पायेंगें |
मैंने कहा , कैसे भूलें ?
तेरे सिवा दिल में किसी और को रख भी तो न पाएंगे |

वो कहता है , " मुझमे अब वो पहले जैसी कोई बात ही नहीं |
मैंने कहा , " तेरे दिल में मेरे लिए अब वो , ज़ज्बात ही नहीं |

वो कहता है , " मेरी कशिश में पहले जैसी खलिश ही नहीं |
मैंने कहा , " तेरी चाहत में अब वो बेइंतहा तड़प ही नहीं |

उसने कहा , " तुम अब भी नहीं बदली , वही अंदाज़ रखती हो |
मैंने कहा , " मोहोब्बत हूँ पर बिखरकर संभलने का हुनर रखती हूँ |

उसने कहा , " बार - बार बदलना ये फितरत में नहीं मेरे |
मैंने कहा , " बेवफा ही सही फिर भी वफा की चाह रखती हूँ |

मायूस होकर , " भूल जाना हमें अब और दर्द न सह पायेंगें |
मैंने कहा , कैसे भूलें ?
तेरे सिवा किसी और को दिल में रख ही  न पाएंगे |

एक दस्तक जरुरी



गंगा का किनारा
दूर क्षितिज में छुपता सूरज
शंख - घंटियों की ध्वनि
हाँ यही तो है हमारा हिन्दोस्तान
और वही दूसरी तरफ ...
कुछ घरों में फांकों की नौबत
घर से बहार जान की कीमत
हर निगाह निगलने को बैचेन
हर कदम पर भाप बनकर उड़ते होंसले
कहीं शिकस्त इरादों से सुलगती जिन्दगी
बड़े - बड़े निर्माण में योगदान बांटता
सफलता की सिडीयों में आगे - आगे दौड़ता
एक तरफ ऊँचाइयों को छु रहा भारत
और दूसरी तरफ ...
अपनी जड़ों को कमजोर कर रहा भारत |

अपनी - अपनी सोच

Kalimpong Slideshow Photo 3 of 20

राह में सफर तो सब , करते हैं साथ - साथ 
धर्म के नाम पर , जाने फिर क्यु बबाल है |

धीरे - 2 बना रहे हैं लोग , मुझसे दूरियां 
मेरी ऊँचाइयों का , क्या ये पहला पड़ाव है |

मंजिल की और बड़े जब , तो सब हम ख्याल थे 
अब न जाने क्यु , और किस बात पर तनाव है |

मुश्किल से डगर में , मिलते हैं कभी - कभी 
पर हमने सुना है , कि दोनों में मनमुटाव है |

कुछ लोग थे ऐसे , जिन पर हमें एतबार था 
लगता है उन लोगों का भी अब , खाना खराब है |

कुछ का कहना है , कि गरीबी कुछ और साल है 
हमें तो है लगता ये उन सबका , ख्याली पुलाव है |

सिर्फ एक आह


वो भाग गई , वो भाग गई 
हम न कहते थे वो भाग जायेगी |
इस शोकाकुल शब्द ने जगा दिया हमें 
कितने दुःख कि बात थी 
पर उस शोर में दर्द नहीं .....
एक खुशी थी , एक मज़ा था 
किसी के दर्द में खुश होने की खुशी 
पता चला बस्ती से एक लड़की लापता है 
पर कोई नहीं जानता कि वो कहाँ है ?
हर निगाह उसे खोज रही है
उसके घर कि ख़ामोशी ...
उसके खो जाने का बहुत बड़ा सबूत है |
हाँ रपट लिखवाई गई है |
कार्यवाही भी चल रही है ,
पर मुन्नी का कोई पता नहीं |
घर वाले इस बात से बेखबर नहीं हैं  |
मुन्नी के दर्द को उन्होंने करीब से महसूस किया है |
उसके आगे घर के हालात कभी छुपे कहाँ थे ?
एक - एक निवाले के लिए इंतज़ार करना
कभी खाना , कभी भूखे सो जाना
हर सुबह जीना और हर रात मर जाना
पिता को अपने ब्याह कि फ़िक्र में ...
पल- पल मरते देखा था उसने
हाँ सच कहते थे लोग कि वो गाँव से भाग गई
पर सच इतना नहीं है ...
सच तो ये है कि वो सिर्फ गांव से ही नहीं
बल्कि इस जहान से भाग गई थी ...
अपने नाम का निवाला कम कर ...
पिता की चिंता को कम करने के लिए |

अंदाज़ अपना - अपना



बड़ा दिलकश सा अंदाज़ , है ये तेरा
बातों - बातों में हमको , रिझाना तेरा |

कभी पलकें झुकना , कभी पलकें उठाना
ये आँखों- आँखों में ही मुस्कुराना  तेरा |

जुबाँ से कुछ न कहना , बस खामोश रहना
ये वजह - बेवजह यूँ हमको सताना  तेरा |

कभी दूर हमसे जाना कभी पास मेरे आना
ये बात - बात पर यूँ इतराना तेरा |

चल छोड़ ये नजाकत कहीं कर न दे बगावत
ये रह - रहकर हमपे सितम ढाना तेरा |



आह और वाह है ये जिन्दगी


उम्र कि दहलीज पर सरपट आगे दौड़ती |
उलझनों को सुलझा कर राह को मोड़ती |

एक साँस ,एक आस और  एक विश्वास |
हरेक के जीने का मकसद ही कुछ खास |

कौन समझ पाया इसके मुकम्मल मायनें |
कभी ठहरी , कभी भागती इसके हैं बहानें |

हर नाकामयाबियों के बाद बंद मुठ्ठी खोलती |
एक शक्ति , एक विश्वास का संचार घोलती |

हर संघर्ष के बाद उल्लास का नाम जिन्दगी |
हर ख़्वाब को हकीकत का नाम देती जिन्दगी |

अपने परिचय से अनजान


सबका परिचय पाना चाहता है दिल 
खुद अपने परिचय से घबराता है दिल 
कितना झूठ , कितना धोखा , कितनी बईमानी
है हममे ........
हाँ इस पैमाने को अच्छे से जानता है दिल 
शायद इसलिए खुदको मिलने से घबराता है दिल 
मंदिर में जाता है ...
मस्जिद में भी जाता है ...
गीता और कुरान में भी दिल लगता है 
पर अकेले बैठने से बहुत घबराता है दिल 
इंसान से मिलता है ...
ईश्वर को पाना चाहता है ...
पर खुद से मिलने से अक्सर डर जाता है ये दिल
क्युकी खुद को बहुत अच्छे से जानता है दिल
हाँ इसीलिए यहाँ - वहाँ भागता फिरता है दिल |

एक अधूरी आस



हर बार कौडियों के भाव बिकता है 
उसका अनाज |
दिन - रात के सुंदर सपने पल भर में 
धाराशाही हो जाते हैं |
उसके कपडे से उठती वो मिटटी की गंध
कही जाकर खो जाती है |
वो जीवित होकर भी एक जिन्दा लाश
बन जाते हैं |
अपनी मेहनत का सही दाम न मिलाना ...
उनके बुलंद मंसूबों में पानी फेर देते हैं |
वो अपने ही हाथों अपनों का गला घोंटने पर
मजबूर हो जाते हैं |
सब कुछ देने का झूठा आश्वासन देकर
कुछ न मिलना |
पंछी के पर काटकर जीने को छोड़ देना
जैसा ही तो है ,
परिणाम वही जो अक्सर होता है |

आत्महत्या ...
यहाँ आत्महत्या को हत्या का रूप कहा जाये
तो क्या गलत होगा ?
हाँ इसका निवारण है पर ये आवाज अगर
उन कानों तक पहुंचे ...
जिनका कहना है कि हम तक बात पहुँचती ही नहीं
बेचारे ... कितने बेबस है वो लोग ( सरकार )

उनकी बेबसी उन्हें कुछ करने ही नहीं देती |
वर्ना शायद ये दशा किसानों कि कभी न होती |

नारी अबला नहीं



तेरी पहचान को लोग , नाम देने लगे हैं |
तेरे लहराते आँचल को , सलाम देने लगे हैं |
तेरे मुस्कुराने से ही तो , मुस्कुरानें लगी है हर शय |
तेरे जोश को देखकर , रिश्तों में निखर आने लगे हैं |
जब तू कमर कसती है , तो थम जाती है दुनिया |
तेरे सजदों के आगे अब , दुनिया झुकने लगी है |
तेरे नाम से ही अब नया इतिहास , रचा जायेगा |
पहले कहते थे ....  अबला जीवन तेरी यही कहानी |
अब आग से भी परिचय सभी का हो जायेगा |
स्वर्ण अक्षरों से हर उपलब्धि में ,
तेरा नाम लिखा जायेगा |
हाँ नारी है तू , आदिशक्ति है तू ,
इसी आत्मविश्वास और हिम्मत की दास्ताँ को
हर शख्स बारी - बारी से अब दोहराएगा |

अंदाज़ अपना - अपना

 

मुस्कान ही हमेशा कुछ नहीं कहती |
आवाज से हर बात बयाँ नहीं होती |
अहसास आंसूंओं से भी बयाँ होते हैं |
उनकी भी अपनी एक जुबाँ होती है |
मन को गुदगुदाती खुशी हो ...
या हताश के हों पल |
आशा की आहट हो या ...
फिर आकांशा की हो धमक |
भय से डरकर ...
या सुख में रमकर ...
हृदय की गोद से ...
एक बूंद आँखों में आती है |
आँखे तो हर हाल में छलक उठने को ...
बेकरार सी हो जाती हैं |
हाँ भाव ही तो है जो धरते हैं झट से
आँखों में एक तरल रूप |
जो आंसू बनकर हर बात बयाँ कर जाते हैं |

उम्मीद बनाये रखें



कौन जाने , कब , कहाँ कोई , राह भूल जाएँ |
अपनी उम्मीदों की शमां को , जलाये रखिये |

बारिशे तो आती - जाती है तूफ़ान गुजर जातें हैं |
बस अपने पाँव को जमीं में जमा कर रखिये |

घर की ये बात है निकले न घर से बाहर |
आप बस खिड़की दरवाजों को बंद रखिये |

बैठे रहे कोहनी टिकाये गाल पर कब तलक |
इंतज़ार में दरवाजें की दस्तक का ख्याल रखें |

हालें दिल अब तो बयाँ हो जाता है आँखों में |
मैं न कहती थी पानी है आँखों को बंद रखिये |

देर तक गरजते बादलों का शोर सुनने पर  |
भीड़ का हिस्सा बने रहने से परहेज रखिये |

जिस्म से अलग मिलो कहीं


आज फिर  सपने में तुम्हें  देखा मैंने ...
इस बार भी तुम्हे छुने की ख्वाइश मन में हुई |
आज फिर बड़ी मुश्किल से खुद को रोका मैंने |
इस बीच तो हवस के सिवा कुछ भी नहीं |
कभी मिलो जिस्म से अलग कही दूर मुझे |
जहाँ न तुम और न ही मैं रहूँ ...
एक दूजे के अहसास का सिर्फ जल तरंग सा बजे |
ये इजहारे और इकरारे वफा से अच्छा होगा |
फिर हवस का न इसमें कोई नामों निशां होगा |

इंसाफ हुआ तो जरुर था



कई राहगीर गुजरे थे 
उस राह से ...
खुले बदन भूख से वो ...
कराहता था वहाँ
कुछ आह भरकर ,
कुछ दीन - हिन कहकर 

आगे भी निकलते थे |
पर रूककर हाल पूछने 
न कोई पास था गया |
एक साया
 बढकर ...
पलभर रुका जरुर था |
जिसे देख बच्चे की आँखों में 
एक सपना था सजा ...
सोचा चलो आज उसे अपनी 

भूख को जाहिर करने का 
जरिया तो मिला |
कई तरह से कैमरे में
फिर उसने उसे कैद था किया |
वो यक़ीनन हमें एक 

भला मानस ही लगा |
भूख और गरीबी ने जिसे 

झकझोर था दिया |
वह रह रहकर उसे 
पुचकार रहा था  |
जैसे सब कुछ मिल जाने का 
उसमे हौंसला हो भर रहा |
सोचा अब उसके भूख का 

निवारण हो जायेगा |
कुछ मिले न मिले ...
भूख का जुगाड हो जायेगा |
जब सुर्ख़ियों में .....
सारा खुलासा हुबहू आएगा |
हाँ ये सच है कि ... इस दर्द की
बोली खुलकर थी लगी |
पर इंसाफ की हक़दार सबको 

दीवार में टंगी चित्रकारी ही लगी   | 

छोटी सी इल्तजा

 

बस छोटी सी एक 
इल्तजा है तुमसे ...
कुछ देर पंछी बन...
उड़ने की मोहलत मुझे दे दो |
कभी चाँद में छुप जाऊ |
कभी बादल में समा जाऊ |
बस छोटी सी ये ख्वाइश
पूरी मेरी कर दो |
जो मैं रच दूँ कोई सरगम
तो बेहिचक गीत रचने का 
होंसला मुझे दे दो |
तपती रेत में जब 
जलने लगे पैर मेरे ...
तो निरंतर बढते रहने की 
ताकत मुझे दे दो |
हाँ हूँ मैं सागर सीमाओं को
अपनी खूब पहचानती हूँ |
तुम बस करके भरोसा
कुछ पल पंख पसारने का
वादा  मुझे दे दो |

सिर्फ एक गुजारिश




बादलों में आज फिर एक शोर हुआ |
बादल बारिश बन धरा से मिलने उतरी | 
रिमझिम बूंदों के कोमल स्पन्दन से ...
धरा की कोख में फिर एक अंकुर फुटा |
सुन्दर कोमल कली के जन्म के साथ ...
माँ ने सुन्दर एक रचना को आकर दिया |
प्यार , दुलार और संरक्षण पाकर |
पौधे ने अब पेड़ का है रूप लिया  |
फल , फूल छाया को खुद में सजा ...
फिर से सृष्टि कि रचना को तैयार किया |
फिर नारी शब्द से इतनी नफरत कैसी ?
स्त्री के बिना जो होगी वो कुदरत कैसी ?
उसके बिना तो हर श्रृंगार ही अधूरा है |
उसके बिना प्रेम का न कोई पाठ पूरा है |
शक्ति बिना शिव का आस्तित्व ही नहीं |
बिन राधा के कृष्ण का हर रास अधूरा |
सहनशीलता , सृजन का पर्याय है नारी |
धडकनों में चलने वाली रवानगी है नारी |
उसके बिना सृष्टि की हर रचना अधूरी |
सोचो - २  बिन कन्या के कोई बात कैसे हो पूरी ?
 — 

रंगों कि फुहार




रंगों कि फुहार है
बसंती रुत कि बहार है |
कोयल भी देखो गा रही
रह - रहकर राग मल्हार है |
दिशाओं से गूंज रहा
ता - ता थैया का ताल है |
हर आलम  है थिरक रहा
प्रभु कि लीलाओं का चमत्कार है |
हिरणों कि मस्त छलांग में
कस्तूरी पाने कि आस है |
सूरज कि निश्छल किरणों में ,
एक अपनेपन का अहसास है |
झरनों कि कलकल धारा में
समर्पण करने कि प्यास है |
पर्वत कि ऊँची चोटियों में
सुरक्षा का एक आभास है |
ये जो सतरंगी रंगों कि
छा रही छटा मनुहार है |
ये मेरे देश में लोगो का
आपस का प्यार - दुलार  है|

एक झूठी उम्मीद

 

सुना था 
उस गांव में अब 
कोई नहीं रहता |
टिमटिमाती लौ में 
एक साया अक्सर 
दिखाई है देता |
किसका है वो अपना
जो गश्त वहाँ लगता है ?
अपने तो कहते हैं वहाँ
अब वहाँ सन्नाटों ने 

घर बसाया है |
वो लाठी , वो चश्मा
वो झुकी झुकी सी देह 

किस गुजरे पल  की 
दास्ताँ है कह रही ?
बंजर पड़ी धरती को
निहारकर कर वो क्यु
उसके लहलहाने का
इंतज़ार है कर रही |
शायद अपनों को
इस बात का अब
इल्म ही नहीं  |
कि आज भी ...उनकी जननी
अपनों के लौट आने की
आस में है जी रही |

दोषी कौन



खबर पढ़ी थी मैंने 
वो मर गया ...
फांसी लगाई थी उसने 
पर लोग कहते थे 
कुछ परेशान सा था वो
बहुत गलत किया उसने
साबित भी हो गया
कि ये आत्महत्या थी
और कानून कि नज़र में
ये एक जुर्म है
तो क्या इसका
जिम्मेदार वो खुद है ?
खुशी , दर्द , छटपटाहट
ये सब अपने बस में कहाँ ?
मजदूरो को कारखानों में
काम न मिलना |
किसानों को उनकी उपज का
सही दाम न मिलना |
बुनकर का करघा
हथिया लेना |
क्या इन सब में
किसी कि भी साझेदारी नहीं ?
क्या ये बिना हथियार के
दिए गए मौत के बराबर नहीं ?
फिर इस जुर्म का
वो अकेला भागीदार ?
सवाल तो और भी हैं
पर कहें तो किससे कहें हम 

चलो आज फिर खामोश ही रहे हम |

तेरे बिन




शामें गम अब और कटती नहीं है तेरे बिन |
बज़्म में विरानियाँ लगने लगी है तेरे बिन |
तन्हाइयों में भी अक्सर तेरा साथ है रहता |
ख्यालों में हरपल हलचल रहती है तेरे बिन |


मिलो फुर्सत से कि हम उदास हैं तेरे बिन |
नहीं कटती अब ये तन्हां सी रात तेरे बिन |
तेरे अहसास में अब पहली सी बात न रही |
जीवन जीना मुहाल फिर हुआ है तेरे बिन |

वक्त कि है साजिश हम तन्हां हैं तेरे बिन |
रिमझिम बारिश में भीगे अकेले तेरे बिन |
गुजरते हरपल में तेरी यादों का साथ लेकर |
राहे वफ़ा में कारवां संग चलते रहे तेरे बिन |

सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन |
हर उठती आरजू में सिर्फ तू ही तू शरीक हो |
बंद आँखों में सपने न सजा सके तेरे बिन |

माँ


आ उड़ा ले चल पवन
फिर मुझे उस गलियारे |
माँ कहते हैं जिसे
उसका वो स्पर्श दिलवाने |
वो रहती है जहाँ
उस देश का पता बतलाने  |
मैं हो जाऊ  फना
सिर्फ उस एक झलक के बहाने |
अहसास है मुझे
उसके हर अलग सी छुवन का |
कभी काली , कभी दुर्गा
कभी सरस्वती रूप था उसका |
आज भी वो मेरे
ख्यालों कि नगरी में है बसती |
सुख - दुःख में
हर हाल में मेरे साथ है रहती |
आँचल की छांव में
उसके एक मीठा सा सुकून है |
उसका हर स्पंदन भरता
मुझमे  बेमिसाल जूनून है |
आ ले चल पवन
मुझे फिर उस गलियारे |
माँ कहते हैं जिसे
बस उसका दीदार करवाने  |



सिर्फ पैसा



कहीं एक - २ आने का हिसाब मांग रही पैसा |
कही खुद को संभाल पाने में असमर्थ है पैसा |

कहीं भूखे बच्चे को  रुलाकर सुला रही है पैसा |
कहीं जश्ने  जिंदगी पल - पल  मना रही पैसा |

कहीं झोलियाँ भर २  के खुशियां लुटा रही पैसा |
किसी आँगन में सिर्फ मातम मना रही है पैसा |

दर्द कि इंतहा हर बार बिन पैसे के दम तोड़ रही |
कहीं पैसों के बीच खुदको न संभाल पा रही पैसा |

कही मौन रहकर अपनी अस्मिता लुटा रही पैसा | 
कहीं हवस कि आग में बे - वजह लुट रही है पैसा |

कोई गलत काम कर आसानी से कमा रहा  पैसा |
कहीं  पसीने कि कीमत भी न चूका पा रही  पैसा |

कहीं बेशुमार दर्द तो कहीं खुशियाँ लुटा रही  पैसा |
फिर भी हर वर्ग में अपना सिक्का जमा रही पैसा |

परिचय


पलपल दिल को अब करार आ रहा है |
जमाना हमको हमसे मिलवा  रहा है |

कश पे कश प्यार का चढ़ाए जा रहे हैं |
दिल का गुबार धुएं में उडाये जा रहे हैं |

कश्तियाँ खोल दी सबने अपने खेमें से |
तूफानों से लड़ना उनको सिखला रहे हैं |

कितनी भी गमगिनियाँ हो राहे वफा में |
जश्ने जिंदगी अब सब मनाये जा रहें हैं |

कोई भी कर रहा हो जिंदगी से खिलाफत |
ये जानकार भी सब मुस्कुराये जा रहे हैं |

दिया है वादा जिंदगी को  साथ निभाने का |
इसलिए हंस - हंसकर सब जिए जा रहे हैं |

टूटे न रिश्तों कि डोर


आलीशान  महलों कि चाहत में
हम दीवारों से बातें करने लगे |
मेज , कुर्सी का साथ पाकर ही
खुद को धनवान समझने लगे |
अपनों के साथ से थोड़े थके - थके
ओरों से  दिल कि बात करने लगे |
ये कैसी नई चाहत का दौर चला
कि  रिश्ते अब कमजोर पड़ने लगे |
इतनी बैचेनियाँ क्यु भरे  खुद में
कि जीना ही  मुहाल लगने लगे |
चलो समेट लेते हैं इस सफर को
कहीं रिश्ते ही न हमसे दूर होने लगे |
हम मानते हैं कि ये नए दौर कि बात है |
पर रिश्तों तो हमारे उतने ही खास हैं |

समर्पण


नदी चल रही है देखो
सागर में समाने |
कली खिल रही है
फिर से भवरों को रिझाने |
सूरज ले रहा अंगडाई
सुबह का भान करवाने  |
काली रात ने ओडी चादर
चांदनी के बहाने |
बादल भी गरजा फिरसे
इंसा कि प्यास बुझाने |
खेत लहलहाए हर दिल कि
उम्मीद जगाने |
मौन धडकने कुछ संभली
माहोल  बनाने |
कही चुप रहकर
तो कही कह - कह कर ...
खुद को सब चले हैं सजाने |
फिर भी सृष्टि कि हर कृति
कर रही है समर्पण
सबकी खातिर अपना
कुछ न कुछ गवाने |


क्या है ये सुकून



कैसी होती है ...ये सुकूने जिंदगी 
भूखे बच्चे को रोटी का निवाला 
खिलाकर देखो |
फिर भी न आये दिल में कोई अहसास ...
टपकते उसके आंसूंओं को
अपनों के साथ महसूस करके देखो |
मन जो महसूस कर रहा है

यही जिन्दगी का राज़ है
खुदा कि रहमत का 

ये जीता जागता कमाल है
मंदिर मस्जिद में जाने की
अब जरूरत ही न रही |
भूखे बच्चे के चेहरे में 

इबादते सुकून जो दिख गया |
फिर किसको खोजते फिर रहें हैं
हम भटक - २ कर दर - बदर ...
ऐसी सुकूने इबादत तो
हर गुजरते राह में देखो |
वो तो परख रहा है
हर रूप में पल - पल हमें |

बस उस अहसास को 
खुद में उतारकर कर देखो |

रिश्ते


खुली आँखों से जब देखा
जिंदगी भुरभुरा रेत का
एक टीला सा लगी
जो कभी बहुत गर्म
तो कभी ठंडी हो जाती
कभी लहरें बहा ले जाती
तो कभी तेज आंधियां
अपने संग उड़ा ले जाती
उस  रेगिस्तान कि तरह
जहां सिर्फ धसना
और सिर्फ धसना है
हरपल  हाथ से फिसलता हुआ
रिश्तों कि मजबूत डोर
जिसे थामे रहती
लहरों के थपेडों से बचाती
तेज आँधियों से संभालती
टूटे घरोंदों को फिरसे जोड़ती
मजबूत बाहुबल में जकड़े हुए
अपने जीने  को साकार करती
पर असल जिंदगी तो ...
इंसा के जहन  में है पलती
हर वक्त गोते लगाते हुए
उथल - पुथल करती हुई
भावनाओं को अपने में सजाती हुई
हर वक्त मकडजाल बुनकर
अपने जीवन को दिशा देती
सबसे दूर सिर्फ अपने आप में  ...
जिसकी किसी को कोई खबर नहीं
पर रिश्तों कि डोर उसे टूटने न देती |

है इंसा कि शिकायत कि मुझको कुछ नहीं मिला



हर बज्म में बैठे और खुदको साबित भी कर लिया |
फिर भी रही शिकायत की  हमको कुछ नहीं मिला |

चोखट को अपनी छोड़कर अरमान दिल में ले चले |
पर इतने बड़े जहां में भी कोई अपना सा न मिला |

दिल थाम कश्ती को तूफान के हवाले था कर दिया |
सागर के गर्भ में उतर कर भी हमें कुछ नहीं मिला |


काली अँधेरी  रातों में चाँदनी ने पूरा साथ था दिया |
जिसकी थी दिल में ख्वाइश उसका ही न पता मिला |

इसका - उसका करके खुद के हिस्से में दर्द था लिया |
दर - दर कि ठोकर खाकर भी हमको कुछ नहीं मिला |

ख्वाइश का था ये दिलकश सफर तो वो कैसे हार जाती |
अंधा होता है ये सफर इसलिए इंसा को कुछ नहीं मिला |

बहती नदिया


कब हुई विमुख मैं 
अपने किसी कर्तव्य से |
बह रही हूँ आज भी 
कल - कल के उसी वेग से |
बच - बच के आज भी चलती 
पत्थरों के प्रहार से ... |
कर रही हूँ सबका पोषण 
आज भी उसी सम्मान से |
ऊँचे - ऊँचे पर्वतों को
भेंद्ती में चल रही |
कठिन रास्तो को पार कर 
आगे ही आगे बढ़ रही |
कभी चंचल , कभी कलकल 
कभी भयावह रूप धर - धर के ,
चलती हूँ धरा की गोदी में 
जन - जन की प्यास बुझाने तक |
मिलकर आज जो सागर में 
अपना मैं आस्तिव गंवाती हूँ |
उठकर उसी की गोदी से 
अपना आस्तिव फिर में पाती हूँ |