
मौसम न जाने क्या , साजिश है कर रहा |
हर तरफ घनी रात का , दामन पसर रहा |
चाँद की चांदनी भी , मध्यम है पड़ रही |
मानो कोहरे की , अब बारात निकल रही |
आसमान में बादल ऐसे , बन - बिगड रहें |
हमसे कोई बात कहने को हों वो तरस रहे |
महसूस होने लगी वही , सिरहन की रात है |
बारिशों के पाँव बंधी घुंघरुओं की आवाज है |
पेड - पौधे बदलने लगे अब नई पोशाक है |
पहाड़ों को मिली श्वेत चादर की सौगात है |
अजब मौसम अब मेरे देश का है हो रहा |
मैं कर रही हूँ सफर वो मेरे साथ चल रहा |