नई सुबह

 
घर के आँगन में ठहरती
वो धूप की लालिमा
दूर क्षितिज के पार ...
रात की चादर मुझपर ड़ाल
दूर जाती हुई |
चाँद मुस्कुराता हुआ
तारों की बारात संग खुद को
संवारता  हुआ ...
अपनी डोली में बैठकर
अँधेरी रात सजाने निकल पड़ा |
रात दुल्हन की तरह सजी
लाज  से खुद को समेटे
चाँद के इंतज़ार में बैठी  |
बिस्तर की खुशबु खूबसूरत
मदहोश महकती रात का
अहसास दिलाती हुई  |
सारी कायनात थम सी गई |
सबकी  बेकरारी बढने लगी |
चांदनी का पहरा लगने लगा |
रात की स्याही ने चादर पर
अपना पैगाम लिख डाला |
फूल की खुशबु ने सारे
आलम को महका दिया |
सनम ने चुपके से ...
कानों में क्या कहा |
हर तरफ सन्नाटे की चादर
पसर गई |
बिस्तर की  सलवटों ने
चांद के आने का सबूत दे डाला |
हवा के मंद झोकें बदन को
छुकरके जब गुजरे |
सुबह की किरणों ने फिर से
दस्तक दे फिर  नई सुबह का
सुन्दर  पैगाम दे डाला |