ए रात की तन्हाईयों , मुझको लगा लो सीने से |
डर लगता है अब , ख़ामोशी भरे इस मंजर से |
वस्ल की रात है , राहत से बसर अब होने दो |
न रहे गिला कोई , धमकी का असर भी होने दो |
लोग कहते हैं दीवाना , इस पर भी यकीं करने दो |
न रहे तमन्ना अधूरी , उस पल से भी गुजरने दो |
है आग मुझमे भडकने की , कहाँ है इंकार हमें |
न दो हवा इतनी , चलो अब थोडा सँभलने दो |
वो चाहता है हमें , ये बात जो वो दावे से कहता है |
दो दर्द ऐसा , अहसासे बयाँ को महसूस करने दो |
जुदाई का है आलम तो , जुदाई का ही मंजर होगा |
है इतनी गुजारिश , सह लेने तक की हिम्मत दो |
चांदनी रात जो है तो , ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती |
तारों से कुछ देर और , ठहर जाने की मोहलत ले लो |
महफ़िल सजे ऐसी , गिरफ्त में उसकी हम आ जाएँ |
वक्त से चुराकर चंद लम्हे , चले जाने का वादा करलो |