वो गुमनाम पल



सुनो , 
याद करो न 
वो फुर्सत का पल 
जब हम सिर्फ और सिर्फ 
एक दुसरे के लिए जियें हों ,
जब हमारे बीच में
हम दोनों की बातें हुई हों ,
सच कहूँ ,
मैं तो सोच - सोचकर
थक गई पर ...
याद ही नहीं आया वो पल
जब हम एक दुसरे के लिए जिए हों
हाँ कई बार साथ बैठना हुआ
पर हर बार बीच में ...
तीसरे का ही जिक्र रहा
साथ रहकर भी ...
बस फासला ही बना रहा ,
अब तुम ही याद दिलाओ न
कौन सा था वो लम्हा ?
जब हमने साथ बैठकर
चाँद को निहारा था |
उसकी खूबसूरती में ही सही
चंद किस्से सुनकर
कहकशा लगा था |
सुनो ,
मुझे बताना जरुर ,
मुझे उस पल का इंतजार है
उस पल को महसूस करने की चाह है ,
कई बार पढ़ा है , मैंने किताबों में ,
चन्दनी रात में प्रियतम के साथ बैठकर
चाँद का दीदार सुकून देता है ,
याद रखोगे न तुम , देखो , भूल न जाना
मुझे उस पल को अहसास में है बसाना |