तेरे बिन




शामें गम अब और कटती नहीं है तेरे बिन |
बज़्म में विरानियाँ लगने लगी है तेरे बिन |
तन्हाइयों में भी अक्सर तेरा साथ है रहता |
ख्यालों में हरपल हलचल रहती है तेरे बिन |


मिलो फुर्सत से कि हम उदास हैं तेरे बिन |
नहीं कटती अब ये तन्हां सी रात तेरे बिन |
तेरे अहसास में अब पहली सी बात न रही |
जीवन जीना मुहाल फिर हुआ है तेरे बिन |

वक्त कि है साजिश हम तन्हां हैं तेरे बिन |
रिमझिम बारिश में भीगे अकेले तेरे बिन |
गुजरते हरपल में तेरी यादों का साथ लेकर |
राहे वफ़ा में कारवां संग चलते रहे तेरे बिन |

सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन |
हर उठती आरजू में सिर्फ तू ही तू शरीक हो |
बंद आँखों में सपने न सजा सके तेरे बिन |

माँ


आ उड़ा ले चल पवन
फिर मुझे उस गलियारे |
माँ कहते हैं जिसे
उसका वो स्पर्श दिलवाने |
वो रहती है जहाँ
उस देश का पता बतलाने  |
मैं हो जाऊ  फना
सिर्फ उस एक झलक के बहाने |
अहसास है मुझे
उसके हर अलग सी छुवन का |
कभी काली , कभी दुर्गा
कभी सरस्वती रूप था उसका |
आज भी वो मेरे
ख्यालों कि नगरी में है बसती |
सुख - दुःख में
हर हाल में मेरे साथ है रहती |
आँचल की छांव में
उसके एक मीठा सा सुकून है |
उसका हर स्पंदन भरता
मुझमे  बेमिसाल जूनून है |
आ ले चल पवन
मुझे फिर उस गलियारे |
माँ कहते हैं जिसे
बस उसका दीदार करवाने  |



सिर्फ पैसा



कहीं एक - २ आने का हिसाब मांग रही पैसा |
कही खुद को संभाल पाने में असमर्थ है पैसा |

कहीं भूखे बच्चे को  रुलाकर सुला रही है पैसा |
कहीं जश्ने  जिंदगी पल - पल  मना रही पैसा |

कहीं झोलियाँ भर २  के खुशियां लुटा रही पैसा |
किसी आँगन में सिर्फ मातम मना रही है पैसा |

दर्द कि इंतहा हर बार बिन पैसे के दम तोड़ रही |
कहीं पैसों के बीच खुदको न संभाल पा रही पैसा |

कही मौन रहकर अपनी अस्मिता लुटा रही पैसा | 
कहीं हवस कि आग में बे - वजह लुट रही है पैसा |

कोई गलत काम कर आसानी से कमा रहा  पैसा |
कहीं  पसीने कि कीमत भी न चूका पा रही  पैसा |

कहीं बेशुमार दर्द तो कहीं खुशियाँ लुटा रही  पैसा |
फिर भी हर वर्ग में अपना सिक्का जमा रही पैसा |