एक बार दुसरे देश के लोग हमारे देश में घुमने के लिए आये घूमते २ जब वो थक गए तो उन्हें भूख लगी ,तो वो सब एक फल वाले के पास गए उन्होंने नारियल देखा तो उन्हें वो थोडा अलग सा फल लगा उन्होंने उसके बारे में पुच्छा तो फल वाले ने उस की बहुत तारीफ की इसमें बहोत प्रोटीन होता है और खाने में भी बहुत सवाद होता है एसा सुन कर उन सबने उसे खरीद लिया पर उससे तो वो बिलकुल अनजान थे की उसे किस तरह से खोल कर खाया जाता है ! आगे चल कर उन्होंने उसे खाना चाहा पर उसके बारे में कोई जानकारी न हो पाने की वजह से वो उसे खोल न सके ओर सवाद का मज़ा भी न ले सके तो उन्होंने उस फल वाले को बहुत भला बुरा कहा और अपने देश में जाकर भी सभी से उसकी खूब बुराई करी की इतने बेकार फल को वो लोग इतने प्यार से खाते हैं हमे तो उसमे कोई अच्छाई नजर नहीं आई और उसने हमे उसकी इतनी खुबिया बता दी थी तो डीक उसी तरह हमारा जीवन भी नारियल की ही तरह है जो इसको जीने का ढंग नहीं जान पाते उनके लिए वो नारियल के बाहरी भाग जेसा कढोर और बेसवाद ही लगता है और जब हम इसे भोगने की विधि जान जाते हैं तो यही हमे मीठा सव्दिष्ट और मोक्ष प्राप्त करने जेसा प्रतीत होने लगता है! पर हमारे जीवन की असफलता उस फल को न चख पाने का बंधन बनती जाती है और उसको न चख पाने की देरी हमे जीवन तोड़ देने के लिए बाध्य कर देती है !
संसार तो हमारे तरीकों से चलता है हम उसे जेसा रूप सरूप देते हैं वो वेसा ही दीखने लग जाता है! तभी हम कहते भी हैं की संसार एक बंधन है , संसार दुख है इसे तोड़ दो पर इससे भाग कर कहाँ तक जायेंगे इससे बेहतर तो यही होगा की हम अपने आप को ही बदल डाले इससे हमे ये संसार एक सगीत सा नज़र आने लग जाये और इसके सुख दुःख इसके मधुर गीतों जेसे लगने लगे !