प्यार का मतलब ...
अगर दान जैसा होता |
तो इंसा खुद से इतना
परेशान न होता |
प्रकृति और इंसा के प्यार में
बस यही एक है अंतर |
उसके अन्दर लेने की
चाहत जो नहीं है |
हम जानते हैं इंसा सिर्फ
भावनाओं में है जीता |
कुछ देके लेने की
चाहत है करता |
यही उसके दुःख का
कारण है बनता |
अगर ऐसा न होता तो वो
कभी तन्हा न होता |
सब उसके होते और
वो सबका होता |
पाने की चाहत में
वो इंसां को बांधना है चाहता |
न बंधने की चाहत में
वो उसको खोता है जाता |
प्यार तो पहले ही से
बंधने से है डरता |
न बंधने की चाहत में
वो इंसा से दूर - दूर होता |
इसी भ्रम में इंसा
अपना जीवन बिताता |
बिना कुछ पाए ही
दुनिया से है जाता |