बीते लम्हों से सजा नया साल




जानते थे वो न रहेगा साथ
मेरे इस छोटे से  घरोंदे में
फिर भी उसकी खातिर
दरवाजे थे खोल दिए मैंने |

वो चलता रहा दूर तक
अपनी ही खुमारी में
लुटाता रहा खुद को
वक्त का रूप धर - धरकर |

कर चूका था वादा
सफर में साथ चलने का
बहुत रोया अहसासे जुदाई को
याद करकर के  |

हाँ था दिल में  प्यार
इसलिए कुछ कह नहीं पाया
अब कहता भी क्या वो तो था
अब बीते वक्त का एक साया |

थमा गया मेरे  हाथ में
अब अपने ही नए एक रूप को
चला खुद को बीता कल कह
आया चुपके से फिर
नए साल का रूप धरकर |

मेरे सभी सम्मानित मित्रों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |

मौसम का सुहाना साथ




मौसम न जाने क्या , साजिश है कर रहा  |
हर तरफ घनी रात का , दामन पसर रहा |

चाँद की चांदनी भी ,  मध्यम है पड़ रही  |
मानो कोहरे की , अब बारात निकल रही |

आसमान में बादल ऐसे , बन - बिगड रहें |
हमसे कोई बात कहने को हों वो तरस रहे |

महसूस होने लगी वही , सिरहन की रात है |
बारिशों के पाँव बंधी घुंघरुओं की आवाज है |

पेड - पौधे बदलने लगे अब  नई पोशाक है |
पहाड़ों को मिली श्वेत चादर की सौगात है |

अजब  मौसम अब मेरे देश का है हो रहा |
मैं कर रही हूँ सफर वो मेरे साथ चल रहा |

बदला - बदला सा इंसान



आँगन की खोज थी मकान मिल गया |
नया शहर तो बिन आँगन के बन गया |

देखो घर कितनी जल्दी है सिमट गया |
रिश्तों की गर्माहट को भी न सह सका |

झरोखों से अब कोई यहाँ झांकता  नहीं |
झत जैसी चीज़ का तो नामोनिशां नहीं |

अपने - अपने जेल में सब कैद हुए है ऐसे |
अपने गुनाह की सजा सब मंजूर हो जैसे |

बाहर की दुनिया से कोई सरोकार ही नहीं |
घर में रहता है कौन इसकी भी खबर नहीं |

तमाशाइयों सी जिंदगी है बनके रह गई |
सबकी आपस में ही है जोरदार ठन गई |

अब किसीसे किसीको न कोई गिला रहा |
जीने का नया सिलसिला जो है चल पडा |

अब इंतहा भी एक हद से है गुजरने लगी |
लो तारीखे अंत अब करीब  है आने लगी |


अँधेरी रात का साया


वो गुनगुनाती  गज़ल , वो मदहोश  रातें  |
तेरे - मेरे मिलन की , वो दिलकश बातें   |

न तुमने कहा और , न कुछ हम कह सके |
ख़ामोशी में गुजरी , तमाम रगिन सदाएं  |

सोचा था रात का , हर एक लम्हा चुरालूं  |
उसको पिरोकर फिर , एक गजरा बनाऊं |

तेरे गेसुओं को , महकते फूलों से सजाकर |
हो जाऊं फ़िदा , फिर तेरी हरएक अदा पर  |

पर रात के अँधेरे  ने , मंजर ऐसा बना दिया |
मेरे - तेरे दरमियाँ कोई , आके था ठहर गया |

पलक उठाके  मैंने , उसका दीदार जो किया |
वो कोई और नहीं , वो तो साया था  चाँद का |

वो हादसा जहन में , मेरे कुछ ऐसे उतर गया |
चांद तो चला गया , पर वक्त वही ठहर गया |

अब तक भी न , मुझसे  वो पल संवर सका |
वही बेकरार रातें और चांदनी का संग मिला |

हाय गरीबी



बिन पानी मछली , तडपती है जैसे  |
भूख से तडपती है वैसे , रूहे गरीबी  |
इंसा की ,  इंसानियत को परखकर  ,
डूबती नाव की आस , लगाती है गरीबी  |
सागर में ज्वार जैसे , हिलोरे है लेता |
वैसे पेट में आग , लगाती है गरीबी |
जुबाँ तो हरदम उसके , साथ है रहती |
पर जुबाँ से कुछ न , कह पाती गरीबी  |
पेट की आग जब , तन - मन को जलाती |
बस आसुओं का सैलाब , बहाती है गरीबी |
बंजर धरा को देख , आसमां जब है बरसता |
तब एक सुकून दिल में , ले आती गरीबी |
सागर में बढती नैया को , देख - देखकर ,
खुद में एक विश्वास , जगाती है गरीबी |
सारे प्रयासों को , विफल होता देखकर ,
उसे ही किस्मत ... कह  देती गरीबी |
जिंदगी में अपना नाम , दर्ज करवाकर ,
अपने सफर का अंत , कर देती गरीबी |

खिलती कली




मन के आँगन में
बहारों का देखो  डेरा |

माली के चेहरे में
मुस्कराहटों का सवेरा |

चिड़िया की चहचाहट
भंवरों का प्यारा गुंजन |

तितली का यूँ मचलना
बादल का फिर बरसना |

हिलोरे लेता सागर
कलकल बहती नदिया |

चंदा का मुस्कुराना
काली रातों  का  पहरा |

सूरज की प्यारी किरणें
हवा का मंद - मंद बहना |

फूलों की प्यारी खुशुबू
सारे आलम का ठहरना |

खामोश रात


ए रात की तन्हाईयों , मुझको लगा लो सीने से |
डर लगता है अब  , ख़ामोशी भरे इस मंजर से |

वस्ल की रात है  , राहत से बसर अब होने दो |
न रहे गिला कोई , धमकी का असर भी होने दो |

लोग कहते हैं दीवाना , इस पर भी यकीं करने दो |
न रहे तमन्ना अधूरी , उस पल से भी गुजरने दो |

है आग मुझमे भडकने की , कहाँ है  इंकार हमें |
न दो हवा इतनी , चलो अब थोडा  सँभलने दो |

वो चाहता है हमें , ये बात जो वो दावे से कहता है |
दो दर्द ऐसा , अहसासे बयाँ को महसूस करने दो |

जुदाई का है आलम तो , जुदाई का ही मंजर होगा |
है इतनी गुजारिश , सह लेने तक की हिम्मत  दो |

चांदनी रात जो है  तो ,  ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती |
तारों से कुछ देर और , ठहर जाने की मोहलत ले लो |

महफ़िल सजे ऐसी , गिरफ्त में उसकी हम आ जाएँ  |
वक्त से चुराकर चंद लम्हे , चले जाने का वादा करलो |

अंदाजे जिंदगी

Birds Wallpaper of two birds sitting on a tree
तपती रेत में चलो बारिश में नहा कर देखो |
जिंदगी क्या है जरा बाहर तो  आकर देखो |

बंद किताबों के पन्नों को पलटकर क्या होगा |
हकीकत जिंदगी की , शब्दों में उतरकर देखो |

देखकर के चमन को दूर ही से परखना कैसा |
खुशबुएं हसीन नजाकत को छू - छूकर  देखो | 

महफ़िलों में क्यु छलक जाते है गम के आंसूं |
इसका सबब तो दीवानों की दीवानगी से पूछो |

रात भर जली शमां सुबह क्यु दम तोड़ दिया |
ये अंजामें सफर रात भर जलते परवानो से पूछो |

कीचड़ में रहकर खुदको महफूज रखना हो  कैसे  |
ये राजे हकीकत कीचड़ में खिले  कमल  से पूछो |

गम तो है जिंदगी में फिर भी ये इतनी हसीं क्यु है |
अंदाजे जिंदगी से ही  इस बात  का तुम पता पूछो |


कौन गुनाहगार

 
मौसम तो अपनी चाल से , चलता है |
वक्त के साथ , अपना रंग बदलता है |

सुबह की धूप आकर , जहां ठहरती है |
सांझ होते ही ,  दामन समेट लेती है |

तेज बारिशों का , दोष नहीं है तबाही |
ये प्रकृति से की गई छेडछाड कहती है |

होश वाले भी जब  ,  होश गंवा सकते हैं |
बदहवासों को , किस बात की मनाही है |

इतनी गमगीन नहीं है , जिंदगी की राहें |
ये बीते वक्त की बीती कहानी कहती है |

नाकामयाबियों में , वक्त का नही है दोष |
ये वक्त के साथ न चल सकना  कहती है |

जेहन में दर्द के बादल , घने कितने रहे |
सुकून दबे पाँव, दस्तक लगा ही देती है |

चाहत एक नए आशियाँ की

Image
ए  दिल बता , की तुझे  क्या है हुआ ,
किस बात पर ,  तू मुझसे  है खफा |
ये गमगिनियाँ और ये मजबूरियाँ ,
आ मिलकर मिटा दें अब ये सारी दूरियां  |
मैं ,  मैं न रहूँ  ओर   तू , तू न रहे,
संग मिलकर बनायें , फिर एक नई दास्ताँ |
ए दिल बता  ..........
अरमां यही है दिल में   , हमसब एक हो जाएँ |   ,
न रहे कोई गिला  , सारा जहां अपना कहलाये |
पर ये जो  चमन है  , सिर्फ मेरा ही नहीं है ,
खिलते है फूल मगर , खुशबु ही नहीं  है |
बन जाये ये  महकता चमन गुलिस्तां का
गीत कोई गुनगुनाये , सुर एक सा सज जाये |
ए  दिल बता है ..........
जब होने लगेगी पूरी , मेरे दिल की ये आरजू
सपनों में पंख लगते ही , दिल खुशी से झूम जाये |
देता  है दिल सदाएं , मांग - मांग कर दुआएं
खुदा की रहमत का असर , कभी कम न हो पाए |
हरपल सजाकर के रखना , परवरदिगार की चोखट
फरियादी आये तो , खाली हाथ न जाये |
ए  दिल बता .............

इंसान इंसान से जुदा नहीं


अंजाने एक शोर ने
फिर मुझको चोंका  दिया |
ऐसा लगा की फिर कंहीं
कोई मंजर बिगड गया |
पास जाकर देखा तो
किताबों में थी बहस छिड़ी |
करीब जाकर  सुना तो
बात का पता चल  गया |
सभी ग्रंथों की आपस में
ये अनबन थी चल  रही |
किसका ग्रन्थ संस्कारी
उनमे ये  शर्त थी लगी |
खुद - खुदको न जानकार
बात इंसानी बहस पर थी टिकी |
इसलिए बिना सोचे - समझे
आपस में  ये बहस थी छिड़ी  |
बहुत वक्त गुजर गया
जब न कोई फैसला हुआ |
फिर छाई थोड़ी  चुप्पी
और समां  बदल गया |
सब एक दूसरे से
खुश हो - होके गले मिलने लगे थे |
सब ग्रंथों का एक ही है कहना
ये कह - कहकर सब खुश हो रहे थे |
अब साथ - साथ रहेंगे
उन्होंने तय था कर लिया |
साथ रहने में ही है मज़ा
सबने अब ये फैसला था कर लिया |


दोस्ती


मैं आपको अच्छी किताब समझती हूँ |
आपके दिए सम्मान को मैं प्यार समझती हूँ |
क्या है ये रिश्ता जो दूर हैं आप हमसे  ,
फिर भी सबको मैं अपने पास समझती हूँ |
आपकी वाह - वाह  मुझको  सम्मान है देता  |
ना - ना बेहतर लिखने का संकेत समझती हूँ |
यही अहसास हमें एक सूत्र में है बांधे  ,
इसको आपसे जुड़ने का सोभाग्य  समझती हूँ |
क्या किससे है पाना , किसमे क्या है खोना |
इन सबके अहसास से मैं दूर ही रहती हूँ |
जीवन में जीने के लिए  कुछ तो है करना |
इसलिए मैं हररोज एक कविता लिख देती  हूँ |

जिंदगी एक पहेली


आज भी इंसान
उसी दौर से  गुजर रहा |
बेशुमार भीड़ मगर
तन्नहाइयों में है  पल रहा |
निगाहें  - निगाहों  को
खोज रही है राहों में    |
जैसे  एक - दूसरे का साथ
नागवारा  लग रहा |
सहरा में तन्हा  रूह को ...
प्यासा  देखकर |
पानी की तलाश में
इंसा यहाँ - वहाँ है फिर रहा |
अपनी जिम्मेदारियों से
परेशान तो है सब मगर ...
कारवां  जिंदगी का
फिर भी है गुजर रहा |
नए - नए सपनों की
सौगातें सजा कर |
इंसा अपने जीने को
आसां है कर रहा |
तपती गर्मी से झुलसते
पौधों को देखकर |
माली देखो  पानी की
बौझारें कर रहा |
दूर बैठा कवी
हाथ में कलम थाम कर |
जिंदगी को लिखने की
कोशिश है कर रहा |

अब न रहे खेत - खलियान



बरस बादल , घटा बनकर 
धरा की रूह है प्यासी |
भिगो तन को सभी के 
हर तरफ छाई है ख़ामोशी   |
भरोसा न रख तुझपर इंसा ने ,
उसे फिर कर दिया रुसवा |
तेरा नाम बदनाम कर
बना डाले उसने कई और मकां
 |
खुदगर्ज़ कितना हो गया इंसा
जिसे न फ़िक्र किसी की |
परवाह जो करने लगा
अब वो सिर्फ और सिर्फ खुद ही की |
लहू अपना पीला जो
पाल रही है वर्षों से जन - जन को |
इंसान बेदर्दी  से  खुले आम ...
भेद रहा है आज उसके ही सीने को |
चंद पैसों की खातिर बेच रहा 

आज वो खुद अपने ही अंश को |

सब जानते हैं हम


कहाँ रुकना कहाँ चलना
ये फन बखूबी जानते हैं हम |
जीवन के सफर को
तभी आसां बना पाते हैं हम |

आँधियों के रुख को
पहले से जान लेते हैं  हम |
अंजाम को उसके तभी
आसानी से झेल पाते हम |

रुख देख हवाओं का
उम्र दिए की लंबी करते हम |
सुनकर बादलों का शोर
सफर को अंजाम देते  हम |

लहरों को देखकर
नाव को सागर में डालते हम |
तूफानों की दिशा जानकर
मुंह कश्ती का मोड लेते हम |

डरकर काँटों की चुभन से
फूलों से झट मुँह मोड लेते हम |
खुशबूं का भान होने पर
लाकर उसे घर में  सजाते हम |

टूटे न कोई रिश्ता
फिर खुद को मिटाते हम |
अपने को दरकिनार रख
अपनों का घर बसाते हम |


बस एक आस


भूख से व्याकुल पेट
कुछ ऐसा रूप है धरती |
बिन पानी के मछली जैसे
रह रहकर है  तडपती |
इक  टक निहारती आँखे
किसी से कुछ नहीं  कहती |
बस नैया को पार लगने की
एक आस में ही है जीती |
सागर में  उठता ज्वार
पेट में हिलोरे जब है लेता
उसके शांत होने तक का
बस वो इंतज़ार ही  करती  |
भूख  - प्यास की आग
पेट को  इस कदर है तरसाती  |
बंजर धरती को देख आसमान
जैसे  आंसू बहाना हो चाहती  |
आस के  समंदर में ख्वाइशें
हिलोरे कुछ इस अंदाज़ से  लेती |
सागर की गोद में जैसे नैया
रह रहकर है डोलती |
सारी जुगत लगाकर भी
जब कोई बात ही  न है बनती |
तब हारकर वो इसे अपनी
किस्मत ही है समझती  |
भूख को बसाकर फिर
इस बेजान रूह में दर्द भरे सफर का
फिर वो अंत है करती |

मन



मन के आँगन में
बहारों ने डाला डेरा |

माली के चेहरे में
मुस्कुराहट का सवेरा |

प्यारी सी कली
कभी चंचल , कभी मौन
होकर है पलती   |

न छूना इसे
ये तो हररोज एक नए
रूप में है सजती   |

जब आने लगी बहारें
महकने लगा फिर गुलशन |

चिड़ियों की चहचहाहट
भंवरों का प्यारा गुंजन |

तितली का यूँ मचलना
बादल का फिर बरसना |

हिलोरे लेता हुआ सागर
कल - २  बहता नदिया का जल |

काली रात का  देख पहरा
चंदा का मुस्कुराना |

सूरज की प्यारी किरणें
हवा का मंद - मंद बहना |

फूलों की महकती खुशबु
सारे आलम का फिर ठहरना |

करवट लेता देखो  पल - पल
दर्द उठता है तब रह - रह

शांत लहरों में भी
ज्वार लाता है सागर   |

फूल खिलने से पहले ही
तब  उड़ा ले जाती है हवाएं |

सूरज की तेज तपन
जला देती है हर शय को  |

कभी चंचल कभी मौन रहकर
हर अंदाज़ में पलता ये मन |

कभी मेरा - कभी तेरा
देखो कहता है ये हरपल |

रचनाकार की रचना

Fabulous Nature Pictures
जब - जब बहार है आती |
गम के सारे बादल है ले जाती  |
जब चारों तरफ  सन्नाटा है छाता  |
हमसे वो  कुछ तो  है कह जाता  |
सबके हिस्से का है सूरज |
सबके हिस्से में आते है सुख - दुःख |
फिर क्यु नदिया सी रोती है ये आँखे ...
क्यु नहीं कह देती हंसके सारी बातें  |
बादल बनके बरसकर
फिर क्यु अपना आस्तिव है रचती |
क्यु छाता है ये अँधेरा
किससे मिलने जाता है छुप - छुपकर |
और उगते सूरज की रौशनी में
क्यु शर्माता है वो रह - रहकर |
नदिया की कलकल धारा सा
क्यु बहता है सबका मन |
राह में मिलते फूल - काँटों को
क्यु समेटता है हर पल |
धुल - मिटटी का श्रृंगार करके
क्यु मचलती है ये पवन हरदम |
कभी मंद गति से बढती
तो कभी क्यु ढहा देती है सबकुछ |
हाँ कोई तो  है इसका रचेता
वही करवाता है हमसे ये सबकुछ |


शुभ दीपावली


रुको मत की चलने का वक्त आ गया है |
उठो फिर की संभलने का वक्त आ गया है |
सबक लो दशहरे के दिन से तुम |
की बनके दिखाओ श्री राम से तुम |
बजाया था किसने सच्चाई का डंका |
जलाई बताओ किसने रावण की लंका |
आज भी दुनिया में उसका बोलबाला |
नज़र आता है दाल में आज भी काला - काला |
भरत , लक्ष्मण से नहीं मिलते भाई |
जहां देखो वही है आपस में हाथा - पाई |
अभी भी है कैद सितायें कितनी |
अभी भी आह भरती हैं बेवायें कितनी |
जलाओ तो लंका जुनूं की जलाओ |
अँधेरे दिलों को जरा जगमगाओ |
मिटाओ दिलों से नफरत और भेदभाव |
मोहोब्बत की रस्में सभी को सिखाओ |
चलो मिलकर फिर से प्यार का दीपक जलाओ |

बस कुछ पल

Nature Love Photo Frame

चेहरे से जरा दर्द को , हटा कर तो देख  |
मेरे कहने से जरा , मुस्कुरा के तो देख |

महफूज़ नहीं है यहाँ , कोई भी काफिला  |
तू बदले तेवर , इन हवाओं के तो देख  |

मैं कब से आस की जोत , जला कर हूँ बैठी | 
तू मेरी वफ़ाओं को दिल में , बसाके तो देख |

छोडो उन्हें जो बस्तियों में , बैठे हैं शौक से |
तू खुद के लिए ,एक घर बनाके तो जरा देख  |

क्यु रोता है शहर में होते , सितम को देखकर |
जो हो रहा है खुदके जहन में लाके तो जरा देख  |

पल - पल तेरी याद में ही , बीतता है हर पल |
तू कुछ पल को मेरे दिल में भी , झाँक के तो देख |

तुझे कसम है इस मासूम से , दिलो - जान की |
मेरे साथ भी  एक बार , वफा निभा के तो देख |

नई सुबह

 
घर के आँगन में ठहरती
वो धूप की लालिमा
दूर क्षितिज के पार ...
रात की चादर मुझपर ड़ाल
दूर जाती हुई |
चाँद मुस्कुराता हुआ
तारों की बारात संग खुद को
संवारता  हुआ ...
अपनी डोली में बैठकर
अँधेरी रात सजाने निकल पड़ा |
रात दुल्हन की तरह सजी
लाज  से खुद को समेटे
चाँद के इंतज़ार में बैठी  |
बिस्तर की खुशबु खूबसूरत
मदहोश महकती रात का
अहसास दिलाती हुई  |
सारी कायनात थम सी गई |
सबकी  बेकरारी बढने लगी |
चांदनी का पहरा लगने लगा |
रात की स्याही ने चादर पर
अपना पैगाम लिख डाला |
फूल की खुशबु ने सारे
आलम को महका दिया |
सनम ने चुपके से ...
कानों में क्या कहा |
हर तरफ सन्नाटे की चादर
पसर गई |
बिस्तर की  सलवटों ने
चांद के आने का सबूत दे डाला |
हवा के मंद झोकें बदन को
छुकरके जब गुजरे |
सुबह की किरणों ने फिर से
दस्तक दे फिर  नई सुबह का
सुन्दर  पैगाम दे डाला |

मौन निमंत्रण

मौन देता हमको निमंत्रण ,
मौन ही तो  फरियाद करता |
मौन की शक्ति निराली ,
मौन की भक्ति है प्यारी |
मौन अपनाकर के पीड़ा ,
मुख में है  मुस्कान भरता |
मौन की भाषा मधुर है ,
मौन  की मस्ती है  न्यारी |
मौन में अहसास पलता ,
भावना की कद्र करता |
मौन जब मुखर है होता ,
अनसुना संगीत  बजता |
गहन अवसादों  के क्षणों में 
मौन ही होता है संबल |
दर्द जब हद से गुजरता ,
मौन में ही कल - कल है बहता |
मौन में है  संगीत सजता ,
मौन मैं ही है गीत बजता |
मौन का तो सफर अनोखा 
मौन की भाषा , न कोई जाना |
वाणी का न साथ लेकर 
ये नया इतिहास रचता |
कोई न इसको है जाना ,
इससे न कोई जीत सकता |
निशब्द , निर्विकार , निष्काम ,
न जाने किस वाणी से है ये बंधता ?
आह की अनभिज्ञ घड़ी में 
साथ - साथ मौन ही है रिसता |
वेदना के  शिखर पर 
औंधा पड़ा मौन ही है सिसकता |

हमारे प्यारे बापू जी



बापू जी बापू जी , चश्मे वाले बापूजी |
सादा जीवन उच्च विचार , ऐसा  बोले  बापूजी |
किस किसने  इनको अपनाया ये तो न जाने बापूजी |
चश्मा ,  लाठी, धोती , कुर्ता हर दम  पहने बापूजी |
दुबली पतली थी काया पर बात में था दम उनके जी |
बुरा न कहो , बुरा न सुनो , बुरा न देखो 
हरदम ऐसा ही  बोले बापूजी |
कितने सरल अंदाज़ में पाठ पढा  गए बापूजी |
और सारे संसार में अपना नाम कर गए बापूजी |
इतने  मुश्किल काम को भी आसां बना गए बापूजी |

आज फिर उनके चरणों में हम शीश नवाए मिलके जी | 

फूल


कितनी  प्यारी  कितनी  मोहक 
छूने भर से खो दे रौनक |


खुशबु से जग को महकाए 
भवरों का भी मन ललचाए  |


इंसा के मन को है भाती 
दुल्हन को भी खूब सजाती |


प्रभु  के चरणों में शीश नवाकर 
हर मौसम में फिर से खिल जाती |


अपने रंगों से जग को महकाकर 
सारे  जग में  खुशबु फैलाती |


सब घरों  की देखो है ये है शान 
सब ही करते इसका सम्मान |


मंदिर में भी ये  ही तो है जाती 
मस्जिद में देखो शीश नवाती |


इसको न मतलब जात - पात से 
हर सांचे में झट से  ढल जाती |


मातम में भी रहता है इसका साथ 
शादी को भी ये खूब रंगीन बनाती |


इसमें दीखता है देखो कितना संयम 
टूटकर डाली से भी है प्यार जताती |

कितनी प्यार कितनी मोहक
छुने  भर से खो दे रौनक |

खुशबु से जग को महकाती 
भवरों का भी मन ललचाती |

                     

प्रसिद्ध हिडिम्बा देवी मंदिर

Hidimba Devi Temple   हिमाचल प्रदेश में  लकड़ी से बने हजारों साल पुराने विभिन्न देवी -देवताओं  के बहुत  से मंदिर आज भी पर्यटकों एवं श्रद्धालुओ के आकर्षण का केंद्र हैं | इन्ही मै से एक है  - "हिडिम्बा मंदिर" जो हिमाचल का गोरव माना जाता है |
                                महाभारत के भीम का विवाह हिडिम्ब राक्षस की बहन हिडिम्बा से हुआ था | भीम और हिडिम्बा के संयोग से उत्पन पुत्र घटोत्कच महाभारत युद्ध में  पांड्वो की और से अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था | महाभारत में जैसे  की वर्णन मिलता है , अपने आहार की खोज में  निकले हिडिम्ब राक्षस का भीम के साथ भीषण द्वन्द होता है और अंत मै भीम हिडिम्ब को मार देता है | इस घटना से दुखी हिडिम्ब की बहन हिडिम्बा कुंती समेत पांड्वो पर आक्रमण करना चाहती है किन्तु भीम का सरूप देख कर मोहित हो जाती है | अंत में  माता कुंती की अनुमति से उसकी शादी भीम से हो जाती है | इस एकाकिनी- युवती ने आत्मनिर्भरता के आदर्श को निभाते हुए पुत्र घटोत्कच का पालन - पोषण किया और समय आने पर कुरुक्षेत्र के मैदान में  प्राणोत्सर्ग के लिए उदार मन से बेटे को भेज दिया | यह है एक आदर्श भारतीय नारी का उदाहरण "नारी तू नारायणी है " और " या देवी सर्व भूतेशु मात्रिरुपेन संस्थिता " के पवित्र सन्देश को आदर्श बनाकर हिमाचल -वासियों ने हिडिम्बा को अपनी श्रद्धा -आदर से देवी का परम पद प्रदान किया और इस हिडिम्बा मंदिर मै उसको प्रतिष्ठापित किया है | कुल्लू का राजवंश हिडिम्बा को कुलदेवी मानता है | ऐसा  माना जाता है की १५५३ इ. स. में  कुल्लू के महाराजा बहादुर सिह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था |
                                                            समुन्द्र  तल से १२२० मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुल्लू से मनाली की दुरी ४० किलोमीटर है | मनाली शहर से एक किलोमीटर की दुरी डूंगरी स्थान पर यह हिडिम्बा मंदिर अपने विशिष्ट काष्ठ के अद्भुत शिल्प शोभा के साथ विराजमान है | ४० मीटर ऊँचे इस हिडिम्बा मंदिर का आकर शंकु जैसा  है | उपर तीन झत वर्गाकार है और चौथी  झत  शंकु आकर की है जिस पर पीतल चारो और से लगा है | मंदिर के गर्भ ग्रह  में  विशाल शिला है , जिसमे से शरीर - भाग का आकर , देवी के विग्रह का साक्षात् प्रतिमान है |
                                                                                     वैसे  तो हिमालय माँ पार्वती  के जनक हैं पित्रचरण  और कैलाश  उनका पतिगृह है , यानि यह हिमाद्री क्षेत्र भगवती दुर्गा का लीला स्थल है | अत: यहाँ के कण - कण मै शक्ति चेतना भरी पड़ी है | इस विशेष सन्दर्भ में  यहाँ के निवासियों की परम्परा भी अद्भुत है की कुल्लू के विश्व - प्रसिद्ध दशहरा की नयनाभिराम , देवी - देवतओं  की शोभा यात्रा तब तक आरम्भ नहीं होती , जब तक की इस पूरी शोभा यात्रा के नेतृत्व के लिए हिडिम्बा - देवी का रथ सबसे आगे तैयार न हो जाये |
                                                                       जय माता की | आप् सबको नवरात्री कीबहुत - बहुत शुभकामनायें दोस्तों | :)                                                                                                                                                                                   

कुछ तो समझो



उलझे रहे हम आज बस इन्हीं  ख्यालों में |
वो न जाने अब क्या सोचेंगे हमारे बारे में |
फिर दिल से एक धीमी सी आवाज आई |
क्या अब तक न जान पाए वो मेरे बारे में ?

हमने तो अपने दिल की हर बात कही थी |
अपने अच्छे बुरे की उनसे पहचान कही थी |
अब भी उनके दिल में कोई सवाल बाकि है ?
हमें लगा था अब तक दोस्ती महक गई थी |

दूर रहकर भी तो वो मेरे इतने करीब हैं |
हम हैं उनके ख्यालों में ये हमें यकीन है |
मेरे ख्यालों में भी वो ही तो  हैं सजते |
क्या उनकों इस बात की खबर ही नहीं है ?

हाले दिल हमने एक दूजे से इस तरह कहा |
न चाहते हुए भी उनको दिल में रख लिया |
अब भी न वो अगर मुझको जान पायें हैं |
तो दोस्त बने रहने का फिर क्या मजा रहा |

दूर क्षितिज के उस पार





देखो दूर क्षितिज पर कैसा |
अनुपम दृश्य बना है ऐसा |
देख - देख कर मन की मैना |
बोल रही सुन्दर है बिछोना |

कैसे मैं  पाऊं उडकर जाऊं |
या मैं कुछ ऐसा भेष बनाऊं |
तुम्ही बताओ युक्ति ऐसी |
जिससे तुमको गले लगाऊं |

आँख करो तुम इस और जरा |
कितना अथाह है शीतल भरा |
ममता विहीन क्या मन तेरा |
जो काँप रहा है ये  जन तेरा |

पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |

जब नहीं गगन से तेरा मेल |
फिर क्यु करती तू ऐसा खेल |
सचमुच दुखों को न तू  झेल |
आ-जा आ-जा तू करले मेल |


दोस्ती



इन हवाओं से अब दोस्ती हो गई थी  |
लगता है दिए की उम्र लंबी हो गई थी |

अभी तो इसमें कई और  रंग बचे थे  |
तेरी तस्वीर कबकी पूरी हो चुकी थी  |

मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |

जबसे जाना था मंजिल का पता मैंने |
मेरी तो रफ़्तार ही  धीमी हो गई  थी |

बहुत बार चाहा था फिर से हंसना मैंने |
पर उदासी तब और गहरी हो गई  थी |

बहुत ही करीब चली गई थी चाँद के मैं |
उसकी रौशनी में थोड़ी धुंदली हो गई थी |

चल तो रही थी अब साथ - साथ उसके |
पर अपने  परिचय से अंजान हो गई थी |

बहुत कशमकश होती थी जिंदगी में लेकिन |
फिर भी दोस्तों के साथ खुशगवार हो गई थी |

जवाब अब भी बाकि


बह जाने दो  इन अश्कों को न रोको इन्हें   ...
जो रोज बह जाने  की जिद्द तुमसे करते हैं |
जुबाँ से जब ये कुछ  कह नहीं पाते ...
तो आँखों से होकर गुजर जाने को तडपते हैं |

बिछडे हुए तो  हमें सदियाँ कई बीत गई |
यादों का अहसास  दिल में अभी बहुत बाकि है |
अब पहली सी वो बातें - मुलाकाते तो नहीं ,
पर उन लम्हों की कसक थोड़ी - थोड़ी बाकि है |

अब न ही कोई उम्मीद न आस रही बाकि है |
ये  तो सब चर्चाएँ ही हैं जो रोज सर उठाती है |
किसी के कहने से बात कब  कहाँ बनी है कभी |
अब तो खुद से खुद को समझाना ही बाकि है |

ये आंसुओं का अब रह गया एक  दरिया है |
इन्हें न अब रोककर बेबाक बहा देना बाकि है |
अभी तो दिल में दबी बहुत सी बात बाकि है |
सवाल बहुत हैं जो तेरे - मेरे दरमियाँ बाकि है |

अभी न खत्म  होगी गुफ्तगू रात अभी बाकि है  |
अभी तो हमारे बीच में कई राज़ और बाकि हैं |
अभी इसको निभाने की कसम कहाँ खाई है मैंने ,
अभी तो दोस्ती निभाने की  सौगात बाकि है |

अभी आसमां में चमकता छोटा सा तारा हूँ मैं  ,
जिंदगी में करने मुझे  बहुत काम बाकि है |
कैसे भूल सकती हूँ  मैं  उन हसीं बातों को ,
जिनके सवालों के जवाब देने अभी बाकि हैं |

कल्पना


सुनो हम चलेंगे साथ मिलकर के ऐसे |
ऊपर गगन में बादल विचरतें हों जैसे |
तुम देखना वो मिलन होगा ही ऐसा |
किसी ने अब तक न देखा हो जैसा |

सागर की लहरें भी थम जाएँगी ऐसे |
उनके मिलन की जुगत लगाती हो जैसे |
खुद की लहरों को खुद में समेटेगी ऐसे |
क्षितिज पर देख मिलन ठहरी हो जैसे |

सारी कायनात थम जायेगी फिर ऐसे |
उनके मिलन का जश्न मनाती हो जैसे |
भंवरों की गुंजन तब गीत गायेगी ऐसे |
खुद के होने का संकेत दे रही हो जैसे |

पंछी की उड़ानें  भी थम जायेगी ऐसे |
पैरों में उनके जंजीरे डाली हों जैसे |
नदिया की कलकल शोर मचायेगी ऐसे |
सागर से मिलने को हो वो भी बैचेन जैसे |

ये मिलन बस एक कल्पना नहीं है |
धरा और गगन का अहसास भी है |
उसके मिलन से सृष्टि थम जायेगी |
तभी तो क्षितिज पर वो मिलते है ऐसे |


वो बीते लम्हें


 
कितने प्यारे थे वो दिन ,
जब साथ तुम्हारे चलते थे |
कुछ  वादे तुमसे करते थे ,
फिर तोड़ के आगे बड़ते थे | 

दो पल का हँसना - रोना था ,
फिर रूठ के आगे बढना  था |
प्यारी - प्यारी बातों के साथ  ,
इक दूजे के संग  चलना था |

अब सपनों का सफ़र निराला है  ,
प्यारी बातों  का ताना- बाना है |
उन बीते दिनों के लम्हों का ...
मीठा सा एक फ़साना  है    |

वो पन्नों का जुड़ते जाना था  ,
एक प्यारी किताब बनाना था |
अब उन मीठी  यादों से ही ,
दिल को बहलाते  जाना था   |

आज  फिर से वो सौगात मिली ,
फिर यादों की बरसात हुई |
अब आप तो साथ न आये थे ,
यादों को अपने संग लाए थे |

अब दिल को , तो  बहलाना था |
यादों का सफ़र सुहाना था |
फिर से उन मिट्ठी यादों में ,
पंछी बन कर उड़ जाना  था |

जिंदगी तो  एक तराना  है |
बस प्यार से जीते जाना  है |
मदहोश करते  उन लम्हों में ,
खुद को भूल , बस जाना है |

कोई तो अपना होता



सारी सृष्टि नारी बिन अधूरी |
हर आस्तिव इस बिन अकेला |
हर पल वो आदमी के साथ  |
उस बिन आदमी कहाँ है साकार ?
दोनों के  मिलने से ही तो बना
ये प्यारा संसार|
पर न जाने इस बात से
इंसा क्यु करता है इंकार |
सबने अलग - अलग ठंग से .....
नारी से है प्यार लिया ...
पर उसकी झोली में तो हर पल
दर्द ही दर्द दिया |
सबने उसके दामन को.
आंसुओ से भरना चाहा  
पर तब भी उसने ...
उस घर की खातिर ही जीना चाहा |
ऐसा  नहीं की नारी शक्ति में  
कोई बल न हो मिला |
झाँसी की रानी भी तो 
उसी शक्ति की ... है प्रतिमा |
उसके अन्दर का  कोमल हृदय
उसे ये सब न करने देता है  |
अपनी हर भावनाओ को ...
त्याग दूसरों की इज्ज़त करता है |
नारी का  समर्पण ही तो ...
ये सब कुछ कहती  है |
इतना दर्द समेटे आँचल में
फिर भी सबके आगंन में 
खुशियाँ फैलाती है |
नारी की इस पीड़ा को 
अगर कोई समझ पाता |
उसके कोमल ह्रदय में भी 
बहारों सा चमन खिल जाता | 

उन जज्बों को सलाम


A good teacher must know how to arouse the interest of the pupil in the field of study for which he is responsible. He must himself be a master in the field of study and be in touch with the latest developments in the subject, he must himself be a fellow traveler in the exciting pursuit of knowledge…  – Dr. S. Radhakrishan 


चलो आज मिलकर उनके जज्बों को सलाम करते हैं |
जो बिना चाहत के बच्चों में जोश भरते हैं |
कहने को सारे जहां में गुरु है लेकिन ...
कुछ में ही तो ये हुनर देखने को मिलाता है |
जो अपने समर्पण से बच्चों के दिल में घर बनाते है |
अपने बुलंद होंसलों को बच्चों के दिल में भरते  है |
तभी तो हर बालक उसकी हर अदा पर सर नवाता है |
उसकी हर बात को वो खुदा का कलाम बुलाता  है |
जीवन में गुरु कहलाने भर से कुछ नहीं होता |
बच्चों को सांचे में  ढाले बिना तो कुछ भी नहीं होता |
सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी जरूरी है |
किसी के दिल में बसने के लिए त्याग भी जरूरी है |
बीज बो देने भर से फूल कहाँ खिलते हैं |
माली के समर्पण से बागबान महकते हैं |
आज मिलकर उन सभी  गुरुजन को हम शीश नवाते हैं |
जिनके  अहसास आज भी हमें रास्ते दिखाते हैं  |

समय


न ठहरता समय
न ही रूकती है धूप |
कभी खेत - खलियान
तो कभी आँगन में है धुप |
आज का वक्त
कल का पल कहाँ है बना |
समय बीत जाता है
लंबी प्रतीक्षा के बाद |
कितना छोटा होता है
मिलन का वो पल |
नहीं हो पाते उजागर
वो सपनों के पल |
ख्वाबों का सिलसिला
हर पल चलता नहीं |
वक्त के पैमाने में
बार - बार ढलता नहीं |
दहलीज पर खड़ी
जो करती प्रतीक्षा हर पल |
वो पल कभी फिर
सिमटता नहीं |
न ठहरता है कल
न ही रहता  वो पल |
सूरज की तरह
वक्त बन सकता नहीं |
आज का गया वक्त
कल फिर ठहरता नहीं |

कस्में - वादे


चांदनी रात में हम इस कदर टकटकी लगाते रहे |
लेकर उनकी निशानी देर तक हाथ में घुमाते रहे |

वो न आये रात भर , हम खुद को आजमाते रहे |
देके खुद को झूठी तसल्ली चाँद को निहारते रहे |

दर्द , बेबसी और  टीस वो सब मेरे नाम करते रहे |
हम खामोश बैठ सारे इल्जाम अपने सर लेते रहे |

एक - एक शेर को जोड़कर , वो गज़ल बनाते रहे  |
हम मोम सा जलकर सारी सारी रात पिघलते रहे  |

यादें तेरी झूठे कस्में  - वादों से पर्दा उठाते रहे  |
अंधेरी रात में  जिंदगी के मायनें समझते रहे  |

खुद को संवारो

सृष्टि कि खूबसूरत रचना में हर कोई है लाजवाब |
तभी तो हर एक इंसान में है  खूबसूरत कलाकार |

इसलिए खुद को साबित करना पढता है हर - बार |
जैसे मिटटी से बर्तन बनाता है कुम्हार बार  - बार |

इंसान कि क़ाबलियत  उसका परिचय बतलाती है |
वो सब न दिखे  तो इंसानियत जाहिल कहलाती है |

मन कि आँखों से देखने का समय  किसके पास है |
बाहरी आकर्षण ही तो आज के युग कि पहचान है |

इसलिए ही अपनी योग्यता को सब गड़ते चले चलो |
सुनहरी पन्नों में अपना नाम दर्ज करते चले चलो |

देर हो गई तो देखो सबसे पीछे हम आज रह जायेंगे |
फिर लाख कोशिशों के बाद भी उनको न पकड़ पाएंगे |

तभी  आज कि  दुनिया का यही जीने  का है फलसफा   |
ऐसा न हुआ तो सबकी जिंदगी से हो जायेंगे रफा- दफा |


इंतजार



तितली सा मन बावरा उड़ने लगा आकाश ,
सतरंगी सपने बुने मोरपंखी सी चाह |
आमंत्रित करने लगे फिर से नये गुनाह ,
सोंधी - सोंधी हर सुबह , भीनी - भीनी शाम |
महकी - महकी ये हवा  और बहकी - बहकी धूप ,
दर्पण में  न समां  रहे ये रंग - बिरंगे रूप |
जाने फिर क्यु  धुप से हुए गुलाबी गाल ,
रही खनकती चूड़िया रही लरजती रात |
आँखे खिड़की पर टिके दरवाजे पर कान ,
इस विरह की रात का अब तो करो निदान |
सिमटी सी नादां कली आई गाँव  से खूब ,
शहर में  खोजती फिरती अपने सईयाँ का रूप |
आँखों में बसने   लगे विरह गीतों के गान ,
अंदर  से कुछ  न बोलती बाहर हास - परिहास |

ख़ामोशी कि जुबानी



शांत बैठी लहरों को  तब तक कोई कहाँ जान पाता है |
सागर कि उठती लहरें ही तो कराती है प्रलय का भान |

गगन में विचरते बादलों को भी  तब मिलता है सम्मान |
गरज - बरस भिगो धरा को जब करते हैं वो अपना काम | 

हवा के आस्तिव को आज तक कोई कहाँ जान पाया है |
आँधियों का  रूप ही तो उसके होने का पता बताते  है |

खामोश बैठी रूह को कहाँ तब तक कोई  सीने से लगता है |
उसके कर्म ही तो उसे सही - गलत कि पदवी दिलाता है |

इंसान के भीतर के दर्द को कब कहाँ कोई जान पाता है |
उसके चेहरे के  हाव - भाव ही तो इसका पता बताते हैं |

बिना किसी चाहत के कहाँ दे रहा है कोई किसी को प्यार  |
तभी तो सारे जहाँ में खोजता फिर रहा है वो थोडा सम्मान |



कौन है वो




गरजती है बरसती है  सीने से लगती है |
मेरी बैचेन सांसों को वो ऐसे सजाती   है |

मैं  पास जाता हूँ तो वो दामन  बचाती  है |
मुझे दिन रात वो हर पल  ऐसे सताती है |

मेरे न होने पर वो कुछ  खामोश होती है |
मेरे आने पर वो इसका जश्न मनाती है |

कभी बहुत रुलाती है कभी मान जाती है |
मेरे सोये अरमान को फिर से जगाती है |

बड़ा  दिलकश उसका ये अंदाज़ लगता है |
जो दिन - रात हर हाल में साथ रहता  है |

उसकी  हंसी वो  उसका बालपन प्यारा |
मेरे तो रोम - २  को पुलकित करता  है |

वो जब भी मुसकुराती है तो फूल छरते हैं |
ठंडी हवाओं के छोकें उसका पैगाम लाते हैं |

मैं फिर संभालता   हूँ फिर आगे को बढता हूँ |
वो तो संग साया बनके मेरे साथ चलती है |

मैं जब लडखडाता हूँ वो आके थाम लेती  है |
अपने होने का मीठा  एहसास छोड जाता है |

ख्यालों में

 

वो लम्हें  गुज़र गए वो अरसे गुज़र गए |
न जाने कौन सा वक्त साजिश ये कर गया |

तमाम  उम्र तो गुज़र गई ये सोचते हुए |
हाँ ये सच है कि अब मैं कुछ संवर गया |

जब तक था वो जहन में तब तक तो ठीक था |
जब पहुंचा नाम जुबाँ तक तो मंज़र बिगड गया |

यूँ कहो तो उसमे भी तासीर कुछ कम न थी |
जब पास जाके मैंने छुआ तो वो सिहर गया |

सोचा था देखूं तुझे पास से इतने करीब से |
मेरा ये ख्वाब न जाने कहाँ जाके खो गया |

इक रोज जब  जुबाँ ने तेरा नाम ले लिया |
ये दौड़ता हुआ शहर अचानक से थम गया |

अब तक जो मेरे ख्यालों में था पल रहा |
अब देखो एक गज़ल बनके निखर गया |

मुरली वाला

 
कभी देखा नहीं मैंने तुझे
किस्से कहानियों से जाना है |
बहुत नटखट है तू
तेरी लीलाओं ने बताया  है
बचपन में  सारी ग्वालनों को
तू सताता था |
तोडके  मटकी सबकी जाके
माँ के आँचल में  छुप जाता था |
सबको अच्छे - बुरे का
भान भी तू कराता था |
हर अंदाज़ में जीने का ढंग
सबको सिखाता था |
बड़ा हुआ तो गोपियों संग
खूब रास भी तूने रचाया था |
इस कद्र सबके लिए निश्छल
प्यार कहाँ से तू लाया  था |
बिना चाहत के हर कोई तेरा
दीवाना हो जाना चाहता था |
गीता का ज्ञान भी मेरे श्याम ने
कराया था |
राधा के प्यार को तुने जब
सीने से  लगाया था |
खुद से पहले उसके नाम को
सम्मान दिलाया था |
मीरा ने भी लोक - लाज
छोड कर तुझसे प्रीत लगाई थी |
तेरे नाम के सिमरन में ही
एक अलख जगाई थी |
कंस को मार तुने जन को
मुक्ति दिलाई थी |
तभी तो हर जुबाँ ने सिर्फ
श्याम  कि ही रट  लगाई थी |
तेरी लीलाओं का अंत
हमने  अब तक न पाया है |
शायद  इसीलिए सारी सृष्टि में
आज भी बस तू ही तू समाया  है |

नई सुबह


दूर गगन में सूरज चमका ,
नई सुबह है आने को |
तम हटेगा , धुंद हटेगी ,
नया प्रकाश है छाने को |

देखो किरणों कि ये छटा ,
पेड़ों पर है ठहर जाने को |
सर्दी कि ठिठुरती बेला को ,
फिर से है गरमाने को |

गांव कि गोरी छम - छम करती ,
चली पनघट में लेने पानी को |
सूरज कि किरणों से बचती ,
आँचल से  लगी मुंह छुपाने को |

सागर कि लहरें भी लगी अब ,
अपना करतब दिखाने को |
लगी  किनारों से टकराने ,
अपना आस्तिव बतलाने को |

चिड़िया अम्बर में उड़  निकली ,
आज़ादी का आभास दिलाने को |
मछुवारों कि टोली  चल निकली ,
अपना कर्तव्य निभाने को |