
शायद जुर्म मुझसे फक्त , इतना सा हो गया
गरीब माँ की कोख में , मेरा जन्म था हो गया
अरमानों का काफिला , तभी से था ठहर गया
शिकायतों के दौर का , सिलसिला भी थम गया
क्या अब खुदा भी , अमीरों का गुलाम हो गया ?
या फरियादों में भी , अब कोई टैक्स है लग गया
गरीबी मेरी जिंदगी का , हिस्सा बन गया
सरपट भागती दुनिया से , मैं पिछड गया
घर द्वार से मेरा , नामों निशाँ है मिट गया
रिश्तों से भी मैं , दूर होता चला गया
इंसानी फितरत से , जब मैं बेजार हो गया
अब जाकर फिर मैं , खुद में ही सिमट गया
जब मिलेगा वो , तो उससे पूछुंगी फुर्सत से
बता बीते जन्म में , मुझसे ऐसा क्या पाप हो गया ?