
कहाँ रुकना कहाँ चलना
ये फन बखूबी जानते हैं हम |
जीवन के सफर को
तभी आसां बना पाते हैं हम |
आँधियों के रुख को
पहले से जान लेते हैं हम |
अंजाम को उसके तभी
आसानी से झेल पाते हम |
रुख देख हवाओं का
उम्र दिए की लंबी करते हम |
सुनकर बादलों का शोर
सफर को अंजाम देते हम |
लहरों को देखकर
नाव को सागर में डालते हम |
तूफानों की दिशा जानकर
मुंह कश्ती का मोड लेते हम |
डरकर काँटों की चुभन से
फूलों से झट मुँह मोड लेते हम |
खुशबूं का भान होने पर
लाकर उसे घर में सजाते हम |
टूटे न कोई रिश्ता
फिर खुद को मिटाते हम |
अपने को दरकिनार रख
अपनों का घर बसाते हम |